शांतिकुंज का ‘गमलों में स्वास्थ्य’ अभियान
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शांतिकुंज का ‘गमलों में स्वास्थ्य’ अभियान
हरिद्वार।आयुर्वेद का पुनरुद्धार गायत्री तीर्थ शांतिकुंज का अभिनव प्रयास है। इसका एक उद्देश्य जनमानस को नैसर्गिक जीवन की मुख्य धारा से जोड़ना है। इस धारा से जुड़े स्वस्थ नागरिक वर्तमान विभीषिकाओं से मोर्चा लेने में सहज ही समर्थ होंगे।
गायत्री परिवार के जनक वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने स्वस्थ शरीर में ही स्वच्छ मन की परिकल्पना को व्यावहारिक जीवन में प्रयोग की बात कही है। आचार्यश्री ने कहा है कि ‘मनुष्य आधुनिकता कीअन्धी दौड़ में जीव-वनस्पति जगत् एवं पर्यावरण के बीच तारतम्य को नष्ट न करे, अन्यथा उसकी भौतिक प्रगति उसकी जीवन रक्षा न कर सकेगी।
आचार्यश्री ने जड़ी-बूटियों की उपयोगिता के बारे में जिक्र करते हुए कहा है कि जड़ी-बूटी उपचार मनुष्य के बढ़ते हुए रोगों की रोकथाम में असाधारण रूप से सहायक हो सकता है। वह निर्दोष भी है और हानिकारक प्रतिक्रिया से रहित भी। उनमें मारक गुण कम और शोधक विशेष होते हैं। वे रोगों को दबाती नहीं, वरन् उखाड़ती और भगाती हैं।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या के कुशल मार्गदर्शन में शांतिकुंज ने ‘गमलों में स्वास्थ्य’ विधा का प्रादुर्भाव किया। जिसमें छोटे-मोटे रोगों का उपचार सस्ते में और शीघ्र किया जा सकता है। इसका यहाँ विधिवत् प्रशिक्षण उन प्रशिक्षणार्थियों को दिया जाता है, जिनको जड़ी-बूटियों से सम्बन्धित प्रारंभिक जानकारी है। साथ ही जड़ी-बूटियों को गमलों में किस तरह रोपा जाय। जड़ी-बूटियों के पौधों को कैसे विकसित किया जाय तथा जो जड़ी-बूटियाँ गमलों में लगाई गई हैं, उनका रोगानुसार उपयोग किस विधि से किया जाय उन्हें यह भी बताया जाता है।
गमलों में स्वास्थ्य के अंतर्गत तुलसी का स्थान प्रथम माना जा सकता है, जो आमतौर से परिचित पौधा है। आध्यात्मिक लाभों के साथ-साथ तुलसी के औषधीय लाभ भी हैं। तुलसी प्रत्येक स्थान पर पाया जाने वाला पौधा है। तुलसी के पत्र तथा स्वरस में शीतहर, वातहर, दीपन कृमिघ्न एवं दुर्गन्धनाशक गुण होते हैं। इसका नियमित सेवन कई प्रकार के रोगों से बचाता है। इसी प्रकार हल्दी रक्तशोधक, शोथहर, दीपन, कफ विकार, यकृत विकार, अतिसार, प्रतिश्याय, प्रमेह, चर्मरोग, नेत्राभिष्यंद वातहर आदि गुण वाली एक उत्तम औषधि है।
हरियाली और फूलों में जहाँ व्यक्ति को प्रसन्नता प्रदान करने का गुण है, वहीं रंग-बिरंगे फूल और हरियाली वातावरण को सुन्दर और प्रेरक बनाती है। शांतिकुंज में प्रवेश करते ही जिसकी प्रत्यक्ष अनुभूति होने लगती है। शांतिकुंज और देवसंस्कृति विवि परिसर में बागवानी का यह कार्य यहाँ का कार्य देवसंस्कृति विवि के प्रतिकुलपति युवा आइकान डॉ चिन्मय पण्ड्या के निर्देशन में बागवानी विभाग बखुबी निभा रहा है। शांतिकुंज में लगाये गये करीब पांच सौ दुर्लभ जड़ी-बूटियों का रखरखाव उद्यान विभाग बड़े ही मुस्तैदी के साथ करता है।