शिक्षक दिवस पर विशेष……भारतीय समाज व सरकारों को शिक्षकों की भूमिका का नये सिरे से करना होगा मूल्यांकन

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शिक्षक दिवस की आप सभी को बधाई……भारतीय समाज व सरकारों को शिक्षकों की भूमिका का नये सिरे से करना होगा मूल्यांकन

प्रसून अग्रवाल

दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग तारीखों पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। भारत में यह 5 सितम्बर को तथा सन् 1994 से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह 5 अक्टूबर को मनाया जाता है।

*शिक्षक दिवस मनाने के पीछे मुख्य विचार युवा मस्तिष्क और राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका तथा शिक्षण पेशे की गरिमा व शिक्षकों के योगदान को स्वीकार करना है*
चाणक्य ने स्पष्ट कहा है “शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं।” वहीं डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा है कि “शिक्षक एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बौद्धिक परम्पराएँ और तकनीकी कौशल पहुंचाने का केंद्र है और सभ्यता के प्रकाश को प्रज्ज्वलित रखने में सहायता देता है।” कोठारी आयोग ने भी अध्यापकों को ‛राष्ट्र-निर्माता’ की संज्ञा दी है।

गुरुकुल आधारित शिक्षा प्रणाली भारतीय परंपरा का प्रमुख अंग है। नालंदा और तक्षशिला की स्थापना तथा इसके प्रभाव से भारतीय शिक्षा व्यवस्था की समृद्ध परंपरा को जाना जा सकता है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश ढांचे पर आधारित है। भारत में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना इसी ब्रिटिश प्रणाली के अनुरूप हुई। वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में हमारा समाज एक अज्ञात भविष्य की ओर अग्रसर है। हमें शिक्षा व्यवस्था को तकनीकी कुशल बनाने की जरूरत है। वैश्वीकरण और बाजारीकरण के दौर में हमारी शिक्षा व्यवस्था को भारतीय समाज के अनुकूल बनाने की जरूरत है। वर्तमान में सतत भविष्य के लिए शिक्षकों को सशक्त बनाने की आवश्यकता है।

शिक्षकों के बारे में समाज की धारणा पिछले 75 वर्षों में कैसे बदल गई, यह हमारे साहित्य और फिल्मों में शिक्षक पात्रों के चरित्र-चित्रण में देखा जा सकता है। 20वीं सदी के लेखकों, जैसे प्रेमचंद, शरत चंद्र, बंकिम चंद्र, रवींद्रनाथ टैगोर आदि ने अपनी रचनाओं में शिक्षकों को बहुत सकारात्मक रूप में चित्रित किया है। भारतीय फिल्में भी शुरुआत में आदर्श रूप में ही शिक्षकों को पेश करती रहीं। मगर पिछले दशकों से फिल्मों में शिक्षकों को कमोबेश एक हास्यास्पद चरित्र के रूप में पेश किया जा रहा है। भारतीय समाज ज्ञान-विज्ञान, चरित्र निर्माण, सामाजिक सद्भाव और सामाजिक सरोकार जैसे मूल्यों में अपनी निष्ठा लगातार खो रहा है। भारतीय समाज व सरकार को शिक्षकों की भूमिका का नए सिरे से मूल्यांकन करना होगा।

शिक्षकों को भी आत्मालोचना करने की जरूरत है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कहा गया है कि शिक्षक हमारे राष्ट्र-निर्माता हैं। शिक्षकों को उच्चस्तरीय सम्मान व जीवन स्तर फिर से मिलना चाहिए, ताकि सर्वश्रेष्ठ युवा प्रतिभाओं को शिक्षक बनने के लिए प्रेरित किया जा सके। क्या हम भारतीय समाज में उनको एक सम्मानजनक स्थान देने की स्थिति में हैं और क्या 21वीं सदी के ज्ञानोन्मुख समाज के लिए हम उन्हें नए सिरे से प्रशिक्षित और प्रेरित कर पाएंगे? इसके जवाब हमें खुद ही ढूंढ़ने होंगे।

लेखक- प्रसून अग्रवाल, शिक्षक,पूर्व पत्रकार एवं वकील

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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