इतनी दुरूह क्यों है न्यायिक प्रणाली ?

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इतनी दुरूह क्यों है न्यायिक प्रणाली ?

रवि शंकर शर्मा

अगर किसी देश के मुख्य न्यायाधीश को यह कहना पड़ जाए कि आज लोग न्यायिक प्रक्रिया से इतना त्रस्त हो चुके हैं कि वह बस समझौता चाहते हैं.. तो निश्चित रूप से उसे देश की न्याय प्रणाली के बारे में समझा जा सकता है। यह बात मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने गत दिनों सुप्रीम कोर्ट में विशेष लोक अदालत सप्ताह के मौके पर कही। उन्होंने कहा की वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र के रूप में लोक अदालतें ऐसा मंच हैं, जहां लंबित मामलों का सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटारा या समझौता किया जाता है। पारस्परिक रूप से स्वीकृत समझौते के विरुद्ध कोई अपील दायर नहीं की जा सकती।

लगभग इससे ही मिलती-जुलती बात हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने भी कही थी अदालतों में न्यायिक सुधार विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए डॉक्टर कलाम ने कहा था कि उनके बचपन के दौर में भारत की न्याय व्यवस्था अच्छी थी। तब आधे से भी अधिक विवाद आपसी रज़ामंदी से ही सुलझा लिए जाते थे। अगर पुरानी न्याय पद्धति आज भी जारी रहती तो देश की अदालतों में इतने मुकदमे लंबित नहीं होते।

उन्होंने देश में न्याय की पुरानी परंपराओं को याद करते हुए कहा था कि 50 के दशक की बातें उन्हें आज भी याद हैं, जब उनके पिता नमाज़ के बाद घर के बाहर चबूतरे पर बैठ जाया करते थे और गांव भर के लोग उनके पास अपनी ज़मीन-जायदाद के झगड़े और पारिवारिक विवादों को लेकर आते थे। मज़े की बात यह थी कि उन मामलों में कुछ ही घंटे में ऐसे फैसले हो जाया करते थे। डॉक्टर कलाम ने इस बात पर अफ़सोस जताया की 1970 के बाद इस मानवीय संवेदना का युग समाप्त हो गया।

डॉ. कलाम ने कानूनविदों को सलाह देते हुए कहा था कि सबसे पहले उन्हें यह देखना चाहिए कि मुकदमों का निर्णय होने में देरी का क्या कारण है और इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है ? डॉ कलाम की बात इस संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण थी कि आज स्थानीय अदालतों से लेकर हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में करोड़ों मुकदमे लंबित हैं। इनमें काफी संख्या ऐसे मुकदमों की है, जो कि व्यक्ति के अहम के कारण चल रहे हैं। पुराने समय में यही मुकदमे गांव स्तर पर ही आसानी से सुलझा लिए जाते थे और दोनों पक्षों में किसी प्रकार का वैमिनस्य नहीं होता था।

लोक अदालत सप्ताह के मौके पर ही कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि मध्यस्थता लंबे समय से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रही है। आत्म निरीक्षण करने की शक्ति विवादों को सुलझाने में मदद करती है। वैवाहिक विवाद निपटाने में लोक अदालतों की भूमिका की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि पहले जो काम परिवार के बुजुर्ग करते थे, अब वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र कर रहा है। उन्होंने बताया कि पहली लोक अदालत भगवान श्रीकृष्ण ने लगाई थी, जब उन्होंने कौरवों और पांडवों के बीच विवाद को सुलझाने की कोशिश की थी।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने लंबी न्यायिक प्रक्रिया को एक सजा बताया और कहा कि यह सभी न्यायाधीशों के लिए एक चिंता का विषय है। उन्होंने कहा की लोक अदालत का उद्देश्य लोगों के घरों तक न्याय पहुंचाना और लोगों को यह सुनिश्चित करना है कि हम उनके जीवन में निरंतर मौजूद हैं।

आज बढ़ते मुकदमों का एक कारण जहां हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या है, वहीं विभिन्न मुकदमों में बार-बार तारीख लगना भी एक बड़ा कारण है। तारीखें लगने के पीछे जो कारण है वह यह है कि न्यायाधीश चाहते हैं कि किसी भी निर्दोष को किसी भी स्थिति में सज़ा ना मिले। इसके अलावा तमाम मामले ऐसे भी होते हैं, जो मिथ्या दर्ज करा दिए जाते हैं।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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