उत्तराखंड: पुस्तक समीक्षा: “झंझावात” – एक शिक्षिका, सदगृहणी और संस्कृति व समाज को समर्पित मंजू जोशी की स्मृति में

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उत्तराखंड: पुस्तक समीक्षा: “झंझावात” – एक शिक्षिका, सदगृहणी और संस्कृति व समाज को समर्पित मंजू जोशी की स्मृति में संजोया गया मूल्यवान दस्तावेज

गरुड़(बागेश्वर)”झंझावात” एक भावनात्मक, प्रेरणादायक और दस्तावेजी संग्रह है, जो शिक्षिका, सदगृहणी और संस्कृति व समाज को समर्पित मंजू जोशी जी के जीवन, कार्य और प्रभाव को विविध दृष्टिकोणों से प्रस्तुत करता है। यह पुस्तक केवल किसी एक व्यक्ति की जीवनी नहीं, बल्कि एक ऐसे शिक्षकीय आदर्श का चित्रण है जो आज के समाज में दुर्लभ होता जा रहा है। संपादक त्रय — हरीश जोशी, अचला जोशी और अनुराग जोशी ने इसे महज़ श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि एक विचारोत्तेजक व आपबीती साहित्यिक यात्रा के रूप में रचा है।

पुस्तक में मंजू जोशी जी का व्यक्तित्व, कृतत्व,संघर्ष, धैर्य और सामाजिक चेतना जीवन्त रूप में उभरकर सामने आता है। उनके विद्यार्थियों, सहकर्मियों, मित्रों और परिवारजनों के संस्मरण पाठक को भावुक कर देते हैं। यह संग्रह दिखाता है कि कैसे एक शिक्षिका केवल पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाती, बल्कि पीढ़ियों को संस्कार, सोच और आत्मबल देना सिखाती है।

पुस्तक के आरम्भ में “तुभ्यमेव समर्पये” के समर्पण के साथ हमारी बात में संपादकों ने इस वियोग सृजन की विषय वस्तु को गहनता से सार संक्षेप प्रस्तुत किया है।पुस्तक की भूमिका में इतिहासकार डॉ निर्मल जोशी लिखते हैं कि…. गृहणी के बिना घर अधूरा होता है …. *झंझावात* वियोग,विरह एवं सृजन का रचनात्मक प्रयास है।
पुस्तक पर विद्वत अभिमत देते हुए डाo गोपाल कृष्ण जोशी कहते हैं कि…. पुरुष प्रधान समाज सामान्य जीवन में पत्नी की प्रशंसा करने में संकोच करता है…..।
लेकिन मुक्त भाव से *झंझावात* में पति द्वारा अपनी

भावनाओं को लिपिबद्ध कर अभिव्यक्त किया गया है…। *झंझावात* सामान्य दैवीय तूफान नहीं वरन भावनाओं की सघनता है।
पुस्तक के अध्ययन और अनुशीलन से ज्ञात होता है कि मात्र इक्यावन वर्ष की उम्र में गोलोक का वरण करने वाली कर्मयोगी मंजू जोशी का व्यक्तित्व और कृतत्व बहुआयामी रहा होगा जिसे उनसे जुड़ी जन स्मृतियों के माध्यम से स्पष्ट समझा जा सकता है।

दिवंगत मंजू जी के प्रति श्रद्धावनत रहते हुए उनके परिजनों ने वियोग के क्षणों में एक कालजयी साहित्य *झंझावात* के रूप में समाज को उपलब्ध कराया है, जैसा कि पुस्तक के सार सृजन में उद्धृत किया भी गया है…..”जो ये अनहोनी हमारे साथ घटित हुई है और जिस *झंझावात* से हम जूझ रहे हैं उससे निकल पाना तो असंभव है लेकिन अभी के लिए इससे उबरने का एक ही रास्ता सूझ रहा है,और वो है अभिव्यक्ति! अभिव्यक्ति इसलिए भी क्योंकि जिनके पास अपने हैं वो थोड़ा और प्यार करना सीखें और जिनके अपने बिछड़े हैं वो हिम्मत न हारकर आगे बढ़ना सीखें…..
रचनात्मक विचारों और आप बीते दुखों की भावपूर्ण अभिव्यक्ति *झंझावात* दुखों से बाहर निकलने का एक सशक्त सृजन बन पड़ा है जिसे आवश्यक रूप से पढ़ा ही जाना चाहिए।

समीक्षित पुस्तक:  “झंझावात”
संपादक/लेखक:  हरीश जोशी,अचला जोशी,अनुराग जोशी
मुद्रक प्रकाशक:  ज्ञानार्जन प्रिंटर्स एंड पब्लिशर्स गरुड़,बागेश्वर
पुस्तक प्राप्ति संपर्क: स्वाति धाम गरुड़ बागेश्वर।
समीक्षक: दया जोशी

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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