अवतार दिवस पर विशेष: यूं ही नहीं बने सरदार वल्लभभाई पटेल लौह पुरुष

अवतार दिवस पर विशेष
यूं ही नहीं बने सरदार वल्लभभाई पटेल लौह पुरुष
रवि शंकर शर्मा
भारत के पहले गृहमंत्री होने के साथ ही उप प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित करने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल की सबसे बड़ी उपलब्धि थी देश की छह सौ देशी रियासतों और रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल करना। इसके अलावा शासन की बागडोर संभालते ही केंद्रीय सरकारी पदों पर अभारतीयों की नियुक्ति बंद करा दी। तत्कालीन समस्याओं को कठोर निर्णय लेकर सुलझाने के कारण ही पटेल को लौह पुरुष की संज्ञा से नवाज़ा गया।
पटेल का जन्म 31 अक्टूबर सन 1875 को गुजरात के खेड़ा जनपद के करमसद गांव में हुआ था। पिता किसान होने के साथ ही सच्चे देशभक्त थे, जिस कारण 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए परिवार की मोह-माया त्याग कर झांसी जा पहुंचे तथा रानी लक्ष्मीबाई व अन्य स्वतंत्रता के दीवानों के साथ अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए तीन वर्ष तक प्रयास करते रहे।
पटेल बाल्यकाल से ही सत्यनिष्ठ और निर्भीक स्वभाव के थे। कर्म को सर्वोपरि मानने वाले पटेल ने गांव करमसद में प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद अपने ननिहाल नाडियाड से हाईस्कूल की परीक्षा पास की। फिर 1897 में मैट्रिक पास करने के पश्चात घर में ही रहकर सन 1900 में प्लीडर की परीक्षा उत्तीर्ण की, जो कि उस समय काफी सम्मानित मानी जाती थी। इसके उपरांत 1905 में बैरिस्ट्री पढ़ने इंग्लैंड जाने के लिए पत्राचार किया।
इंग्लैंड से वीबी पटेल के नाम से पत्र आया, जो उनके बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल को मिल गया। दोनों का शाॅर्ट नाम एक ही था, इसलिए उन्होंने वल्लभ भाई से कहा कि चूंकि वह बड़े हैं, इसलिए पहले उन्हें ही बैरिस्ट्री पढ़ने जाना चाहिए। वल्लभ भाई ने यह बात सहर्ष स्वीकार कर ली, साथ ही विलायत का खर्च भी भेजते रहने का वादा कर दिया। खुद भारत में ही रहकर तीन अन्य भाइयों और बहन का खर्च भी वहन करते रहे। यह थी उनकी उदारता और त्याग एवं भ्रातृ भक्ति की भावना। इसी दौरान सन 1909 में वल्लभभाई पटेल की धर्मपत्नी झवेर बा का निधन हो गया। उस समय उनके एक पुत्र दह्या भाई तीन वर्ष के और पुत्री मणि बेन छह वर्ष की थी। फिर भी पटेल ने दूसरा विवाह नहीं किया। कालांतर में पटेल के पुत्र और पुत्री लंबे समय तक संसद सदस्य रहे, जबकि मणि बेन ने आजीवन कुंवारी रहकर राष्ट्रोत्थान का महत्वपूर्ण कार्य किया।
बड़े भाई के विलायत से लौटने के पश्चात वल्लभ भाई ने अगस्त 1910 में इंग्लैंड के लिए प्रस्थान किया। कुछ समय पश्चात रोमन लाॅ की परीक्षा में बैठे और ऑनर्स के साथ बैरिस्ट्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन 1916 में गुजरात के प्रतिनिधि के रूप में लखनऊ कांग्रेस में भाग लेने पहुंचे तो वहां गांधी जी से भेंट हुई। इस मुलाकात ने उनका पूरी तरह हृदय परिवर्तन कर दिया और वह अंग्रेजी वेशभूषा त्याग कर स्वदेशी रंग में रंग गए। गांधी जी के अनन्य शिष्य होने के बावजूद इतने स्पष्ट वक्ता और निर्भीक थे कि उनकी जिस बात से असहमत होते थे, उसे स्पष्ट रूप से बता देते थे।
सन 1917 में खेड़ा के साथ सत्याग्रह में गांधीजी के प्रमुख सहयोगी रहे तथा अहमदाबाद नगर पालिका के सदस्य चुने जाने के साथी सेनेटरी कमेटी के अध्यक्ष बने। 6 अप्रैल 1919 को रौलट ऐक्ट के विरोध में जुलूस निकाला, जब्त पुस्तकों को बेचा तथा 7 अप्रैल को सत्याग्रह पत्रिका बिना सरकार की अनुमति के निकाली। 1921 में गुजरात कांग्रेस कमेटी कै अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1923 में नागपुर के झंडा सत्याग्रह में विजयश्री प्राप्त की। 1924 में अहमदाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गए।
1927 में दोबारा अध्यक्ष बने। 29 फरवरी 1928 को सुप्रसिद्ध किसान आंदोलन बारडोली कर बंदी सत्याग्रह शुरू किया। 7 मार्च 1930 को भाषण बंदी आज्ञा को भंग करने पर गिरफ्तार किए गए। 1931 में कराची में कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की। 4 जनवरी 1932 को महात्मा गांधी के साथ पूना की यरवदा जेल में नजरबंद किए गए। 1934 में पटना में कांग्रेस पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष बने। 1936 में कांग्रेस चुनाव का सफल संचालन किया। 18 नवंबर 1940 को सविनय अवज्ञा आंदोलन में नजर बंद किए गए।
1941 में इलाहाबाद में कमला नेहरू अस्पताल के लिए चंदा एकत्र कर पांच लाख रुपये दिए, जिससे कमला नेहरू अस्पताल शुरू हुआ। 1942 में सरदार पटेल ने इलाहाबाद में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में प्रथम बार ‘ अंग्रेज चले जाओ ‘ का प्रस्ताव पास करवाया। 9 अगस्त को सरदार पटेल को देश के अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार किया गया। अहमदनगर की जेल में जवाहर लाल नेहरू, आचार्य नरेंद्र देव व अबुल कलाम आजाद आदि के साथ नजरबंद रखा गया। 15 जून 1945 को लंबी कैद के बाद नेहरू के साथ अहमदनगर किले के बंदी आजाद किए गए।
2 सितंबर 1946 को सरदार पटेल भारत की अंतरिम सरकार के गृह सदस्य बनाए गए। फिर 5 जुलाई 1947 को सरदार पटेल ने देशी राज्यों के राजाओं के नाम एक अपील जारी की कि वे 15 अगस्त तक भारत राष्ट्र में सम्मिलित हो जाएं। कश्मीर, हैदराबाद व जूनागढ़ के अतिरिक्त सभी 600 राजाओं ने भारत में विलय की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए। आजादी के साथ ही 15 अगस्त को देश के गृह मंत्री व उप प्रधानमंत्री बने।
सरदार पटेल की अद्वितीय नेतृत्व क्षमता के कारण ही गांधी जी ने उन्हें सरदार की उपाधि से विभूषित किया। इस महान सपूत का स्वर्गवास 15 दिसंबर 1950 को बंबई में हो गया, लेकिन दुनिया से विदा होने के बाद भी आज भी अमर हैं।

( लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं )


