बदलते परिदृश्य में देश की शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों की भूमिका

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बदलते परिदृश्य में देश की शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों की भूमिका

हमारे देश में शिक्षकों को बहुत से विशेषणों से अलंकृत किया जाता रहा है। शिक्षक को राष्ट्र-निर्माता, पथ-प्रदर्शक कहा जाता है। शिक्षक शिक्षा के साथ-साथ अपने शिष्यों को जीवन कौशल और नैतिक मूल्यों का भी ज्ञान प्रदान करते हैं। मानव जाति के लिए नई सोच और दृष्टिकोण की अपेक्षा भी शिक्षकों से ही की जाती है। शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका समाज को सशक्त और समृद्ध बनाने में भी है। एक अच्छे गुरु में गहन ज्ञान, विद्वत्ता, करुणा, नैतिकता व चरित्र, नवीनता, नवाचार, अनुशासनप्रियता और समानता का भाव अपेक्षित है। यही गुण एक गुरु को महान बनाते हैं और शिष्यों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

सशक्त समाज के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका को समझते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्व० डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का कहना था कि शिक्षण एक पेशा नहीं, बल्कि मिशन है तथा देश में सर्वश्रेष्ठ बुद्धि वाले लोग शिक्षक होने चाहिए। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे राधाकृष्णन में एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण विद्यमान थे तथा अध्यापन से उनको गहरा प्रेम था। उनका मानना था कि शिक्षा केवल ज्ञान का प्रसार नहीं है, बल्कि यह चरित्र-निर्माण और नैतिक मूल्यों के विकास का माध्यम भी है। उनका जीवन और कार्य आज भी शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रेरणा-स्रोत के रूप में देखा जाता है तथा उनके जन्मदिवस के अवसर पर हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। उनके विचार आज भी विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए मार्गदर्शक हैं।

बदलते समय के साथ हमारी शिक्षा व्यवस्था में भी बदलाव जरूरी है। इसी सोच के साथ 29 जुलाई, 2020 को केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की घोषणा की गई थी। यह नीति 34 साल बाद शिक्षा नीति (1986) के स्थान पर लाई गई और इसका उद्देश्य 21वीं सदी की जरूरतों और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए देश की शिक्षा प्रणाली को नया स्वरूप देना है। बदलते परिदृश्य में शिक्षकों को बेहतर कार्य स्थितियां दी जाएंगी। उत्कृष्टता और योगदान के लिए उनको पुरस्कृत किया जाएगा, उनका पेशेवर विकास भी किया जाएगा तथा उनके मूल्यांकन और प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जाएगी, जिससे उनकी गुणवत्ता और क्षमता को सुनिश्चित किया जा सके।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति को देश में लागू हुए 5 साल हो चुके हैं, इसका असर हमारे शिक्षा संस्थानों में दिखना शुरू हो गया है। आशा है, आने वाले समय में नवीन शिक्षा नीति द्वारा हम यह परिवर्तन अपने समाज में देख पाएंगे, जिसकी अपेक्षा हमारी युवा पीढ़ी और राष्ट्र को है। सर्वोत्तम भविष्य सुनिश्चित करने हेतु शिक्षकों का सशक्तिकरण और उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए प्रोत्साहन हमारी शिक्षा संबंधी योजनाओं में शामिल होना चाहिए। अभी हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों में उत्कृष्ट शिक्षकों और शिक्षक-छात्र अनुपात में सुधार प्राथमिकता होनी चाहिए।
भारत को ज्ञान की महाशक्ति तथा विकसित देश के रूप में देखने के संकल्प को ध्यान में रखना होगा। हमें अच्छे व्यक्तित्व के धनी वैश्विक नागरिक तैयार करने हैं। यह कार्य प्रज्ञावान समर्थ गुरुजनों के माध्यम से ही संभव है। गुरु-शिष्य संबंधों को भी आत्मीय बनाने की जरूरत है। आइए, हम शिक्षक दिवस पर अपने गुरुओं की वंदना करें और राष्ट्र-निर्माण में उनका योगदान लें।

लेखक: प्रसून अग्रवाल, वर्तमान में शिक्षक, पूर्व पत्रकार एवं पूर्व वकील, किच्छा (ऊधम सिंह नगर)

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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