शिक्षक पर संकट की छाया: सम्मान, सुरक्षा और संस्कार की पुनर्स्थापना”

शिक्षक पर संकट की छाया: सम्मान, सुरक्षा और संस्कार की पुनर्स्थापना”
राजेंद्र कुमार शर्मा, शिक्षक
भारत की प्राचीन परंपरा में गुरु का स्थान सदैव सर्वोच्च माना गया है। “गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णुः गुरु देवो महेश्वरः” की भावना हमारे संस्कारों में रची-बसी है। किंतु आज की बदलती परिस्थितियों में वह सम्मान, जो एक समय समाज में शिक्षक को सहज रूप से प्राप्त था, धीरे-धीरे क्षीण होता जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसी घटनाएँ बढ़ी हैं जहाँ विद्यार्थी न केवल अपने साथियों के साथ हिंसक हो उठते हैं, बल्कि शिक्षकों के साथ अभद्रता, मारपीट और यहाँ तक कि प्राणघातक हमलों जैसी भयावह प्रवृत्तियाँ भी देखने को मिल रही हैं।
हाल ही में अहमदाबाद की एक स्कूल में घटी घटना ने पूरे समाज को झकझोर दिया। एक जूनियर छात्र ने अपने ही सीनियर छात्र की चाकू मारकर हत्या कर दी। घटना के बाद अभिभावकों और स्थानीय लोगों ने स्कूल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। मात्र छोटी-सी कहासुनी पर हुई यह वारदात यह दर्शाती है कि किशोरों में बढ़ती असहिष्णुता और आवेग कितना खतरनाक रूप ले चुका है। कुछ अन्य इसी तरह की घटनाओं में यही आवेग और असहिष्णुता देखने को मिलती है, जैसे भोपाल, मध्य प्रदेश (जुलाई 2025) में एक18 वर्षीय कक्षा 12 के छात्र ने एक महिला अतिथि शिक्षिका पर पेट्रोल डालकर आग लगाने की कोशिश की। शिक्षिका गंभीर रूप से झुलस गईं, पर समय पर इलाज के कारण जान बच गई। चेन्नई, तमिलनाडु (जून 2025), दो छात्रों ने देर से आने पर डाँटने वाले शिक्षक पर शराब की बोतल से हमला कर दिया। शिक्षक घायल हुए और मामला पुलिस तक पहुँचा। पटना, बिहार (अप्रैल 2025) एक निजी स्कूल में परीक्षा में कम अंक आने पर छात्र ने प्राचार्य के साथ अभद्रता की और उन पर हाथ उठाया। स्कूल प्रशासन ने तुरंत छात्र को निलंबित कर दिया।
ये घटनाएँ केवल पुलिस केस या समाचार की सुर्खियाँ नहीं हैं; ये शिक्षा व्यवस्था और समाज में बढ़ती असहिष्णुता का गंभीर संकेत हैं।
ये गंभीर वारदातें, समाज को आगाह करती है कि इन घटनाओं के मूल कारणों पर विचार करने की आवश्यकता है :
बच्चों में बढ़ती आक्रामकता का एक बड़ा कारण है घर में संवाद की कमी। अभिभावक अपने अपने कार्यों में व्यस्त हैं, परिवार बिखर रहे हैं, बच्चों के भावनात्मक विकास की उपेक्षा हो रही है। बच्चों को सुनने के लिए , परिवार के पास समय ही नहीं बचा है।
अंकों की होड़, परीक्षा का तनाव और ऊँचे लक्ष्यों का बोझ बच्चों के मन पर गहरा दबाव डालता है। अवसाद, क्रोध और चिड़चिड़ापन इन्हीं परिस्थितियों से जन्म लेते हैं। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर उपलब्ध हिंसक गेम्स, वीडियो और सामग्री किशोरों के मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। जब आभासी हिंसा वास्तविकता बन जाती है, तो उसके परिणाम भयावह हो सकते हैं।आज कई विद्यार्थी और उनके अभिभावक अपने “अधिकार” तो जानते हैं, पर “कर्तव्यों” से अनजान हैं। परिणामस्वरूप, अनुशासन, मर्यादा और आदर की भावना धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है।
शिक्षक की गरिमा की पुनः स्थापना के प्रयास :
अभिभावकों को बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए, उनकी भावनाओं, असुरक्षाओं और व्यवहार को समझना चाहिए। मीडिया और समुदाय को शिक्षकों की सकारात्मक छवि को पुनः स्थापित करने के लिए अभियान चलाने चाहिए। समाज में यह संदेश प्रसारित होना चाहिए कि शिक्षक पर हाथ उठाना केवल अपराध नहीं, बल्कि संस्कृति पर प्रहार है। ऐसे मामलों में सख्त सजा का प्रावधान होना समय की जरूरत बनती जा रही है। विद्यालयों में काउंसलिंग सेंटर, मनोवैज्ञानिक सहयोग और तनाव-निवारण सत्र अनिवार्य होने चाहिए। स्कूल परिसरों में सुरक्षा के लिए पर्याप्त संसाधन, सीसीटीवी और हेल्पलाइन की व्यवस्था की जानी चाहिए। शिक्षक संरक्षण अधिनियम को और सख्ती से लागू किया जाना चाहिए, जिससे हिंसा की किसी भी घटना पर त्वरित कार्रवाई हो।
शिक्षकों को भी समय के साथ अपनी शिक्षण पद्धतियों में बदलाव करना होगा। विद्यार्थियों से संवाद बढ़ाना, उनकी मानसिक स्थिति को समझना और सामंजस्यपूर्ण संबंध स्थापित करना आवश्यक है
अनुशासन के साथ-साथ सहानुभूति और संवेदनशीलता को अपनाना आज की जरूरत है।
विद्यालयों में कक्षा-आधारित जीवन-कौशल प्रशिक्षण से बच्चों में सहिष्णुता, भावनात्मक संतुलन और सहयोग की भावना विकसित की जा सकती है।
अभिभावकों को अपने कर्तव्यों के प्रति गंभीर होने की आवश्यकता है। बच्चे को अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलवा देना और फिर घर पर बच्चों के पढ़ाने की जिम्मेदारी ट्यूटर पर डाल कर, अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेना बच्चों के नैतिक विकास में अधूरापन लाता है। बच्चों में संस्कारों के बीज रोपने का कार्य अभिभावकों का होता है। शिक्षक का सम्मान करना, उन्हीं संस्कारों का एक अभिन्न अंग होता है। शिक्षक के प्रति सम्मान और आदर की भावना के विकास में माता पिता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शिक्षक दिवस केवल समारोह मनाने का अवसर नहीं, बल्कि यह आत्ममंथन का समय भी है। यदि शिक्षक असुरक्षित रहेंगे, तो शिक्षा व्यवस्था की जड़ें खोखली हो जाएँगी। हमें समझना होगा कि शिक्षक केवल पाठ्यपुस्तक का ज्ञान नहीं देते, बल्कि वे चरित्र, मूल्य और संस्कार भी गढ़ते हैं। आज आवश्यकता है कि हम सभी, समाज, सरकार, विद्यालय, अभिभावक और विद्यार्थी मिलकर एक ऐसा सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण तैयार करें, जहाँ शिक्षक अपनी भूमिका निडर होकर निभा सकें। केवल तब ही शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य, मानवता, सहिष्णुता और राष्ट्रनिर्माण, पूरी तरह साकार होगा। इस शिक्षक दिवस पर हमें संकल्प लेना होगा, “शिक्षक की गरिमा, शिक्षक का सम्मान, राष्ट्र के भविष्य की पहचान।”
लेखक: राजेंद्र कुमार शर्मा
देहरादून , उत्तराखण्ड।

