आज का पंचांग/ ऋषि चिंतन
🕉 🌹 **शुभ प्रभातम**🌹
🔱 *14-11-24 गुरुवार🔱*
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*🚩 _कार्तिक शुक्ल पक्ष त्रयोदशी प्रातः 9:43 तक तत्पश्चात चतुर्दशी*_🚩
वैकुण्ठ चतुर्दशी
🌷 *28 गते कार्तिक*🌷
*सूर्योदय प्रातः 6:39*
*सूर्यास्त सायं 5:12*
💐 *आपका दिन शुभ हो*💐
ऋषि चिंतन
छिद्रान्वेषण त्यागें
।।गुण ग्राहक बनें।।
👉 *हम अपने भीतरी “दृष्टिकोण” को बदलें तो बाहर जो कुछ भी दिखाई पड़ता है, वह सब कुछ बदला-बदला दिखाई देगा।* आँखों पर जिस रंग का चश्मा पहना होता है, बाहर की वस्तुएँ उसी रंग की दिखाई पड़ती हैं। *अनेक लोगों को इस संसार में केवल पाप और दुर्भाव ही दिखाई पड़ता है। सर्वत्र उन्हें गंदगी ही दीख पड़ती है। इसका प्रधान कारण अपनी आंतरिक मलीनता ही है।* इस संसार में अच्छाइयों की कमी नहीं, श्रेष्ठ और सज्जन व्यक्ति भी सर्वत्र भरे हैं, *फिर हर “व्यक्ति” में कुछ न कुछ अच्छाई तो होती ही है। “छिद्रान्वेषण” छोड़कर यदि हम “गुण-अन्वेषण” करने का अपना स्वभाव बना लें, तो घृणा और द्वेष के स्थान पर हमें प्रसन्नता प्राप्त करने लायक भी बहुत कुछ इस संसार में मिल जायेगा।* बुराइयों को सुधारने के लिये भी हम घृणा का नहीं, सुधार और सेवा का दृष्टिकोण अपनाएँ तो वह कटुता और दुर्भावना उत्पन्न न होगी, जो संघर्ष और विरोध के समय आमतौर से हुआ करती है।
👉 *दूसरों को सुधारने से पहले हमें अपने सुधार की बात सोचनी चाहिए।* दूसरों से सज्जनता की आशा करने से पूर्व हमें अपने आपको सज्जन बनाना चाहिए। *दूसरों की दुर्बलताओं के प्रति एकदम आग बबूला हो उठने से पहले हमें यह भी देखना उचित है कि अपने भीतर कितने दोष-दुर्गुण भरे पड़े हैं।* बुराइयों को दूर करना एक प्रशंसनीय प्रवृत्ति है। *अच्छे काम का प्रयोग अपने से ही आरंभ करना चाहिए।* हम सुधरें, हमारा दृष्टिकोण सुधरे तो दूसरों का सुधार होना कुछ भी कठिन न रह जायेगा।
👉 *दूसरों के द्वारा अपने प्रति जो उपकार हुए हैं, उनका यदि हम विचार करते रहें तो यही अनुभव होगा कि हमारे निकटवर्ती सभी लोग बड़े उपकारी, सेवाभावी और स्वर्गीय प्रकृति के हैं।* इनके साथ रहने से अपने को सुख ही सुख अनुभव करना चाहिए। इसके विपरीत यदि उनके दोष ढूँढ़ने लगें और उन घटनाओं का स्मरण किया करें, जिनमें उन्होंने कुछ अपकार किये हों तो हमें अपने सभी स्वजन संबंधी बड़े दुष्ट प्रकृति के, अपकारी, असुर एवं शत्रु प्रतीत होंगे और ऐसा लगेगा कि इन लोगों का सम्पर्क हमारे लिए नरक के समान दु:खदायी है।
*समस्त समस्याओं का समाधान-अध्यात्म पृष्ठ-२५*
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य