वन संरक्षण की अद्वितीय मिसाल है वन पंचायत मायावती के सघन वन, जो अपने आगोश में बांधे हुए हैं, पूरे प्राकृतिक चक्र को
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वन संरक्षण की अद्वितीय मिसाल है वन पंचायत मायावती के सघन वन, जो अपने आगोश में बांधे हुए हैं, पूरे प्राकृतिक चक्र को
लोहाघाट। आज मौसम चक्र में आए बदलाव के कारण जहां हिमालय आग उगलने की स्थिति में पहुंच गया है,जल स्रोतों का जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है,मौसम चक्र में आए बदलाव के कारण ऐसी परिस्थितियां पैदा होती जा रही हैं कि गंगा यमुना के उद्गम हिमालयी क्षेत्र के लोगों को पानी की प्यास बुझाने के लिए जो कठिनाइयां झेलनी पड़ रही हैं,उसका अनुभव तो दूर न जाकर लोहाघाट नगर के लोग बखूबी बता सकते हैं, जहां चार दिन में पानी मिल रहा है। उसमें भी शुद्धता की कोई गारंटी नहीं। लोहाघाट से 9 किलोमीटर दूर वन पंचायत मायावती के सघन वनों के बीच स्थित अद्वैत आश्रम एवं यहां के धर्मार्थ चिकित्सालय की ओर जाने पर दूर से ही सेवा,त्याग व समर्पण की महक आने लगती है, जिसे अनुभव कर व्यक्ति अपने को ईश्वरीय सत्ता से जोड़ लेता है। आज जंगलों की सुरक्षा व उन्हें दावाग्नि से बचाने के लिए तमाम प्रयास किया जा रहे हैं, लेकिन 152 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली वन पंचायत मायावती का कुशल प्रबंधन,देख रेख एवं वृक्षों की सुरक्षा से यहां ऐसा जंगल तैयार किया गया है कि जिसकी उत्तराखंड में कोई मिसाल नहीं मिल सकती। इस जंगल के बीच से सूर्य की किरणें छन-छन कर धरती को आलोकित करती हैं, वहीं जैव विविधता एवं वन्य जीवों का यहां खुला संसार है। यहां की अनुकूल परिस्थितियों को देखकर अब यहां बंगाल टाइगर ने भी अपना आशियाना बना दिया है, जिसकी सुबह-शाम गूंज सुनाई देती है।
भले ही समीपवर्ती गांव के जलस्रोत सूख चुके हैं, लेकिन इस वन पंचायत में बांज ,बुरांश,काफल,उतीश आदि विभिन्न प्रजातियों के वृक्षों की बहुल्यता के कारण यहां के जंगलों से निकलने वाली जलधारा से कई गांव के लोगों की प्यास बुझती आ रही है। जंगल में मानवीय हस्तक्षेप न होने से वन्य जीवों का स्वच्छंद विचरण होता है, जिससे आसपास के गांवों के लिए कोई खतरा नहीं रहता। वन पंचायत को दावाग्नि से बचाने के लिए यहां पूरी सावधानी रखी जाती है। अलबत्ता आसपास के पंचायती जंगलों में लगी आग को बुझाने में आश्रम के संत भी वन विभाग एवं ग्रामीणों का सहयोग करते आ रहे हैं।
बच्चों की तरह की जाती है जंगल की देखरेख – स्वामी शुद्धिदानंद।
अद्वैत आश्रम के अध्यक्ष स्वामी शुद्धिदानंद जी महाराज का कहना है कि यहां की माटी में 125 वर्ष पूर्व महामनीषी स्वामी विवेकानंद जी के चरण पड़े थे। उसके बाद यहां की पहाड़ियों को वनाच्छादित
करने का ऐसा प्रयास किया गया कि कुछ वर्षों में चारों ओर हरियाली पैदा हो गई। इस जंगल को तैयार करने में अर्थ नहीं,समर्पण भाव से हर वृक्ष को स्वामी विवेकानन्द जी को समर्पित किया गया। इस कार्य में वन विभाग हमारा सहयोगी बनता आ रहा है। यहां के जंगल में अब बंगाल टाइगर की दहाड़ भी सुनाई दे रही है।
स्वामी शुद्धिदानंद
उत्तराखंड में मायावती वन पंचायत के समान कहीं नहीं है ऐसा मॉडल वन-
डीएफओ।
डीएफओ नवीन चंद्र पंत के अनुसार मायावती के वन उत्तराखंड की ऐसी मिसाल हैं जहां हर वृक्ष से सेवा व समर्पण की महक तथा बयार आती है। यहां जैव विविधता एवं वन्य जीवों का ऐसा खुला संसार है,जहां वे स्वच्छंद विचरण करते हैं। मानवीय हस्तक्षेप व दावाग्नि से सुरक्षित रखने के कारण यहां आने वाला हर व्यक्ति इस जंगल को देखकर अनंत में खो जाता है। इसकी अनुभूति तो यहां आकर ही की जा सकती है।
– मायावती वन पंचायत के सघन वनों का दृश्य।