धराली से थराली तक तबाही का सिलसिला….हिमालय की बढ़ती त्रासदियां-बादल फटना,बाढ़ और भूस्खलन से दहला उत्तराखंड–कमल किशोर डुकलान

धराली से थराली तक तबाही का सिलसिला….हिमालय की बढ़ती त्रासदियां-बादल फटना,बाढ़ और भूस्खलन से दहला उत्तराखंड–कमल किशोर डुकलान
गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)। हिमालय पृथ्वी की सबसे युवा और भूगर्भीय दृष्टि से अस्थिर पर्वत श्रृंखला है। इसकी ऊंची चोटियां,खड़ी ढलानें,भूकंपीय गतिविधियां और विशाल ग्लेशियर इसे प्राकृतिक आपदाओं के लिए अत्यंत संवेदनशील बनाते हैं। विशेषकर उत्तराखंड का पर्वतीय भूभाग हर साल बादल फटने,अचानक बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं का दंश झेल रहा है।
धराली से थराली तक तबाही का सिलसिला-उत्तरकाशी जिले के धराली में 5 अगस्त 2025 को बादल फटने और अचानक आई बाढ़ ने जनजीवन तहस-नहस कर दिया। कई घर दुकानें और वाहन मलबे में समा गए। इसरो की सैटेलाइट छवियों ने दिखाया कि इस आपदा ने नदी के सैकड़ों साल पुराने बहाव मार्ग को बदल डाला और लगभग 20 हेक्टेयर भूमि मलबे से पट गई। इधर चमोली के थराली में 22-23 अगस्त की रात आसमानी आफत ने पिंडर और प्रणमति नदियों को उफान पर ला दिया। कई वाहन बह गए,दो घर मलबे में दब गए और लोग लापता हो गए। टूटी सड़कें और बाधित संपर्क मार्ग राहत व बचाव कार्यों में बड़ी रुकावट बने।
आपदा का वैज्ञानिक कारण-जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि-क्यूम्यूलोनिंबस बादल 15 किमी की ऊंचाई तक जाकर जब भारी नमी लाते हैं,तो बादल फटने की घटनाएं होती हैं। ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी का औसत तापमान 0.75°C बढ़ चुका है,जिससे ग्लेशियर पिघलने और झीलों के वाष्पीकरण ने इन आपदाओं को और तेज किया है। अनुमान है कि 2030 तक हिमालयी ग्लेशियर 30-50% तक सिकुड़ जाएंगे,जिससे आपदाओं का खतरा और बढ़ेगा। मानवीय गतिविधियां भी संकट को गहरा रही हैं-अंधाधुंध जंगलों की कटाई से मिट्टी की जल-धारण क्षमता कम हो रही है। अनियोजित सड़क और बांध निर्माण ने भूस्खलन को बढ़ावा दिया है। बद्रीनाथ-माणा मार्ग पर बार-बार होने वाले भूस्खलन इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। त्रासदी के ताजा उदाहरण-केदारनाथ 2013-मंदाकिनी और अलकनंदा की बाढ़ ने 6,000 से अधिक लोगों की जान ली। रैणी चमोली 2021-हिमनद झील टूटने से ऋषिगंगा प्रोजेक्ट तबाह,200 लोग लापता।
धराली 2025-20 हेक्टेयर क्षेत्र में मलबा,पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था चौपट। थराली 2025 रातों-रात तबाही,गांव अंधेरे में और संपर्क मार्ग ध्वस्त। सामाजिक/आर्थिक असर-धराली और हर्षिल जैसे पर्यटन केंद्र पूरी तरह प्रभावित हुए हैं। सैकड़ों परिवार बेघर हो गए हैं,स्थानीय व्यवसाय ठप हैं और आजीविका संकट में है। पौड़ी,टिहरी और रुद्रप्रयाग जिलों में लगातार भूस्खलन और सड़कों के टूटने से लोग महीनों तक अलग-थलग हो जाते हैं। आपदा प्रबंधन अब भी अधूरा-आपदा प्रबंधन टीमें राहत कार्य कर रही हैं,परन्तु दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच की कमी और सीमित संसाधन सबसे बड़ी चुनौती है। किश्तवाड़ में स्थापित कंट्रोल रूम और हेल्प डेस्क जैसे उदाहरण आशा जगाते हैं,लेकिन ऐसी व्यवस्थाएं हर क्षेत्र में नहीं हैं।
सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम अभी भी अपर्याप्त हैं। समाधान और आगे का रास्ता-जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण-स्थानीय और वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन कम करना। हिमनद झील प्रबंधन-सुरक्षित जल निकासी प्रणालियों और उपग्रह निगरानी की व्यवस्था। हरित उपाय-बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और प्राकृतिक अवरोधों (घास,झाड़ियां,चट्टानें) का संरक्षण। अनियोजित निर्माण पर रोक-सड़कों और जलविद्युत परियोजनाओं में पर्यावरणीय स्थिरता को सर्वोच्च प्राथमिकता। सामुदायिक प्रशिक्षण-स्कूलों और पंचायत स्तर पर आपदा प्रबंधन शिक्षा।
उत्तराखंड के धराली,थराली और स्यानाचट्टी की घटनाएं हिमालयी जीवन पर मंडरा रहे गहरे संकट की चेतावनी हैं। यह केवल प्राकृतिक घटनाएं नहीं,बल्कि मानवीय हस्तक्षेप और जलवायु परिवर्तन की संयुक्त देन हैं। यदि सरकार,वैज्ञानिक और स्थानीय समुदाय मिलकर ठोस कदम नहीं उठाते,तो आने वाले दशकों में हिमालय वासियों का जीवन और जैव-विविधता स्थायी खतरे में पड़ जाएगी। समय आ गया है कि हम विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधें,ताकि भविष्य की पीढ़ियां सुरक्षित और समृद्ध हिमालय देख सकें।

