ऋषि चिंतन — *इस “अज्ञान” को दूर करना है*

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— ऋषि चिंतन —

*इस “अज्ञान” को दूर करना है*

👉 *जो परिस्थितियाँ हमें अपने लिये प्रतिकूल अप्रिय, अखरने वाली, कष्टकारक लगती हैं उनमें भी परमात्मा का “सत्प्रयत्न” और “सदुद्देश्य” छिपा रहता है।* पढ़ने के लिए ताड़ना करने वाला अध्यापक, सड़े अंग का ऑपरेशन करने वाला डॉक्टर, उद्दण्डता के लिए क्रोध प्रकट करने वाला पिता, अपराध के लिए दण्ड देने वाला न्यायाधीश उन्हें बुरे लगते हैं जिन्हें उनके व्यवहार से कष्ट पहुँचता है। *पर कष्ट पहुंचाना सदा “अकृपा” में ही नहीं होता। माता को प्रजनन का कष्ट भुगतना पड़ता है, पर क्या यह किसी के क्रोध या दुर्वासा का प्रतिफल होता है? ईश्वर का प्रेम और अनुग्रह कई बार माता के दूध पिलाने की तरह मधुर और कई बार कान ऐंठने की तरह कड़ा होता है। “बालक” नहीं “माता” ही जानती है कि इन दोनों में केवल बालक के “कल्याण” और “सुख” का ही ध्यान रखा गया है।*

👉 *वह “परमात्मा” हमारे प्रतिक्षण साथ रहता है, पर उसकी उपस्थिति से जो लाभ मिलना चाहिए उसे कोई विरले ही उठा पाएं हैं।* घर की जमीन में गड़ा धन, यदि अपनी जानकारी में न हो ते उससे क्या लाभ मिलेगा? गले में पड़े हुए हीरे के कण्ठा को यदि हमने काँच जितना ही समझ लिया हो, तो उससे अपने को क्या लाभ प्राप्त होगा? *परमात्मा की अपार और अनन्त शक्ति एवं अनुकम्पा हर घड़ी अपने साथ है पर उसका परिपूर्ण लाभ उठा सकना अनजानों के लिए कठिन है। जिस जानकारी के आधार पर परमात्मा के सहचर होने का समुचित सत्परिणाम प्राप्त किया जा सकता है उसे ही “सद्ज्ञान” या “अध्यात्म” कहते हैं।*

👉 कपड़े के झीने पर्दे की आड़ में बैठे हुए दो व्यक्ति एक दूसरे को देख नहीं सकते यद्यपि यह अनुभव करते हैं कि कोई पर्दे के उधर बैठा है। *हम यह तो जानते हैं कि परमात्मा हमारे समीप है, भीतर ही है पर उसकी उपस्थिति से वह आनन्द और लाभ नहीं उठा पाते जो सानिध्य सहचरत्व से मिलना चाहिये।* राजा-रईस, अमीर-अधिकारी, योद्धा, विद्वान, कलाकार आदि श्रेष्ठ लोगों की मित्रता और समीपता से जब लोग बहुत लाभ उठा लेते हैं *तो इतने उदार और अनुग्रही परमात्मा के निरन्तर साथ रहते हुए भी कुछ लाभ न उठा सके तो यह अपना दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।* अज्ञान का आवरण उस पर्दे के समान है जो पास बैठे हुए व्यक्तियों को भी दूरस्थ जैसी स्थिति में बनाए रहता है। जमीन में गड़ा धन और गले में पड़ा कंठा अज्ञान के कारण ही उपयोग में नही आता । *”अज्ञान” इस संसार का एक बड़ा अभाव और दुर्भाग्य है, उसे हटाने के लिए समुचित प्रयत्न किया ही जाना चाहिए।

ईश्वर और उसकी अनुभूति

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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