गंगोत्री क्षेत्र में कटने वाले देवदार के पेड़ों के आंकड़े संतोषजनक नहीं – सुरेश भाई
गंगोत्री क्षेत्र में कटने वाले देवदार के पेड़ों के आंकड़े संतोषजनक नहीं – सुरेश भाई
बिगड़ते जलवायु का सामना करने के लिए देवदार के पेड़ों की भूमिका अहम है-संजय राणा
किसाने की आजीविका के लिए सघन वन बहुत जरूरी-विशाल जैन
उत्तरकाशी(उत्तराखंड)। हिमालय में जलवायु परिवर्तन और आपदा के विषय पर चल रही अध्ययन यात्रा भागीरथी के जल ग्रहण क्षेत्र में स्थित सुखी, जसपुर, झाला, हरसिल, धराली से होकर गंगोत्री के मंदिर तक पहुंची है। सुखी के पूर्व प्रधान गोविंद सिंह राणा और मोहन सिंह राणा ने कहा कि 1962 के युद्ध के दौरान यहां के लोगों ने सीमांत क्षेत्र तक सड़क निर्माण के लिए अपनी पुस्तैनी जमीन सरकार को निशुल्क दी थी। लेकिन अब वे दुखी मन से कह रहे हैं कि ऑल वेदर रोड उनके गांव को छोड़कर दूसरी तरफ प्रस्तावित की जा रही है। अतः उन्हें वर्षों बाद सुखी गांव से गुजर रहे गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग को यथावत रखने की मांग करनी पड़ रही है।हरसिल गांव के रघुवीर सिंह रावत, विद्या सिंह नेगी, प्रेम सिंह मार्तोलिया आदि लोगों ने अध्ययन दल के सामने कहा कि हम पीढ़ियों से जिस जमीन से आजीविका चला रहे हैं।
वह जमीन अभी भी उनके नाम नहीं है। उन्होंने रोष प्रकट किया कि केंद्र सरकार ने इसके लिए वनाधिकार कानून2006 बनाया था। जिसके आधार पर उन्हें अधिकार दिया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने कागजात संबंधित विभाग के पास जमा किए हुये हैं। लेकिन आगे कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।
झाला से जांगला के बीच में प्रस्तावित चौड़ी सड़क के नाम पर लाखों छोटी- बड़ी वन प्रजातियों का दोहन प्रस्तावित है। जिस पर झाला के”प्रकृति धन्यवाद कार्यक्रम” के संयोजक अभिषेक ने कहा की जंगल बचाकर सड़क का निर्माण किया जा सकता है।
इस विषय पर गंगोत्री धाम के पुरोहित महेश सेमवाल का कहना है कि जो सड़क बनी हुई है उस पर देवदार के पेड़ों को बचाने के लिए जसपुर, झाला, पुराली, बगोरी, हर्षिल, मुखवा से धराली या जंगला तक नई सड़क बनाती जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में यात्रा काल के समय लगने वाले जाम से राहत मिल सकती है। गंगोत्री धाम में लंबे समय से लाखों यात्री आ रहे हैं और उनके आने-जाने की सुविधा के लिए प्रकृति के साथ संयमपूर्वक व्यवहार करने की आवश्यकता है। ताकि यहां पर आने वाले पर्यटक और तीर्थ यात्रियों को यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर लाभ मिल सके।
इस घाटी में दो दिन के अध्ययन के दौरान 40 से अधिक लोगों के साक्षात्कार से पता चला कि गोमुख ग्लेशियर लगभग 30 किलोमीटर में सिकुड़ता नजर आ रहा है। बहुत लंबे समय से बर्फ़ जनवरी और फरवरी में भी नहीं पड़ रही है।जबकि पहले नवंबर से पड़ने वाली बर्फ 7-8 फीट ऊंची होती थी। लेकिन अब स्थिति ऐसी आ गई है कि यहां 2 फीट के बराबर भी बर्फ नहीं दिखाई देती है।
यहां की खेती बाड़ी से जुड़े कास्तकार कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव उनके सेब एवं पारंपरिक मोटे अनाजों की खेती की फसलों पर दिखाई दे रहा है। कीटनाशक और बाजार की खाद का उपयोग करने के बाद ही उत्पादन हो पाता है।क्षेत्र में सेब के बगीचे बहुत फल फूल रहे हैं और लोगों की आजीविका भी इस पर निर्भर हो रही है। जिसके लिए लोग कहते हैं कि यहां की जलवायु में बर्फ का बहुत बड़ा महत्व है। सघन वन होने बहुत जरूरी है।
देवदार के जंगल यहां बचे रहने चाहिए। यहां लोगों में बातचीत के आधार पर एकजुटता है कि वह अपने प्राकृतिक संसाधनों को भरपूर रखना चाहते हैं ।इसके बाद भी ऐसे बुजुर्ग और नौजवान भी अध्ययन दल के सामने आए जिन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्र से ही जंगल बचाने की आवाज़ क्यों होती है। जिस पर अध्ययन दल ने कहा कि हिमालय जलवायु को नियंत्रित करता है। यदि हम सब यहां की पारिस्थिति को नहीं बचा सके तो उसका प्रभाव मैदानी क्षेत्रों पर भी पड़ेगा।
अध्ययन दल के सदस्य पर्यावरणविद् संजय राणा,
नदी एवं रक्षा सूत्र अभियान के प्रेरक सुरेश भाई, सर्वोदय कार्यकर्ता विशाल जैन इसमें शामिल है ।
द्वारा- सुरेश भाई