आज का पंचांग, ऋषि चिंतन

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आज का पंचांग/ऋषि चिंतन

🪔 ३१ अक्टूबर २०२४ गुरुवार 🪔
//कार्तिक कृष्णपक्षचतुर्दशी २०८१ //
🪔🪔 शुभ दीपावली 🪔🪔

*‼ऋषि चिंतन‼*
“उपासना” और “पूजा-पाठ”
दोनों अलग अलग हैं
👉 “उपासना” का अर्थ है- “पास बैठना”।* परमात्मा के पास बैठने से ही ईश्वर की उपासना हो सकती है। *साधारण वस्तुएँ तक अपनी विशेषताओं की छाप दूसरों पर छोड़ती हैं, तो परमात्मा के पास बैठने वालों पर उन दैवी विशेषताओं का प्रभाव क्यों नहीं पड़ेगा ?* पुष्प वाटिका में जाते ही फूलों की सुगन्ध से चित्त प्रसन्न होता है। चन्दन के वृक्ष अपने समीपवर्ती वृक्षों को सुगन्धित बना देते हैं। सज्जनों के सत्सङ्ग से साधारण व्यक्तियों की मनोभावनाएँ सुधरती हैं, *फिर परमात्मा अपनी महत्ता की छाप उन लोगों पर क्यों न छोड़ेगा जो उसकी समीपता के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।*
👉 आत्मा के परमात्मा के निकट पहुँचने पर वही बात बनती है जो गरम लोहे और ठण्डे लोहे के एक साथ बाँधने पर होती है। गरम लोहे की गर्मी ठण्डे में जाने लगती है और थोड़ी देर में दोनों का तापमान एक सरीखा हो जाता है। दो तालाब जब तक अलग-अलग़ रहते हैं तब तक उनके पानी का स्तर नीचा-ऊँचा बना रहता है, पर जब बीच में नाली निकालकर उन दोनों को आपस में सम्बन्धित कर दिया जाता है, तो अधिक भरे हुए तालाब का पानी दूसरे-कम पानी वाले तालाब में चलने लगता है और यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि दोनों का जल स्तर समान नहीं हो जाता।
👉 *दो जलाशयों का मिलना या गरम-ठण्डे लोहे का परस्पर मिलना जिस प्रकार एकरूपता की स्थिति उत्पन्न करता है उसी प्रकार “उपासना” द्वारा “आत्मा” और “परमात्मा” का मिलन होने पर जीव में दैवी गुणों की तीव्रगति से अभिवृद्धि होने लगती है।*
👉 *किसी व्यक्ति की “उपासना” सच्ची है या झूठी है उसकी एक ही परीक्षा है कि साधक की अन्तरात्मा में सन्तोष, प्रफुल्लता, आशा, विश्वास और स‌द्भावना का कितनी मात्रा में अवतरण हुआ।* यदि यह गुण नहीं आए हैं और हीन वृत्तियाँ उसे घेरे हुए हैं, तो समझना चाहिए कि यह व्यक्ति *”पूजा – पाठ”* कितना ही करता हो *”उपासना”* से अभी दूर ही हैं ।
👉 *”पूजा-पाठ” अलग बात है, “उपासना” अलग।* *”उपासना”* के लिये *”पूजा पाठ”* से कर्मकाण्ड की *”चिह्नपूजा”* करते रहने मात्र से *”उपासना”* का उद्देश्य प्राप्त नहीं हो सकता। जीव को *”जीवन”* धारण करने के लिये *”शरीर”* की आवश्यकता होती है; पर *”शरीर”* ही *”जीवन”* नहीं है। जीव विहीन शरीर देखा तो जा सकता है पर उसका कोई लाभ नहीं। *इसी प्रकार “उपासना” विहीन “पूजा” भी होती तो है पर उससे कुछ प्रयोजन सिद्ध नहीं होता।

ईश्वर और उसकी अनुभूति पृष्ठ-८०
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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