घर में सुयोग्य चिराग के लिए करें पुंसवन संस्कार

घर में सुयोग्य चिराग के लिए करें पुंसवन संस्कार
समय की बड़ी मांग-पुंसवन संस्कार, ताकि घर का चिराग बने संस्कारवान
रिपोर्टर चंद्रप्रकाश बहुगुणा
हरिद्वार। हिंदू संस्कृति में गर्भावस्था के दौरान किए जाने वाले सोलह संस्कारों में से पुंसवन संस्कार का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह संस्कार गर्भधारण के तीसरे महीने के बाद संपन्न किया जाता है। इसका उद्देश्य गर्भ में पल रहे शिशु के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास को सुनिश्चित करना है।
इस विधि में वैदिक मंत्रों का उच्चारण, यज्ञ, पूजा और आयुर्वेदिक प्रक्रियाओं द्वारा गर्भवती महिला के स्वास्थ्य और अजन्मे शिशु के कल्याण की कामना की जाती है। गर्भकाल को जीवन के संस्कार देने का सर्वोत्तम समय माना गया है, क्योंकि इस समय मां का व्यवहार, आहार, विचार और भावनाएं सीधे गर्भस्थ शिशु को प्रभावित करती हैं।
धार्मिक ग्रंथों से लेकर आधुनिक विज्ञान तक, इस बात की पुष्टि करते हैं कि गर्भस्थ शिशु को संस्कार देना पूर्णतः संभव और प्रभावी है। महाभारत काल के अभिमन्यु, भक्त प्रह्लाद, अष्टावक्र, वेदव्यास और छत्रपति शिवाजी जैसे उदाहरण इस तथ्य के साक्ष्य हैं कि गर्भकाल में ही महान व्यक्तित्व की नींव रखी जा सकती है।
गायत्री परिवार के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने इसी उद्देश्य से पुंसवन संस्कार को जनआंदोलन बनाने का आह्वान किया। पिछले चार दशकों से अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा संचालित यह अभियान लाखों भावी माताओं को संस्कारित जीवन की ओर प्रेरित कर चुका है। वर्तमान में अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुखद्वय श्रद्धेय डॉ. प्रणव पंड्या एवं श्रद्धेया शैलदीदी के मार्गदर्शन में आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी कार्यक्रम विशेष रूप से शांतिकुंज, हरिद्वार से संचालित किया जा रहा है। गौरतलब है कि अब यह संस्कार केवल हिंदू माताओं तक सीमित नहीं है। अन्य धर्मों की महिलाएं भी इस वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया को अपनाने में रुचि दिखा रही हैं।
गर्भ संस्कार पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण
विज्ञान भी अब इस प्राचीन परंपरा की पुष्टि करने लगा है। कई शोध से पता चला है कि बताते हैं कि मां के विचार, भावनाएं और व्यवहार न्यूरोहोर्मोन्स व न्यूरोपेप्टाइड्स के माध्यम से शिशु तक पहुँचते हैं।
गर्भस्थ शिशु आवाजें पहचान सकता है, सपने देख सकता है और मातृभाषा की ध्वनि को पहचानना शुरू कर देता है। फ्रांस में हैप्टोनॉमी पद्धति से गर्भ संस्कार किया जाता है। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने भी शिशु विकास में गर्भ संस्कार की भूमिका को स्वीकारने लगे हैं। अमेरिका में एक हुए एक शोध में पाया गया है कि बच्चे गर्भ में ही मातृभाषा के उच्चारण पहचानना शुरू कर देते हैं। तुर्किए में मां बच्चा जन्म के बाद २० दिन का एकांतवास करते हैं। साइकोलॉजिकल टुडे जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार गर्भ संस्कार से उत्पन्न बच्चे अधिक भावनात्मक रूप से स्थिर, बुद्धिमान और संवेदनशील होते हैं।
अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ प्रणव पण्ड्या व शैलदीदी कहते हैं कि आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है संस्कारवान पीढ़ी का निर्माण और उसकी शुरुआत गर्भ से ही होती है। पुंसवन संस्कार एक धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक परंपरा भी है, जो भविष्य के नागरिकों को मानसिक और नैतिक मजबूती प्रदान करता है।

