गायत्री साधना हेतु पवित्रतम स्थल हैं शांतिकुंज
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गायत्री साधना हेतु पवित्रतम स्थल हैं
प्रखर प्रज्ञा-सजल श्रद्धा
हरिद्वार। गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज में वैसे तो तीर्थ चेतना का- आध्यात्मिक ऊर्जा का किसी भी कोने में प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है। कहीं पर भी बैठकर अपने इष्ट, आराध्य का जप-ध्यान करने पर इसकी सहज ही अनुभूति साधकों को होने लगती है, यह तीर्थ चेतना की प्रचण्ड ऊर्जा का ही परिणाम है। कुछ वर्षों पहले कनाडा के भविष्यवक्ता एवं एक चर्च के फादर श्री एलन राइट ने अपनी अनुभूति को व्यक्त करते हुए कहा था कि मैं संसार के कई तीर्थ स्थानों पर, धार्मिक स्थानों पर गया हूँ, लेकिन यहाँ के जैसी तीर्थ चेतना (आध्यात्मिक ऊर्जा) की अनुभूति मुझे कहीं पर भी नहीं हुई।
शान्तिकुञ्ज संसार का बहुत ही जीवन्त-जाग्रत् तीर्थ है। जिसे परम पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं परम वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा ने अपनी कठोर तपश्चर्या द्वारा युग निर्माण हेतु विनिर्मित किया है। इसीलिए यहाँ किसी भी मजहब, किसी भी सम्प्रदाय के साधकों को अपने आंतरिक स्तर के अनुसार न केवल प्रत्यक्ष अनुभूति होती है, बल्कि अनुदान-वरदान भी मिलते हैं। मन की मुरादें पूरी होती हैं। उल्लेखनीय है कि सन् क्–ब् में श्री राइट ने कई दिनों तक शान्तिकुञ्ज में रहकर साधना की थी। इस अवधि में वे प्रातः ब् बजे से ही समाधि स्थल पर भारतीय वेशभूषा पहनकर ध्यान किया करते थे।
गायत्री साधना के पवित्रतम स्थल
प्रखर प्रज्ञा-सजल श्रद्धा को ऋषियुग्म के पावन स्मारक (समाधि स्थल) के रूप में जाना जाता है। जिसका निर्माण आचार्यश्री ने अपने रहते हुए ही करवाया था। प्रखर प्रज्ञा अर्थात् पूज्य गुरुदेव के व्यक्तित्व का प्रतीक- दूरदर्शी विवेकशीलता जिसमें आज का ही लाभ नहीं, कल की हानि भी देखने-समझने की ‘समझ’ विकसित होती है। सजल श्रद्धा अर्थात् शक्तिस्वरूपा वन्दनीया माता जी के व्यक्तित्व का प्रतीक- आत्मीयता से परिपूर्ण विश्वास, ऐसा विश्वास जिसमें स्नेह-संवेदना लबालब भरी हुई हो।
यह स्थान आध्यात्मिक शक्ति की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यहाँ पर किसी भी धर्म- सम्प्रदायों के साधक साधना करके आध्यात्मिक शक्ति से लाभान्वित हो सकते हैं। जिसके कई उदाहरण यहाँ देखने को मिलते हैं। यही वजह है कि दिन- प्रति दिन इसकी लोकप्रियता में न केवल वृद्धि हो रही है, बल्कि समाधि स्थल के प्रति श्रद्धालुओं की श्रद्धा भी गहन होती जा रही है, क्योंकि यहाँ जो श्रद्धा से अपना माथा नवाते हैं, उसे अवश्य ही गुरुसत्ता की कृपा-आशीर्वाद तथा सफल जीवन जीने हेतु दिव्य प्रेरणा मिलती है। ऐसा यहाँ आने वाले श्रद्धालु बयान करते हैं।