उत्तराखंड में अवधारणा से भटक गया है त्रिस्तरीय पंचायत राज

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उत्तराखंड में अवधारणा से भटक गया है त्रिस्तरीय पंचायत राज

गरुड़। संविधान प्रदत्त त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की आत्मा को मरते हुए कहीं देखना है तो उत्तराखंड इसका उत्कृष्ट नमूना है,जहां पर पंचायती राज अपनी अवधारणा से ही भटक गया है।

राज्य में वर्तमान गतिशील त्रिस्तरीय पंचायती चुनावों के बीच ये बेबाक टिप्पणी करते हुए स्वैच्छिक ग्रामीण विकास प्रबंधन और पंचायती राज जन हस्तक्षेप मामलों के जानकार स्वतंत्र पत्रकार हरीश जोशी ने कहा है कि भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने स्वीकार किया था कि ग्रामीण विकास के लिए जो एक रुपया केंद्र से भेजा जाता है उसका पिचासी पैसा मार्ग में ही कमीशन की भेंट चढ़ जाता है और गांवों तक रुपए में पंद्रह पैसा ही पहुंचता है जिसके समाधान हेतु संविधान के 73 वें संशोधन के माध्यम से त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में आई।
इस त्रिस्तरीय व्यवस्था का पहला स्तर गांव,दूसरा ब्लॉक और तीसरा जनपद है। गांव के भीतर भी तीन स्तर हैं पहला ग्रामसभा जिसमें संबंधित ग्राम के समस्त निर्वाचक और उनके परिवार सम्मिलित होते हैं,दूसरा निर्वाचित ग्राम पंचायत सदस्य और तीसरा ग्राम प्रधान।

अधिनियम कहता है कि संबंधित ग्राम पंचायत सदस्य अपने वार्ड की समस्याओं और विकास कार्यों को संकलित कर ग्राम पंचायत की बैठक में प्रस्तुत कर प्रस्ताव पारित करा इसे ग्राम प्रधान के माध्यम से ग्राम सभा की खुली बैठक में पारित करा संबंधित ग्राम प्रधान द्वारा इसे क्रियान्वयन हेतु उच्च सदन के लिए संबंधित क्षेत्र पंचायत सदस्य को सौंपा जाता है जिस पर ब्लॉक प्रमुख के समक्ष क्षेत्र पंचायत सदन में विचार विमर्श उपरांत समग्र ब्लॉक के प्रस्ताव जिला पंचायत को दिए जाते हैं। जिला पंचायत में प्रस्तावपारण बाद तदनुसार बजट की व्यवस्था होती है।

परन्तु व्यवहार में देखा जाए तो ग्राम पंचायत सदस्य का चुनाव न होकर ग्राम प्रधान द्वारा वार्ड वार उन्हें मनोनीत जैसा कर दिया जाना ही पंचायती राज व्यवस्था का बुनियादी खोट साबित हो रहा है, बी डी सी सदस्य,जिला पंचायत सदस्य का कार्य सिर्फ ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष चुनने और ठेकेदारी भर मान लिया गया है जो कि संवैधानिक पंचायती व्यवस्था पर कुठाराघात है।
त्रिस्तरीय पंचायती राज चुनावों के वर्तमान परिवेश से आहत श्री जोशी का मानना है कि ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता से कराया जाए तो ही इस कुत्सित मानसिकता में कुछ सुधार दृष्टिगोचर हो सकता है।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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