*ऋषि चिंतन* *परमात्मा स्वयं नियमों से बंधा है*

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*🥀 २४ सितंबर २०२४ मंगलवार🥀*
*//आश्विन कृष्णपक्ष सप्तमी २०८१ //*
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*‼ऋषि चिंतन‼*

*परमात्मा स्वयं नियमों से बंधा है*
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👉 *”जान-बूझकर” या “अकारण” परमात्मा कभी किसी को दण्ड नहीं देता।* प्रकृति की स्वच्छन्द प्रगति-प्रवृत्ति में ही सबका हित नियंत्रित है। *जो इस प्राकृतिक नियम से टकराता है वह बार-बार दुःख भोगता है और तब तक चैन नहीं पाता, जब तक वापस लौटकर फिर उस सही मार्ग पर नहीं चलने लगता है।* भगवान् भक्त की भावनाओं का फल तो देते हैं; किन्तु उनका विधान सभी संसार के लिए एक जैसा ही है। *”भावनाशील” व्यक्ति भी जब तक अपने आप की सीमाएँ नहीं पार कर लेता, तब तक अटूट विश्वास, दृढ़ निश्चय रखते हुए भी उन्हें प्राप्त नहीं कर पाता।* अपने से विमुख प्राणियों को भी वे दुःख दण्ड नहीं देते। *दुःख दण्ड देने की शक्ति तो “विधान” में ही है।* मनुष्य का विधान तो देश, काल और परिस्थितियों वश बदलता भी रहता है, *किन्तु उसका “विधान” सदैव एक जैसा ही है।*

भावनाशील व्यक्ति भी उसकी चाहे कितनी ही उपासना करे – सांसारिक कर्त्तव्यों की अवहेलना कर या दैवी-विधान का उल्लंघन कर कभी सुखी नहीं रह सकते। *जैसा कर्म-बीज वैसा ही फल- यह उसका “निश्चल नियम” है।* दूसरों का तिरस्कार करने वाले कई गुना तिरस्कार पाते हैं। *”परमार्थसी उसी तरह लौटकर असंख्य गुना सुख पैदा कर मनुष्य को तृप्त कर देता है।* सुख और दुःख, बन्धन और मुक्ति मनुष्य के कर्मों के अनुसार ही प्राप्त होते हैं। *दुष्कर्मों का फल भोगने से मनुष्य बच नहीं सकता, इस “विधान” में कहीं राई रत्ती भर भी गुंजायश नहीं है।*

👉 *अशुभ कर्मों का सम्पादन और देह का जड़ अभिमान ही मनुष्य को छोटा बनाए हुए है।* शुभ-अशुभ कर्मों के फलस्वरूप सुख-दुःख का भोक्ता न होने पर भी आत्मा मोहवश होकर दुःख भोगती है। *”मैं देह हूँ” मुझे सारे अधिकार मिलने ही चाहिए” यह मान लेने से “जीव” स्वयं कर्त्ता-भोक्ता बन जाता है और इसी कारण वह “जीव” कहलाता है।* जब तक वह इतनी सी सीमा में रहता है तब तक उसकी शक्ति भी उतनी ही तुच्छ और संकुचित बनी रहती है। *जब वह इस भ्रम रूप देहाभ्यास का परित्याग कर देता है तो वह “शिव-स्वरूप”, “ईश्वर-स्वरूप” हो जाता है।* उसकी शक्तियाँ विस्तीर्ण हो जाती हैं और वह अपने आपको अनन्त शक्तिशाली, अनन्त आनन्द में लीन हुआ अनुभव करने लगता है।
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*ईश्वर और उसकी अनुभूत.

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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