जन प्रतिनिधियों की अंतहीन लिप्सा- रवि शंकर शर्मा

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रवि शंकर शर्मा

अंधा बांटे रेवड़ी, फ़िर-फ़िर अपने को दे – कुछ यही कहावत विभिन्न प्रदेशों के मंत्रियों पर फ़िट बैठती है। अंतर महज़ इतना है कि यहां रेवड़ी अंधा नहीं बांटता, वरन पूर्ण ज्योति वाले माननीय मंत्री बांटते हैं, वह भी स्वयं को। मध्य प्रदेश में हाल ही में 52 वर्ष पुराने उसे अध्यादेश को बदल दिया गया, जिसमें मंत्रियों का आयकर सरकार भरा करती थी। इसके पूर्व भी ऐसा कुछ प्रदेशों में हुआ है। फ़िर भी मध्य प्रदेश कैबिनेट का यह फ़ैसला स्वागत योग्य है।
ज्ञातव्य है कि मंत्रियों को फ़र्निश्ड आवास, कार, पेट्रोल, शोफ़र, बिजली, फ़ोन, दवा व चिकित्सा भत्ता के अलावा सदन चलने पर अतिरिक्त भत्ता, कैंटीन में रियायती भोजन, निर्वाचन क्षेत्र में दौरे का भत्ता, सर्किट हाउस में निःशुल्क रहने की सुविधा व अन्य तमाम विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। फिर भी उनकी लिप्सा शांत नहीं होती।
इसके पहले भी यह संज्ञान में आया था कि कुछ प्रदेशों में सांसदों और विधायकों को उनके हर कार्यकाल के हिसाब से पेंशन भी दी जाती थी, यानी यदि कोई व्यक्ति चार बार सांसद या विधायक चुना गया है तो उसे चार गुनी नहीं पेंशन मिलती थी। जबकि किसी भी सरकारी कर्मचारी को 30-35 वर्ष की सेवा के बाद केवल इसी सेवा की पेंशन प्राप्त होती है। जनप्रतिनिधि यदि कुछ समय भी पद पर रहा तो उसकी पेंशन पक्की। यह विसंगति सामने आने पर कुछ मुख्यमंत्रियों ने इस पर भी कैंची चला दी। उत्तर प्रदेश में तो एक पुरस्कार प्राप्त होने पर भी पेंशन का प्रावधान किया गया था।
कुछ वर्ष पूर्व उत्तराखंड हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि तमाम पूर्व मंत्री सरकारी आवासों पर काबिज हैं और उसका किराया भी उसी पुरानी दर पर दे रहे हैं, जो की सरकार में रहते हुए देते थे। हाई कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताते हुए सरकार को निर्देश दिए थे कि ऐसे जनप्रतिनिधियों से बाजार दर के हिसाब से आवास का किराया वसूल किया जाए। इस पर काफी हो-हल्ला भी मचा था। इन मुफ्त की रेवड़ियों को प्राप्त करने में पक्ष और विपक्ष के सभी माननीयों में गजब की एकजुटता सामने आती रही है। वैसे चाहे विपक्ष सदन में सत्ता पक्ष का सिर फोड़ने को क्यों ना तत्पर हो, लेकिन जब उनका वेतन बढ़ाने या किसी प्रकार का भत्ता बढ़ाने की बात हो या अन्य कोई लाभ प्राप्त करने की बात हो तो सभी एक स्वर में उसका समर्थन करते हैं। यही एकजुटता यदि सभी जनप्रतिनिधि जन सेवा में दिखाएं तो समस्याएं अपने आप कम होती जाएंगी।

( लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं )

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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