इच्छाओं का सुरसा मुखी होना ही है तनाव: डॉ नगेंद्र द्विवेदी

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राजकीय महाविद्यालय रामगढ़ में तनाव प्रबंधन पर हुई कार्यशाला।

इच्छाओं का सुरसा मुखी होना ही है तनाव: डॉ नगेंद्र द्विवेदी

भवाली/रामगढ़। मनुष्य की इच्छाएं असीमित हो गई हैं और वर्तमान परिपेक्ष्य में मनुष्य इन इच्छाओं से चारों ओर से घिर गया है और यही बढ़ती हुई इच्छाएं मनुष्य के जीवन में तनाव का कारण है ।

जीवन शैली का व्यवस्थित न हो पाना ,योग ,प्राणायाम, व्यायाम को दिनचर्या का हिस्सा ना बनाना, भौतिकवाद की अंधी दौड़ में दौड़ना ,अपनी जड़ों से विमुख होना यह वह कारण है जो तनाव को जन्म देते हैं ।
यदि हम भारतीय संस्कृति, भारतीय सभ्यता से पूर्ण जीवन शैली को जिएंगे ,अपनी इच्छाओं को न्यूनतम करेंगे और स्वयं के बारे में ना सोचकर दूसरो के बारे में भी विचार करेंगे तो कहीं ना कहीं मनुष्य मात्र को तनाव से मुक्ति मिलेगी ।
यह वक्तव्य प्राचार्य डॉ नगेंद्र द्विवेदी जी ने राजकीय महाविद्यालय रामगढ़ में तनाव प्रबंधन पर समाजशास्त्र विभाग के तत्वाधान में हुई कार्यशाला में दिए।

उन्होंने तमाम रोचक किस्सों के माध्यम से जीवन से तनाव को कैसे कम किया जाए यह छात्र-छात्राओं को रोचकता के साथ बताया। उन्होंने कविताओं के माध्यम से, अपने अनुभवों के माध्यम से तनाव प्रबंधन के विभिन्न प्रकार, उपाय छात्र-छात्राओं को बताएं। उनका मानना था कि दिन में एक बार खुल कर हंसना भी तनाव प्रबंधन का समुचित माध्यम है। भाग दौड़ भरी इस दुनिया में मनुष्य हंसना ही भूल गया है और यही तनाव का सबसे बड़ा कारण है।

संस्कृत की विद्वान डॉ. माया शुक्ला ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि वर्तमान परिपेक्ष में अगर हम देखे
तो युवाओं ,आम जनमानस का आभासी दुनिया की ओर चला जाना ही तनाव का सबसे बड़ा कारण है ।हमें आभासी दुनिया की ओर न्यूनतम जाना चाहिए।अपनी जड़ों की ओर फिर से मुड़ना चाहिए और इस आभासी दुनिया से दूर जाकर अगर हम अपनी जड़ों की ओर मुड़ेंगे तो कहीं ना कहीं तनाव पर नियंत्रण पाया जा सकता है ।
परिवार ,समाज, गांव ,राष्ट्र के साथ स्वयं को जोड़कर ,सभ्यता और संस्कृति के साथ स्वयं को जोड़कर, पुराने परंपराओं के साथ स्वयं को जोड़कर कहीं ना कहीं हम तनाव से निजात पा सकते हैं ।
वर्तमान परिपेक्ष मैं देखें तो युवा स्वयं के अतिरिक्त किसी और से जुड़ना ही नहीं चाहता है और यही तनाव का सबसे बड़ा कारण है।

अर्थशास्त्र के प्राध्यापक डा. हरीश चंद्र जोशी ने तनाव प्रबंधन को रामायण के साथ जोड़ते हुए भगवान श्री राम के जीवन चरित्र के माध्यम से, तमाम किस्सौ के द्वारा छात्र-छात्राओं को तनाव से मुक्ति का मार्ग बताया ।उनका कहना था कि संयुक्त परिवार प्रथा, बुजुर्गों का सम्मान, माता-पिता की सेवा, भाईचारे की भावना ,एक दूसरे के सुख दुख में साथ निभाना और 24 घंटे में से कुछ ना कुछ समय छोटे बच्चों के साथ बिताना यकीनन तनाव को दूर करने का उपाय है। जीवन में एक या दो मित्र ऐसे होने चाहिए जिनके साथ आप अपने मन की समस्त बातें और समस्त उद्गार व्यक्त कर सकें। यह भी तनाव से छुटकारा पाने का एक प्रबल माध्यम है ।

 

जब हम अपने मन की बात कह नहीं पाते तो घुट घुट कर हम अवसाद के दलदल में पहुंच जाते हैं और यह अवसाद का दलदल हमें आत्महत्या की ओर अग्रसर करता है जो सामाजिक अभिशाप है ।

यदि कोई मित्र ना मिले तो ईश्वर के सम्मुख बैठकर भी हम अपने मन की सारी बातें कह सकते हैं।

समाजशास्त्र के प्राध्यापक हरेश राम ने इस अवसर पर पीपीटी के माध्यम से तनाव के प्रमुख कारण और उनके समाधान के बारे में छात्र-छात्राओं को बताया ।उन्होंने यह बताया कि वर्तमान परिपेक्ष्य में भाग दौड़ भरे जीवन में तनाव का होना स्वाभाविक है। लेकिन हमे प्राणायाम के माध्यम से ,सुबह की सैर के माध्यम से, सहयोगात्मक मनोवृति के साथ, सकारात्मक विचारधारा के व्यक्तियों के साथ संगत करके, आमोद प्रमोद के विविध माध्यमों को अपनाकर कहीं ना कहीं हम इस तनाव से मुक्ति पा सकते हैं।

इस अवसर पर डॉ संध्या गढ़कोटी ,डॉ निर्मला रावत नए विशेष सहयोग प्रदान किया ।
हिमांशु बिष्ट ,सुश्री दीप्ती, गणेश बिष्ट ,कमलेश, प्रेम भारती सहित तनुजा ,चित्रा ,पायल, नित्या, उर्मिला,रेखा,शीतल,कनिका ,रिया, रंजना सहित सभी छात्र-छात्राएं उपस्थित रहीं। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर हरेश राम जी ने किया।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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