(उत्तराखंड)उत्तरकाशी : 8000 फीट की ऊंचाई पर दिखा मोर,वन्यजीव विशेषज्ञ भी हैरान
उत्तरकाशी : 8000 फीट की ऊंचाई पर दिखा मोर,वन्यजीव विशेषज्ञ भी हैरान
क्या जलवायु परिवर्तन का है असर है
टकनोर क्षेत्र के नटीन गांव के पास मोर का दिखना बना चर्चाओं का विषय
उत्तरकाशी (उत्तराखंड)। समुद्र तल से 8000 फीट की ऊँचाई पर भटवाडी़ के टकनोर क्षेत्र में मोर की मौजूदगी के बाद वन्यजीव विशेषज्ञ भी हैरान हैं तो पर्यावरण वैज्ञानिकों को भी चौंका कर रख दिया है।
आमतौर पर निचले जंगलों या गर्म इलाकों में पाए जाने वाला मोर इतनी ऊंचाई में शायद पहले कभी देखा गया हो, लेकिन पहाड़ों में मोर का दिखना चर्चाओं का विषय बन गया है। मोर के लिए समुद्र तल से महज 400 मीटर की ऊंचाई को मुफीद माना जाता है।
ग्राम प्रधान नटीन महेन्द्र सिंह पोखरियाल ने बताया कि हमारे लिए मोर देखना एक अविश्वसनीय अनुभव था। इस ऊँचाई पर मोर का दिखना अत्यधिक दुर्लभ और चौंकाने वाला है,क्योंकि सामान्यतः मोर मैदानी और निचले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। जब मैंने उसे देखा, तो उसकी खूबसूरती ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। उसका पंख फैलाकर नाचना मानो प्रकृति की एक जादुई झलक थी। मोर के रंग-बिरंगे पंख और उसकी चाल ने आस-पास के वातावरण को और भी जीवंत कर दिया।बेशक उसके पखं गिर रहे थे।
उन्होंने कहा कि इस ऊँचाई पर मौसम कठोर होता है, और ठंडे वातावरण में मोर जैसे पक्षी का यहाँ दिखना असामान्य है। लोगों ने चर्चा की कि शायद यह मोर गलती से यहाँ आ गया होगा, या फिर भोजन की तलाश में इतनी ऊँचाई पर आया होगा। इसके साथ ही, हम सबने महसूस किया कि शायद जलवायु परिवर्तन और वैश्विक ऊष्मीकरण भी इसका एक कारण हो सकता है, क्योंकि इससे वन्यजीवन और पक्षियों की प्राकृतिक आदतें बदल रही हैं।
दरअसल बीते दिनों मोर बागेश्वर में दिखाई दिया है। जिससे पर्यावरणविद भी अचंभित हैं कि आखिर मोर समुद्रतल से करीब 3100 फीट की ऊंचाई तक कैसे पहुंच गया। बागेश्वर में मोर दिखने के बाद वृक्ष पुरुष और पर्यावरणविद किशन सिंह मलड़ा का कहना है कि मोर देखा जाना बड़ी बात नहीं है। क्योंकि, इससे ज्यादा ऊंचाई रानीखेत की है। जहां हर साल मई महीने में मोर दिख जाते हैं।
क्या कहते हैं गंगोत्री नेशनल पार्क उपनिदेशक
एक स्थान से दूसरे स्थान पर आना जाना पक्षियों की आम बात है इसे पक्षियों का लोकल मर्गाशन कहते हैं। पक्षियों की ठंड और गर्मी नहीं लगती क्योंकि उनके पंख की बुनावट रक्षा कवच की तरह है।
रंगनाथ पांडेय
उपनिदेशक
गंगोत्री नेशनल पार्क
उत्तरकाशी।