त्यौहारों की मिठास, सेहत पर भारी न पड़ने पाए

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त्यौहारों की मिठास, सेहत पर भारी न पड़ने पाए

धनतेरस से आरंभ होकर दिवाली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज तक का समय भारत में उत्सवों का चरम माना जाता है। दीपों की जगमगाहट, परिजनों का मिलन, उपहारों का आदान-प्रदान और स्वादिष्ट पकवान इस मौसम की पहचान हैं। किंतु बदलते समय के साथ इन उत्सवों का स्वरूप भी बदला है। जहां पहले घर की बनी शुद्ध मिठाइयों का चलन था, वहीं आज बाजार की रेडीमेड मिठाइयों और पैक्ड स्नैक्स ने उनकी जगह ले ली है। नतीजा यह कि त्यौहारों की मिठास के साथ सेहत के लिए कड़वाहट भी बढ़ती जा रही है। यद्यपि पिछले कुछ समय से मार्केट में त्यौहारों पर बिकने वाली मिठाईयों में मिलावट के चलते, लोग परहेज करने लगे। फिर भी दिवाली जैसे त्यौहार मिठाई के बिना अधूरे ही लगते हैं।

भारत में अब मिठाइयां सिर्फ परंपरा का हिस्सा नहीं रहीं, बल्कि दिखावे और प्रतिस्पर्धा का प्रतीक भी बन गई हैं। परंतु इस बाहरी चमक के पीछे एक गंभीर समस्या छिपी है—मिलावट। खाद्य सुरक्षा विभाग की रिपोर्टों के अनुसार, त्यौहारों के दौरान बाजार में बिकने वाली लगभग 20–25 प्रतिशत मिठाइयों में किसी न किसी स्तर पर मिलावट पाई जाती है। नकली मावा, सिंथेटिक रंग, सुगंध और सस्ते तेलों में तला गया घी—ये सब पदार्थ शरीर के लिए जहर का काम करते हैं। ऐसे तत्व लिवर, किडनी और पाचन तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं, और कभी-कभी गंभीर विषाक्तता का कारण भी बनते हैं।

दूसरी ओर, त्योहारों का यह मौसम पहले से मौजूद बीमारियों के लिए भी चुनौती बन जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में करीब 10 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं, और लगभग 13 करोड़ लोग प्रीडायबिटिक स्थिति में हैं। मोटापा भी तेजी से बढ़ रहा है—नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में हर तीसरा वयस्क व्यक्ति मोटापे से ग्रसित है। यह स्थिति न केवल मधुमेह बल्कि उच्च रक्तचाप, फैटी लिवर और हृदयाघात जैसी बीमारियों को जन्म देती है।

त्योहारों में मिठाइयों का सेवन बढ़ने से रक्त शर्करा का स्तर अचानक बढ़ जाता है। ऐसे में डायबिटिक व्यक्ति यदि नियंत्रण न रखे तो यह स्थिति जानलेवा साबित हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक औसत भारतीय परिवार दिवाली सप्ताह में सामान्य दिनों की तुलना में 30–40% अधिक चीनी और वसा का सेवन करता है। यह अतिरिक्त कैलोरी शरीर में वसा के रूप में जमा होकर दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न करती है।

अब सवाल उठता है—क्या त्योहारों की खुशियां मनाते हुए स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर देना उचित है? बिल्कुल नहीं। इन दिनों में कुछ सरल सावधानियां अपनाकर हम उत्सव और स्वास्थ्य दोनों का आनंद ले सकते हैं। जैसे—घर की बनी मिठाइयों को प्राथमिकता दें और बाहर की मिठाइयां लेते समय पैकिंग पर भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ( ‘FSSAI’ )नंबर अवश्य जांचें। कृत्रिम रंगों और अत्यधिक मीठे या चाशनीदार पदार्थों से बचें। सूखे मेवे, गुड़, शहद या स्टीविया जैसे प्राकृतिक विकल्पों का प्रयोग करें। डायबिटीज या मोटापे के रोगी त्योहारों के दौरान नियमित रूप से दवा और व्यायाम जारी रखें। परिवार के साथ मिठास साझा करें, पर मात्रा सीमित रखें, मिठाई का स्वाद जीभ पर हो, आदत न बने।

भारतीय संस्कृति में हर त्योहार का उद्देश्य हर्ष और सामूहिकता का उत्सव है, न कि असंयम और अपव्यय का। इसलिए इस बार जब दीपों की रौशनी घर-आंगन में फैले, तो मन में यह संकल्प भी जलाएं कि त्योहारों की मिठास सेहत की कीमत पर न हो। संतुलित खानपान, शुद्धता और जागरूकता ही असली ‘मिठास’ हैं—जो शरीर और आत्मा दोनों को प्रसन्न करती हैं।

त्योहारों का मौसम आनंद और एकता का प्रतीक है, पर इसके साथ स्वास्थ्य का ध्यान रखना आज की आवश्यकता बन चुका है। यदि हम सजग रहें तो न केवल खुद को बल्कि अपने परिवार को भी त्योहारों की वास्तविक मिठास जैसे स्वास्थ्य, सुरक्षा और संतुलन का उपहार दे सकते हैं।

राजेंद्र कुमार शर्मा
देहरादून , उत्तराखण्ड।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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