उत्तराखंड में लिव-इन कानून के खिलाफ रोशन रतूड़ी का विरोध, सरकार से पूछा—क्या अपने बच्चों पर लागू करेंगे ये नियम

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अंतर्राष्ट्रीय समाजसेवी रोशन रतूड़ी का सरकार पर प्रहार, लिव-इन कानून को बताया जनविरोधी और असंस्कृतिक

उत्तराखंड में लिव-इन कानून के खिलाफ रोशन रतूड़ी का विरोध, सरकार से पूछा—क्या अपने बच्चों पर लागू करेंगे ये नियम

संवाददाता: ठाकुर सुरेंद्र पाल सिंह

उत्तराखंड की शांत वादियों में इन दिनों लिव-इन रिलेशन रजिस्ट्रेशन कानून को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलचल तेज़ हो गई है। इस कानून के विरोध में अब अंतर्राष्ट्रीय समाजसेवी एवं ह्यूमन राइट्स के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रोशन रतूड़ी ने खुलकर मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने सीधे सोशल मीडिया के माध्यम से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, सभी विधायकों, पांचों सांसदों और विधानसभा अध्यक्ष से तीखे और सीधे सवाल किए हैं।

रोशन रतूड़ी ने पूछा है कि क्या ये नेता स्वयं अपने बेटे-बेटियों को इस कानून के अधीन लिव-इन रिलेशन में रहने की अनुमति देंगे? जब जनप्रतिनिधि खुद अपने परिवार के लिए इस कानून को स्वीकार नहीं कर सकते, तो फिर इसे राज्य की आम जनता पर क्यों थोपा जा रहा है? क्या केवल जनता ही प्रयोग की वस्तु बन गई है?

रतूड़ी ने कहा कि उत्तराखंड देवभूमि है, जहां सनातन संस्कृति की गहरी जड़ें हैं। यह ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही है, जहां विवाह जैसी संस्था को पवित्र माना गया है। ऐसे पावन प्रदेश में लिव-इन रजिस्ट्रेशन कानून लाना केवल एक वैधानिक कदम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों पर आघात है। उन्होंने इसे एक “सांस्कृतिक घाव” बताया, जिसे समाज लंबे समय तक सहन नहीं करेगा।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार जनता के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के कानून ला रही है। राज्य में पहले से ही बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य, जल संकट और आपदा प्रबंधन जैसे गंभीर विषय हैं, जिन पर ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है। लेकिन सरकार इन समस्याओं के समाधान के बजाय ऐसे सामाजिक रूप से विवादित कानून बना रही है, जिससे समाज में विघटन और मानसिक संघर्ष उत्पन्न होगा।

रतूड़ी ने भारतीय समाज की पारिवारिक संरचना को इस देश की आत्मा बताते हुए कहा कि विवाह और सामाजिक मर्यादाएं हमारे जीवन की नींव हैं। लिव-इन रिलेशन को कानूनी मान्यता देना इस नींव को कमजोर करने की दिशा में एक खतरनाक कदम है। इससे युवाओं में पारिवारिक जिम्मेदारियों से बचने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है और सामाजिक ढांचे में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।

उन्होंने लीव-इन रिलेशन के सामाजिक दुष्परिणामों का उदाहरण देते हुए कहा कि उधम सिंह नगर में मुस्ताक अहमद द्वारा खटीमा की पूजा विश्वास, जो बंगाली कॉलोनी की रहने वाली थी, की गला काटकर की गई हत्या लिव-इन रिलेशन का ही वीभत्स परिणाम है। इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि बिना सामाजिक और पारिवारिक ढांचे के ऐसे रिश्ते अंततः हिंसा और त्रासदी में बदल सकते हैं।

अपने बयान में रोशन रतूड़ी ने धर्मगुरुओं, सामाजिक संगठनों, महिला मंडलों, अभिभावक संघों और युवाओं से आह्वान किया कि वे इस मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठाएं और सरकार से खुला संवाद करने की मांग करें। उन्होंने कहा कि यह केवल एक कानून नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक संरचना का मामला है, जिस पर चुप्पी अब विकल्प नहीं है।

उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने संवाद का रास्ता नहीं अपनाया, तो वे जनजागरण अभियान छेड़ेंगे और प्रत्येक जिले में जाकर जनता को इस कानून की सच्चाई बताएंगे। रतूड़ी की इस तीखी प्रतिक्रिया के बाद पूरे प्रदेश में जनभावनाएं उबाल पर हैं। सोशल मीडिया पर उनके विचारों को व्यापक समर्थन मिल रहा है। कई सामाजिक संगठन, महिला मोर्चे और युवा मंच खुलकर उनके समर्थन में सामने आ गए हैं।

इस घटनाक्रम ने राज्य की राजनीति को भी एक नई दिशा दे दी है। विपक्षी दल इस कानून को सरकार की नीति विफलता बताते हुए जनमंचों पर उठाने की तैयारी में हैं। कुछ विधायकों के क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं और कुछ ग्राम पंचायतों ने इस कानून को अपने क्षेत्र में मान्यता न देने के प्रस्ताव तक पारित कर दिए हैं।

उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशन को कानूनी मान्यता देने के फैसले ने जहां एक ओर सामाजिक चेतना को झकझोरा है, वहीं दूसरी ओर धार्मिक संगठनों को भी सक्रिय कर दिया है। संतों और धार्मिक नेताओं ने इस कानून को भारतीय संस्कृति के विरुद्ध बताया है और सरकार को चेताया है कि अगर इस पर पुनर्विचार नहीं हुआ, तो वे सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे।

शिक्षाविदों और अभिभावक संघों ने भी इस कानून पर गहरी चिंता जताई है। उनका कहना है कि यह युवाओं को अस्थिर जीवनशैली की ओर धकेलेगा और समाज में पारिवारिक मूल्यों के क्षरण का कारण बनेगा। उनका मत है कि ऐसे संवेदनशील विषयों पर जनसुनवाई और व्यापक सामाजिक विमर्श अनिवार्य है।

इस पूरे प्रकरण में रोशन रतूड़ी की भूमिका निर्णायक बनती जा रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि यदि सरकार ने इस कानून पर अपनी मंशा स्पष्ट नहीं की, तो यह विषय आने वाले विधानसभा चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। राज्य की जनता के सामने आज एक बड़ा सवाल खड़ा है—क्या उत्तराखंड अपनी सनातन सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखेगा या आधुनिकता की दौड़ में अपनी जड़ों को खो देगा?

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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