राइट टू डिस्कनेक्ट, अब समय की ज़रूरत

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राइट टू डिस्कनेक्ट, अब समय की ज़रूरत

रवि शंकर शर्मा

ऐसा नहीं लगता कि अब ‘ राइट टू डिस्कनेक्ट ‘ यानी ऑफिस टाइम के बाद कार्यस्थल की चिंता से मुक्त होने का वक्त आ गया है ? ऑफिस से घर लौट के भी बार-बार लैपटॉप पर मेल चेक करते रहना, मैसेज देखना या मोबाइल पर बॉस की झिड़कियां सुनना। इससे कर्मचारियों का पारिवारिक जीवन तो कष्टमय हो ही रहा है, वे तमाम मानसिक और शारीरिक बीमारियों से भी घिरते जा रहे हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए ऑस्ट्रेलिया ने भी गत दिनों इस मानवाधिकार को अपने यहां लागू कर दिया है।

फ्रांस 2017 में डिस्कनेक्ट करने का अधिकार लागू करने वाला पहला देश था। इटली और बेल्जियम समेत अमेरिका और यूरोप के लगभग बीस देश पहले ही इस प्रकार के कानून लागू कर चुके हैं और अन्य देश भी इस पर विचार कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया सरकार के फेयर वर्क ओंबड्समैन के अनुसार, इस नियम के तहत अब कर्मचारियों को अपने काम के घंटे के बाद कार्यालय से संपर्क से इन्कार करने का अधिकार होगा, जब तक की यह इन्कार अनुचित न हो।
जी हां ड्यूटी आॅवर्स के बाद कार्य स्थल से पृथक होना हमारा मानवाधिकार ही है।

ऑफिस में तो हम अपना सब कुछ अपने काम को देते ही हैं। लेकिन फिर घर आकर भी वहां की उलझन में लगे रहकर पत्नी और बच्चों या माता-पिता को वक्त ना दे पाएं तो इस प्रकार की नौकरी का क्या लाभ ? आज तमाम ऐसी नौकरियां हैं, जिनमें कर्मचारियों को घर आने के बाद भी ऑफिस का काम निपटाना पड़ता है। यहां तक कि शिक्षक जैसी नौकरी, जो कि पहले अवकाश आदि के कारण महिलाओं के लिए सुविधाजनक मानी जाती थी, उन्हें भी घर जाकर बच्चों की कॉपियां जांचने से लेकर अगले दिन की तैयारी करनी पड़ती है। कभी वह वक्त भी रहा होगा, जब व्यक्ति सप्ताह के सातों दिन या महीने के तीस दिन काम करता होगा। और देखा जाए तो गृहिणियां तो महीने में तीस दिन काम करती भी हैं।

उनकी छुट्टी के बारे में कोई नहीं सोचता ? कार्यालयीय व्यस्तताओं और वहां के तनावों को ध्यान में रखते हुए ही रविवार यानी साप्ताहिक अवकाश का सिद्धांत आया होगा, जब व्यक्ति अपने परिवार के साथ समय बिता सके, रिश्तेदारों के घर आ-जा सके या घर के जरूरी काम निपटा सके। इसके बाद सप्ताह में दो दिन अवकाश यानी शनिवार और रविवार की छुट्टी पर विचार हुआ और इसे कर्मचारी के स्वास्थ्य एवं मनोरंजन के लिए आवश्यक मानते हुए फ़ाइव डेज़ वीक का प्रावधान हुआ।

विदेश में तो इसे बेहद उत्साहपूर्वक और मौज-मस्ती के साधन के रूप में लिया जाता है। लेकिन इस स्थिति में सप्ताह के पांच दिन जमकर काम और फिर दो दिन आराम का सिद्धांत लागू होता है। एलटीसी यानी लीव ट्रेवल कन्सेशन भी इसी प्रकार की व्यवस्था है, जिसमें साल में एक बार कर्मचारी कुछ दिन की छुट्टी लेकर सपरिवार कहीं घूमने जा सकता है, जिससे तरोताज़ा होकर वह पूरे मन से काम में जुट सके।

अब हमारे देश में भी राइट टू डिस्कनेक्ट यानी कार्य स्थल से पृथक या विरत होना- कर्मचारी हित का यह कानून अपनी मूल भावना के साथ यदि सही अर्थों में लागू होता है तो निश्चित रूप से एक क्रांतिकारी निर्णय होगा।
( लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं )

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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