ऋषि चिंतन… स्वस्थ रहने के लिए भ्रामक धारणा ➖

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*‼ऋषि चिंतन‼*
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*➖।।स्वस्थ रहने के लिए।।➖*
*❗➖ भ्रामक धारणा ➖❗*
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👉 *”भ्रांतियाँ” हर दृष्टि से हानिकारक सिद्ध होती हैं, चाहे वे किसी भी क्षेत्र की क्यों न हों।* मान्यताओं एवं विश्वासों के रूप में कितनी ही बातें ऐसी हैं जो मनुष्य के चिंतन एवं स्वभाव का अंग बनी हुई हैं । तथ्यों के आधार पर समीक्षा करने पर जिनकी न तो उपयोगिता जान पड़ती है और न हीं महत्ता, पर लंबे समय से मन-मस्तिष्क में उपयोगी होने जैसी मान्यता के रूप में बने रहने के कारण वे स्वभाव का अनिवार्य अंग-सा बन गई हैं, जिन्हें न निकालते बनता है और न ही छोड़ते।

👉 *भ्रांतियों में एक है- “खानपान संबंधी”, जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। सदियों से यह मान्यता चली आ रही है कि शरीर को “स्वस्थ” बनाए रखने के लिए “नमक” आवश्यक है।* आहारों के समान ही इसे भी भोजन का अनिवार्य एवं उपयोगी तत्त्व माना गया । *जबकि तथ्य इसके विपरीत है।* नवीन वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि *”नमक” शरीर के लिए “अनुपयोगी” ही नहीं “हानिकारक” भी है।* इसे साधारणतः धीमे विष की संज्ञा दी गई है तथा स्वास्थ्य संवर्धन में एक अवरोधक तत्व माना गया है।

👉 *संक्रामक रोगों की तरह “रक्तचाप” की बीमारी भी बढ़ती जा रही है।* विकसित और संपन्न राष्ट्रों में तो सर्वाधिक संख्या “रक्तचाप” से पीड़ित रोगियों की है । *चिकित्सा विज्ञान की शोधों ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि “कृत्रिम नमक” रक्तचाप रोगों का प्रधान कारण है ।* सर्वविदित है कि उच्च रक्तचाप के चिकित्सक भोजन में रोगी को नमक का निषेध कर देते हैं। निदान में इससे विशेष योगदान मिलता है। *प्रकारांतर से यह इस बात का संकेत देता है कि यदि आरम्भ से ही “कृत्रिम नमक” को ग्रहण करने से बचा जाए तो भविष्य में रक्तचाप जैसे रोग की संभावना नहीं होगी ।*।

👉 *खानपान की इस भ्रांति को मन और मस्तिष्क से हटाया जाना आवश्यक है। शरीर के लिए “नमक” न तो आवश्यक है और न ही “उपयोगी”।* स्वाद एवं अभ्यास का अंग बन जाने के कारण इसके बिना काम नहीं चलता अन्यथा पोषण की दृष्टि से उसमें ऐसी कोई विशेषता नहीं है जिनके बिना काम न चले। जितनी थोड़ी आवश्यकता है भी, वह प्राकृतिक स्रोतों में संतुलित रूप से घुला-मिला है और शरीर रक्षा का उद्देश्य पूरा करता है। *इसके लिए अलग से “नमक” लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।* आहार में इस मान्यता को भी बदलना होगा कि अधिक प्रोटीन युक्त भोजन शरीर के लिए लाभकारी है। *स्वास्थ्य पौष्टिक तत्वों पर नहीं इस बात पर अवलंबित है कि भोजन में ग्रहण किए जाने वाले पदार्थ कितने शीघ्र एवं सुविधा से पच जाते हैं।* इस दृष्टि से शाक-सब्जियों को हरे एवं ताजे फलों को सर्वोपरि ठहराया गया है। इन तथ्यों से प्रभावित होकर अब पाश्चात्य जगत में भी शाकाहार का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। वहाँ के नागरिक माँसाहार की हानियों को समझने लगे हैं। *इंग्लैंड में तो एक ‘वेजीटेरियन सोसायटी की स्थापना हुई है* जो प्रचार द्वारा लोगों को प्रकृति प्रदत्त सुविधा से उपलब्ध होने वाले सुपाच्य खाद्यान्नों, शाकों एवं फलों की महत्ता बताती तथा मांसाहार की हानियों से अवगत कराती है। इस प्रयास का आशातीत प्रभाव पड़ा है। *हजारों व्यक्तियों ने “मांसाहार” छोड़ा व “शाकाहार” को अपनाया है।* वहाँ इसे स्वास्थ्य क्रांति के रूप में मान्यता मिली है।
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*चिरयौवन का रहस्योद्घाटन पृष्ठ-३०*
*🪴➖❗ब्रह्मवर्चस❗➖ 🪴*
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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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