करुणा के जीते-जागते प्रतीक हैं पूज्य दलाई लामा: सतपाल महाराज

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करुणा के जीते-जागते प्रतीक हैं पूज्य दलाई लामा: सतपाल महाराज

रिपोर्ट गबर सिंह भण्डारी, श्रीनगर गढ़वाल।

देहरादन। पूज्य दलाई लामा को अवलोकितेश्वर या चेनरेजिग (करुणा के बोधिसत्व और तिब्बत के रक्षक देवता) का अवतार माना जाता है। बोधिसत्व वे प्राणी होते हैं जो समस्त सजीवों के कल्याण हेतु बुद्धत्व प्राप्त करने की आकांक्षा रखते हैं और जिन्होंने मानवता की सेवा के लिए पुनर्जन्म लेने का संकल्प किया है।

उक्त बात प्रदेश के पर्यटन,धर्मस्व,संस्कृति,लोक निर्माण,सिंचाई,पंचायतीराज,ग्रामीण निर्माण एवं जलागम,मंत्री सतपाल महाराज ने रविवार को तिब्बती नेहरू मेमोरियल स्कूल,फुटबॉल ग्राउंड,क्लेमेंट टाउन स्थित तिब्बत कॉलोनी में तिरुपति कल्याण कार्यालय द्वारा आयोजित तिब्बत के 14 वें दलाई लामा,तेनजिन ग्यात्सो के जन्म दिन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कहीं। उन्होंने तिब्बत के 14 वें दलाई लामा को उनके 90 वें जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि पूज्य दलाई लामा जी एक असाधारण बौद्ध भिक्षु होने के साथ-साथ तिब्बत के आध्यात्मिक नेता हैं।

केन्द्रीय तिब्बत प्रशासन (सीटीए) ने उनके जन्मदिन के इस आनन्दमयी अवसर को मनाने के लिए इस वर्ष को करूणा का वर्ष घोषित किया है। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि दलाई लामा,तेनजिन ग्यात्सो का जीवन किसी धर्म,राष्ट्र या वाणी तक सीमित नहीं है वह करुणा के जीते-जागते प्रतीक हैं। उन्होंने निर्वासन में भी,पीड़ा में भी,पूरी दुनिया को यह सिखाया कि अहिंसा ही सच्ची शक्ति है,और दूसरों के दुख को अपना बना लेना ही सच्ची करुणा है। उनके वचन सरल हैं, लेकिन उनका प्रभाव गहरा है। जैसे उन्होंने कहा है यदि आप चाहते हैं कि दूसरे लोग खुश रहें,तो करुणा का अभ्यास करें।

यदि आप खुश रहना चाहते हैं,तो भी करुणा का अभ्यास करें। यह केवल उपदेश नहीं,उनका अपना जीवन है। और यही संदेश आज के संसार को सबसे अधिक चाहिए। महाराज ने कहा कि उन्हें इस बात का गर्व है कि भारतभूमि,जिसने महात्मा बुद्ध को जन्म दिया, आज ग्यालवा रिनपोछे को आश्रय देकर स्वयं भी धन्य हुई है। उनके साथ हमारा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध केवल अतीत की विरासत नहीं,यह शांति का,सह-अस्तित्व का,मानवता का और वर्तमान का जीवंत संवाद है। ।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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