उत्तराखंड में करीब 4 लाख हेक्टेयर भूमि नजूल की है

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दया जोशी

आवास विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में करीब 3,92,024 हेक्टेयर नजूल भूमि है. ये नजूल भूमि मुख्य रूप से देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी और उधमसिंह नगर में मौजूद है। मिली जानकारी के अनुसार, हल्द्वानी शहर का करीब 80 फीसदी हिस्सा नजूल भूमि पर बसा है। जिसके तहत हल्द्वानी से लेकर काठगोदाम तक 39 लाख 66 हजार 125 वर्ग मीटर नजूल भूमि है। इसी तरह रुद्रपुर में करीब 22 हजार परिवार हैं जो नजूल भूमि पर काबिज हैं। पहले रुद्रपुर में नजूल भूमि पर बसे परिवारों की संख्या करीब 14 हजार थीं, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 22 हजार जो गई है।

नजूल भूमि क्या होती है: वह जमीन नजूल भूमि कहलाती है, जिस पर किसी का भी मालिकाना अधिकार नहीं होता है. लंबे समय से वह जमीन बिना वारिस के खाली पड़ी रहती है. ऐसी जमीन को सरकार अपने अधिकार में लेती है और अपने जनहित के कार्यों में प्रयोग करती है. राज्य सरकार ऐसी जमीन की मालिक होती है. कई गांवों में यह जमीन यूं ही पड़ी रहती है। उत्तराखंड में ऐसी ही नजूल की जमीनों पर लाखों की संख्या में लोगों ने अपने घर बना दिए हैं। ऐसी ही जमीनों के उपयोग के दृष्टिकोण से सरकार ने इस जमीन से संबंधित नजूल नियम बनाये हैं। नजूल की जमीन (Nazool Land) का स्वामित्व संबंधित राज्य सरकारों के पास होता है, लेकिन अक्सर इसे सीधे राज्य संपत्ति के रूप में प्रशासित नहीं किया जाता है। राज्य सरकार, आम तौर पर ऐसी भूमि को किसी को एक निश्चित अवधि के लिए पट्टे पर आवंटित करता है. लीज की अवधि 15 से 99 साल के बीच हो सकती है।

यदि पट्टे की अवधि समाप्त हो रही है, तो कोई व्यक्ति स्थानीय प्रशासन के राजस्व विभाग को एक लिखित आवेदन जमा करके पट्टे को नवीनीकृत करने का अनुरोध कर सकता है। एक बात और महत्वपूर्ण है। सरकार नजूल भूमि को वापस लेने या पट्टे को नवीनीकृत करने या इसे रद्द करने के लिए स्वतंत्र है। भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में, तमाम संस्थाओं को नजूल भूमि आवंटित की गई है। हल्द्वानी नगर निगम के दस्तावेजों में दर्ज करीब 394.61 हेक्टेयर भूमि नजूल है। इसमें रहने वाले लोग मालिकाना हक को लेकर लंबे समय से जद्दोजहत कर रहे हैं।

शहर में कई लोग नजूल नीति के मानकों को ही ताक पर रखकर मनमानी कर रहे हैं। नगर निगम के मुताबिक कुछ लोगों द्वारा नजूल भूमि को फ्री होल्ड कराए बिना ही भूमि पर नया निर्माण कार्य करने का प्रयास हमेशा से किये जाते रहे हैं। जबकि नजूल भूमि फ्री होल्ड कराने के बाद जब नक्शा पास होता है तभी उस भूमि पर नया निर्माण कार्य किया जा सकता है। लेकिन सरकारी विभागों की लीपापोती तथा नज़ूल भूमि के कब्जेदारों के बीच चुनावी साल में वोटो की राजनीति सरकार की दिशा और दशा दोनों तय कराती है। आने वाले समय में लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने में चन्द दिन ही बचे हैं ऐसे में नज़ूल भूमि का मुद्दा हल्द्वानी में भी जोरदार छाया रहेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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