नारा बनकर ही ना रह जाए महिला सशक्तिकरण अभियान

नारा बनकर ही ना रह जाए महिला सशक्तिकरण अभियान
रवि शंकर शर्मा
11 अक्टूबर को जब पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहा था तो अफगानिस्तान के विदेश मंत्री की प्रेस वार्ता में महिला पत्रकारों को ना बुलाना बालिका दिवस मनाने के उद्देश्यों को निरर्थक साबित कर रहा था। वहीं बालिका दिवस की पूर्व संध्या पर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में एक मेडिकल कॉलेज की छात्रा से हुए सामूहिक दुष्कर्म तथा उसके बाद मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया बयान एक महिला द्वारा ही महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर दर्शायी गयी असंवेदनशीलता दर्शाता है।
यद्यपि अफगानिस्तान के विदेश मंत्री की प्रेस वार्ता में महिला पत्रकारों को ना बुलाए जाने पर मचे हंगामे के बाद तालिबान ने अपनी गलती सुधार ली और अगली प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाकायदा महिला पत्रकारों को आमंत्रित कर उन्हें ससम्मान पहली पंक्ति में बैठाया। विदेश मंत्री ने सफाई दी कि महिला पत्रकारों को ना बुलाने का कारण महिलाओं व पुरुषों में कोई भेदभाव नहीं था, बल्कि उनके सहयोगियों ने समय के अभाव के कारण कुछ चुनिंदा लोगों को ही निमंत्रण भेजने का फैसला किया था, इसलिए पत्रकारों की छोटी सूची तय की गई थी। यद्यपि तालिबान अपने देश में महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है, यह किसी से छिपा नहीं है।
वहीं मेडिकल कॉलेज की छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म के बाद जब प्रदेश की महिला मुख्यमंत्री कहती हैं कि रात को लड़कियों को बाहर नहीं निकलने देना चाहिए तो एक बार उन्हें स्वयं अपने राज्य की कानून व्यवस्था पर विचार करने की जरूरत है। वहीं महिला सशक्तिकरण के इस दौर में जब महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, तब क्या इस प्रकार की सोच उन्हें हतोत्साहित नहीं करेगी ? मुख्यमंत्री ने आगे यह भी कहा कि पुलिस हर घर के बाहर पहरा नहीं दे सकती। अधिकारियों को यह पता नहीं चल पाता की रात में कौन घर से बाहर जा रहा है। वहीं उन्होंने दूसरे राज्यों में हो रहे अपराधों से घटना की तुलना करते हुए यह भी कहा कि ऐसा दूसरे राज्यों में भी होता है।
तो क्या उनके राज्य में हो रहे अपराधों को कम करके आंका जा सकता है ? जब भी कहीं कोई जघन्य वारदात होती है तो वहां के राजनीतिज्ञ अपने प्रदेश की कानून व्यवस्था पर ध्यान न देकर दूसरे राज्यों की कानून व्यवस्था का हवाला देने लगते हैं। पश्चिम बंगाल की एक अन्य महिला सांसद ने तो यह भी कहा कि हर समाज में ऐसी घटनाएं होती हैं। इस प्रकार की मानसिकता केवल अपराध करने वालों का मनोबल ही बढ़ाती है।
जहां एक ओर प्रधानमंत्री- बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा देकर महिला सशक्तिकरण का प्रयास कर रहे हैं, वहीं तमाम राज्यों में महिलाओं के साथ बढ़ते दुष्कर्म यह दर्शाते हैं कि ना तो राज्य ही अपने यहां ऐसी घटनाओं को रोक पाने में सक्षम हो पा रहे हैं, वहीं पुरुषों की भी मानसिकता भी उजागर होती है कि वे आज भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं दे पाए हैं।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)








