*ऋषि चिंतन: सच्ची उपासना 🙏*
*🥀 १९ नवंबर २०२४ मंगलवार 🥀*
*//मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष चतुर्थी २०८१//*
*‼ऋषि चिंतन‼*
*🙏 सच्ची उपासना 🙏*
👉 *”सच्ची उपासना” का अर्थ है – “आत्मा” को “परमात्मा” से जोड़ देना।* ऐसा करने पर, जिस प्रकार प्रणाली द्वारा खाली जलाशय को भरे जलाशय से सम्बन्धित कर देने से उसकी जलराशि उसमें भी आने लगती है और रिक्त जलाशय भी उसकी तरह ही पूर्ण हो जाता है, *उसी प्रकार “आत्मा” द्वारा “परमात्मा” से सम्बन्ध बना लेने से परमात्मा की “श्रेष्ठताएँ” मनुष्य में भी प्रवाहित हो आती हैं; किन्तु इस माध्यम के बीच कोई व्यवधान रख दिया जाए तो प्रवाह रुक जायेगा।* खाली जलाशय को जल और मनुष्य को श्रेष्ठता प्राप्त नहीं होगी।
👉 आग के पास आने पर ठण्डा लोहा उष्मा प्राप्त करता है; पर यदि आग और उसके बीच लकड़ी का एक पटला रख दिया जाए तो लोहा आग की गरमी से वंचित रह जाएगा। *इसी प्रकार जब “उपासना” की विधि में “आत्मा” और “परमात्मा” के बीच “कामनाओं का व्यवधान” डाल दिया जाता है, तो मनुष्य परमात्मा को ग्रहण करने से वंचित रह जाता है।* जिन उपासकों में परमात्मा के लक्षण संकलित होते दिखलाई न दें समझ लेना चाहिए कि उसकी
*”आत्मा”* और *”परमात्मा”* के बीच कामनाओं, वांछनाओं तथा वासनाओं का व्यवधान पड़ा हुआ है और जब तक यह व्यवधान हटाया नहीं जाएगा, उपासना का वास्तविक फल प्राप्त होना सम्भव नहीं। *अधिकांश पूजा-पाठ तथा चन्दन-वन्दन करने वाले “उपासना” नहीं “उपासना का आडम्बर” ही किया करते हैं।* या तो उसके आधार पर उन्हें अपना महत्त्व प्रदर्शन करने का भाव घेरे रहता है अथवा उनकी उपासना का लक्ष्य किसी
*”कामना”* की पूर्ति रहता है। परमात्म-तत्त्व की प्राप्ति नहीं। *मनुष्य जीवन का चिर साध्य है “आत्म-शांति,” जिसका आधार है वे “श्रेष्ठताएँ” जो परमात्मा के स्वाभाविक गुण हैं और जिन्हें “उपासना” के आधार पर ही पाया जा सकता है;* किन्तु *”सच्ची उपासना”* वह है जो केवल *”उपासना”* के लिए *”निष्काम”* होकर की जाए । *”निष्काम” रूप से “उपासना” प्रारम्भ कर परमात्मा से आत्मा का संबंध स्थापित कीजिए और श्रेष्ठताओं की उपलब्धि कर सुख – शांति केअक्षय आनन्द से भरे जीवन और अनन्त अन्त की परख कीजिए।*
*ईश्वर और उसकी अनुभूति पृष्ठ-९४*
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य