क्या है पर्सनल स्पेस?……ऐसी भी क्या नकल करना जो हमारे लिए घातक हो

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“पर्सनल स्पेस ” चोचले बाजी
आजकल पर्सनल स्पेस नामक एक नयी बीमारी समाज में अपना पांव पसार रही है, यह चोचला मध्य वर्गीय परिवार में अधिक दिखाईं पड़ रही है,इसका कारण खुद को एडवांस दिखाने की चाह है, हमको अभी भी याद है , पहले ज्वाइंट फैमिली हुआ करती थी, एक ही बरामदें में दादा -दादी, भाई बहन सब साथ सोते थे, जहां बड़ों द्वारा शिक्षाप्रद कहानियां सुनने को मिलती थीं।

अब हमने खुद को पत्थर की दीवारों में कैद कर लिया है, जहां सिर्फ हम है और हमारा विनाशक यंत्र मोबाइल है, मम्मी अपने मोबाइल के साथ अपने कमरे में, पापा अपनी मोबाइल में व्यस्त, भाई अपने कमरे में व्यस्त,बहन अपने कमरे में व्यस्त, सब की अपनी दुनिया, इसी को हम एडवांस बोलते है , रिश्तेदारों से बड़े गर्व से बताते बेटा मोबाइल से पढ़ रहा, बिटिया मोबाइल से पढ़ रही, अभी कुछ दिनों से एक वीडियो वायरल हो रहा जिसमें एक बच्चा छोटी सी उम्र में 96 लाख का कर्जदार है, इसका कारण यही पर्सनल स्पेस है, क्या मां बाप की इतनी ही जिम्मेदारी,मंहगे स्कूल में नाम लिखा दिये वा महंगा ट्यूशन लगा दिए, कभी चेक किए बेटा क्या कर रहा, बिटिया मोबाइल में क्या देख रही, सही बात तो ये है हमको स्वयं मोबाइल से फुर्सत नहीं । आएं दिन बच्चें गेम खेलकर आत्महत्या कर रहे, उसके जिम्मेदार केवल वे नहीं हम सब है, हमारे चोंचले है।

ऐसी भी क्या नकल करना जो हमारे लिए घातक हो,
प्रत्येक अभिभावक को चाहिए अपने बच्चों की एक्टीविटी पर ध्यान रखे, उनसे बात करे, उनकी दिनचर्या का अध्ययन करे।
अन्यथा ये मोबाइल और पर्सनल स्पेस हमारी पीढ़ी को नष्ट कर देंगे।
शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी
(असिस्टेंट प्रोफ़ेसर )

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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