राजगीर में हुआ दो दिवसीय जिला स्तरीय फिलाटेली प्रदर्शिनी २०२४ का आरंभ.

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राजगीर में हुआ दो दिवसीय जिला स्तरीय फिलाटेली प्रदर्शिनी २०२४ का आरंभ.

डॉ. सुनीता रंजीता प्रिया

नालंदा / संवाद सूत्र। छोटी सी आशा लेकर आज सूरज उदित हुआ था। समय चलायमान भी था और हमारा साथ भी दे रहा था। सुबह के दस सवा दस का समय था। बुधवार का दिन था। उमस भरा ही दिन कहा जा सकता था। हम सभी समय पर पहुंच चुके थे।
समयानुसार  मंत्री श्रवण कुमार, ग्रामीण विकास एवं संसदीय कार्य विभाग बिहार सरकार के कर कमलों द्वारा दो दिवसीय जिला स्तरीय फिलाटेली प्रदर्शिनी २०२४ का उदघाटन संपन्न हुआ।
प्रदर्शिनी के उदघाटन समारोह में कुन्दन कुमार,अधीक्षक, डाकघर, नालंदा मण्डल द्वारा अपने सम्बोधन में सभी का इस प्रदर्शनी में आगमन पर स्वागत किया गया व दो दिनों में होने वाले कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी गई।
श्री अनिल कुमार, भारतीय डाक सेवा, मुख्य डाक महाध्यक्ष, बिहार के द्वारा विशेष आवरण के बिमोचनकर्ता थे तो माननीय मनोज कुमार, भारतीय डाक सेवा, डाक महाध्यक्ष, पूर्वी प्रक्षेत्र भागलपुर कीअध्यक्षता में कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी । इस शुभ अवसर पर माननीय सांसद कौशलेन्द्र कुमार, नालंदा लोक सभा, प्रदर्शनी के बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे।

नालंदा डाक प्रमंडल, द्वारा दो दिवसीय जिला स्तरीय डाक टिकट प्रदर्शिनी का शुभारंभ नालंदा विश्वविद्यालय राजगीर मे किया गया।

प्रदर्शिनी का नेतृत्व कुन्दन कुमार, अधीक्षक डाकघर, नालंदा मण्डल द्वारा किया गया। मौके पर नालंदा विस्वविद्यालय, राजगीर के कुलपति अभय कुमार सिंह भी विशिष्ट अतिथि के रूप मे उपस्थित रहे। डाक विभाग का उद्देश्य डाक टिकट जारी करने के साथ साथ उससे संबन्धित इतिहास की जानकारी देना।
श्री अनिल कुमार, भारतीय डाक सेवा, मुख्य डाक महाध्यक्ष, बिहार ने अपने सम्बोधन मे इस डाक टिकट प्रदर्शनी के भव्य आयोजन की सराहना की।
इस प्रदर्शिनी में आगंतुकों की सुविधा के लिए एक काउंटर बनाया गया। इस मौके पर कुन्दन कुमार, डाक अधीक्षक नालंदा सहित मनोज कुमार, सहायक डाक अधीक्षक (मू ), डाक निरीक्षक इंदेश विक्रांत, विवेक कुमार, विकास राय, श्री अमलेश कुमार डाकपाल प्रधान डाकघर एवं डाक विभाग के अन्य अधिकारीगण व कर्मचारीगण भी उपस्थित रहे।

दूसरा दिन : राजगीर : दो दिवसीय जिला स्तरीय फिलाटेली प्रदर्शिनी २०२४ :
प्रेरक प्रसंग : छोटी सी आशा : जीने की आशा

प्रतिभागियों के मध्य होने वाली विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में हम नौनिहालों के साथ एक छोटी सी आशा लेकर उतरे थे। हम स्वस्थ्य खेल भावना की मानसिकता रखने वाले प्रतिभागियों की तरह पूरी खेल भावना के साथ होने वाली प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने की आकांक्षा रखते हैं।
खेल भावना में तो हार जीत लगी होती है। हमें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना है। दो या दो से अधिक व्यक्तियों या समूहों के बीच किसी समान इच्छित वस्तु के लिए प्रतिद्वंद्विता, जिसके परिणामस्वरूप आमतौर पर एक विजेता और एक पराजित होता है, लेकिन जरूरी नहीं कि पराजित पक्ष ही नष्ट हो जाए।

एक सार्थक प्रयास में कनिष्ठ वर्ग में चतुर्थ वर्ग की नन्ही फलक ने चित्र कला प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल कर लिया तो दूसरी तरफ़ वर्ग छ की रितिका राज ने अपना तृतीय स्थान पर काबिज हुई।
सबसे महत्वपूर्ण था डाक टिकटों के डिज़ाइन के सन्दर्भ हुई वरिष्ठ वर्ग की प्रतिस्पर्धा। डाक टिकटों के डिज़ाइन और उनके जारी होने के समय की सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकताओं के कारण, वे टिकट संग्रहकर्ताओं के लिए काफ़ी कीमती होते हैं।

भारत में स्मारक डाक टिकट जारी किए जाते हैं, जिन पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के लोगों की तस्वीरें होती हैं. इसमें सप्तम वर्ग की छात्रा स्वाति द्वितीय पादन पर रही। अब ख़ुशी हमारे दरवाज़े पर दस्तक़ देने लगी थी। हम सभी शक्ति समूह की मेहनत रंग लाने लगी थी। प्रयास जब सफलता में तब्दील होने लगती है तो पाँव जमीन पर नहीं पड़ते हैं।
अब थी बारी नृत्य की। अनोखी ,भाव्या, इना ,शिफ़ा ,कृति , शरण्या और प्रिया को हम शक्ति बहनों यथा अन्वेषा , अनीता , प्रीति ,का बच्चों के साथ नृत्य की भाव भंगिमा , स्टैपिंग्स का प्रयास का सही आकलन मंच पर दिखना और दिखाना था।

फोटो…..चाँद तारों को छूने की आशा आसमानों में उड़ने की आशा 

भारत के बंगाल लोक नृत्य के प्रसिद्ध लोक धुन ‘ फागुनीरो मोहनाय ‘ पर हमारी छात्राओं ने मनभावन प्रस्तुति दी। उम्मीद तब ही जगने और जगाने लगी थी इस वर्ग में भी हम कुछ न कुछ जरूर हासिल करेंगे। हमें मनोबांछित परिणाम भी मिला। हमारे नृत्य को खूब सराहना मिली। हम इतनी ख़ुशी में ही बहुत खुश थे। मंचासीन लोगों ने हमारी मुक्त कंठ से प्रसंशा की थी जो हमारे लिए सबसे बड़ा पारितोषिक था।

घर लौटे तो गहरी शाम हो चुकी थी। हम सभी को घर लौटते लौटते आठ सवा आठ बज चुके थे। थकान थी मगर काफूर हो चुकी थी। नृत्य में मिले द्वितीय स्थान की प्रशस्ति हम सभी की ख़ुशी की खास वजहें थी।
एक प्रेरक प्रसंग छोटी सी आशा : जीने की आशा को लिपिबद्ध कर रहीं थी। यह थी हमारी एकता की शक्ति।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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