दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन, 1 नवम्बर 2024 को ही मनाने को लेकर एक मत
दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन, 1 नवम्बर 2024 को ही मनाने को लेकर एक मत
दीपावली को लेकर पूरे देश में भ्रम की स्थिति है। शास्त्रों और विद्वानों के अपने-अपने मत है। कुछ विद्वान 31 अक्टूबर को दीपावली का समर्थन कर रहे है तो कुछ 1 नवम्बर को दीपावली मनाने के शास्त्रीय प्रमाण दे रहे है। भ्रम की इस स्थिति को लेकर पूरा देश पंचागकर्ताओं और ज्योतिष के विद्वानों की तरफ देख रहा है। सूर्य सिद्धांत की स्थूल गणना को मानने वाले विद्वानों के अलावा देश के अधिकांश ज्योतिषाचार्य जो कि दृष्य पंचांग की सूक्ष्म गणना को स्वीकार करते है वे सभी 1 नवम्बर 2024 को ही दीपावली मनाने को लेकर एक मत है।
उज्जैन के ज्योतिर्विद और पंचागकर्ता आचार्य डॉ. सर्वेश्वर शर्मा के अनुसार सन 2024 में दीपावली 1 नवम्बर को मनाना ही शास्त्र सम्मत है। क्योंकि दृष्य पंचांग की सूक्ष्म गणना के अनुसार 31 अक्टूबर को सूर्योदय चतुर्दशी में हो रहा लेकिन सूर्यास्त से 2: 45 घंटे पहले अमावस्या प्रारम्भ हो जाएगी जो कि 1 नवम्बर को प्रदोष काल तक रहेगी। ऐसे में अमावस्या का स्पर्श चतुर्दशी और प्रतिपदा(पड़वा) दोनों तिथियों के साथ हो रहा है। कार्तिक माह के कृष्णपक्ष की अमावस्या के दिन दीपावली पर होने वाली लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में होती है,और उस समय अमावस्या होना चाहिए।
प्रदोष व्यापनी कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली (श्रीमहालक्ष्मी पूजन) मनाने का शास्त्र निर्देश है। भविष्य पुराण का कथन है कि
“प्रदोष समये लक्ष्मीं पूजयित्वा यथाक्रमम्। दीप वृक्षास्तथा कार्याः शक्त्यादेव गृहेषु च।” वि.सं. 2081 कार्तिक कृष्ण पक्ष में 31 अक्टूबर को उज्जैन में चतुर्दशी 3:53 घं.मि. पर समाप्त हुई है और इस दिन सूर्यास्त 5:45 घं. मि. पर हुआ है, जबकि 1 नवंबर को अमावस्या 6:17 घं.मि. पर सामाप्त हुई है और इस दिन सूर्यास्त 5:44 घं.मि. पर हुआ है। अर्थात् इस वर्ष अमावस्या 31 अक्टूबर और 1 नवंबर दो दिन प्रदोष काल में व्याप्त है, पहले दिन सम्पूर्ण प्रदोष काल में और दूसरे दिन केवल 33 मि. अर्थात 1 घटी 23 पल अमावस्या प्रदोष में व्याप्त है।
निर्णय सिंधु ग्रंथ प्रथम परिच्छेद के पृष्ठ 26 पर निर्देश है कि जब तिथि दो दिन कर्मकाल में विद्यमान हो तो निर्णय युग्मानुसार करें। इस हेतु अमावस्या प्रतिपदा का युग्म शुभ माना गया है अर्थात् अमावस्या को प्रतिपदा युता ग्रहण करना महाफलदायी होता है। और लिखा है कि उल्टा होय (अर्थात) चतुर्दशी का पहला दिन (युत अमावस्या ग्रहण की जावे) तो महादोष है और पूर्व में किये पुण्यों को नष्ट करता है।
दीपावली निर्णय प्रकरण में धर्मसिंधु में लेख है कि “तत्र सूर्योदयं व्याप्यास्तोत्तरं घटिकादिक रात्रि व्यापिनी दर्शे न संदेह:” अर्थात जहां सूर्योदय में व्याप्त हो के अस्तकाल के उपरांत एक घटिका से अधिक व्यापी अमावस्या होवे तब संदेह नहीं है, तदनुसार 1 नवंबर को दूसरे दिन सूर्योदय में व्याप्त होकर सूर्यास्त के बाद प्रदोष में एक घटी से अधिक विद्यमान है।
धर्म सिन्धुकार आगे लिखते हैं “तथा च परदिने ऐव दिन द्वये वा प्रदोष व्याप्तौ परा। पूर्वत्रैव प्रदोष व्याप्तौ लक्ष्मी पूजादौ पूर्वा, अभ्यंग स्नानादौ परा ऐव मुभयत्र प्रदोष व्याप्त्य भावेऽपि”
अर्थात बाद के दिन में भी अथवा दोनों दिनों में प्रदोष व्याप्ति होवे तब दूसरे दिन की तिथि लेनी, पहले दिन में ही प्रदोष विषे व्याप्ती होवे तब लक्ष्मी पूजा आदि में पहले दिन की अमावस्या लेनी,अभ्यंग स्नान आदि विशेष बाद के दिन करना।
अतः उपरोक्त तथ्यों का परिशीलन करने के उपरांत यह निर्णय लिया जाना शास्त्र सम्मत है कि दूसरे दिन अर्थात 1नवंबर 2024 को श्री महालक्ष्मी पूजन (दीपावली) किया जाना उचित होगा। इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त उपरांत विद्यमान होने से अमावस्या साकल्य पादिता तिथि होगी जो सम्पूर्ण रात्रि और अगले सूर्योदय तक विद्यमान मानी जाकर सम्पूर्ण प्रदोषकाल, वृष लग्न, व निशीथ में सिंह लग्न में लक्ष्मी पूजन के लिए प्रशस्त होगी।
सूर्य सिद्धांत की स्थूल गणना से निर्मित होने वाले पंचांगो में दूसरे दिन अमावस्या सूर्यास्त से पहले ही समाप्त हो जाने से 31अक्टूबर को उन पंचांगो में लक्ष्मी पूजन दिया गया है किंतु दृश्य गणित से निर्मित होने वाले पंचांगो में 1 नवम्बर 2024 को ही लक्ष्मी पूजन का निर्णय शास्त्र सम्मत है।
धर्मशास्त्रों में व प्राचीन आचार्यों ने दीपावली निर्णय में दर्श शब्द का विशेष रूप से प्रयोग किया है, जबकि अन्य स्थानों पर ऐसा नहीं होता है। ऐसे में दीपावली निर्णय में अमावस्या के दर्श भाग का प्रदोष में संसर्ग प्रमुख है। इसमें सूर्योदय को व्याप्त करके सूर्यास्त के बाद रात्रि में एक घटी से अधिक दर्श हो तो उस दिन दीपावली होने में कोई संदेह नहीं है। दिन में अमावस्या हो और रात्रि में प्रतिपदा हो तो उसी रात में लक्ष्मी पूजा करनी चाहिए, इसे सुखरात्रिका कहते हैं।