केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में अब छठी से भी पढ़ाई

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में अब छठी से भी पढ़ाई
गबर सिंह भण्डारी
देवप्रयाग। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में अब कक्षा-6 से भी पढ़ाई होगी। इसके लिए ’श्रीरघुनाथकीर्ति बालगुरुकुलम्’ नामक विद्यालय परिसर में ही खोल दिया गया है। इसका उद्घाटन रविवार को पलिमरु उडुपि मठ,कर्नाटक के मठाधीश अनंत श्री श्री श्री विद्याधीश महास्वामी ने किया। उन्होंने केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की इस पहल को संस्कृत शिक्षा जगत का मजबूत पक्ष और महत्त्वपूर्ण सोपान बताते हुए कहा कि उत्तराखंड के लिए यह संस्थान विशेष लाभकारी होगा। श्री श्री श्री विद्याधीश महास्वामी ने कहा कि संस्कृत को मृत भाषा बताने लोग इसके महत्त्व से अनभिज्ञ हैं। यह जीवंत भाषा है और रहेगी। संस्कृत का मुकाबला दुनिया की कोई भाषा नहीं कर सकती है। एक बार संस्कृत जगत में प्रवेश करने वाला व्यक्ति संस्कृत का ही होकर रह जाता है। वैज्ञानिक आधार वाली इस भाषा को प्राथमिक स्तर पर भी पढ़ाया जाना चाहिए।
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने छोटे बच्चों के लिए भी उत्तराखंड देवभूमि में अलकनंदा-भागीरथी के किनारे यह सुविधा उपलब्ध कराकर बड़ा पुण्य और गौरव वाला कार्य किया है। कुलपति प्रो.श्रीनिवास वरखेड़ी और निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम इसके लिए बधाई के पात्र हैं। महास्वामी ने कहा कि श्री रघुनाथ की धरती पर इस बाल के उद्घाटन पर मैं उतना ही आनंदित हूं,जितना कोई परिजन अपने परिवार में नवशिशु के जन्म पर आनंदित होता है। श्रीरघुनाथकीर्ति नामक यह बालगुरुकुलम् बच्चे की तरह निर्बल नहीं,बल्कि श्री राम की तरह सबल होकर संस्कृत शिक्षा जगत के लिए महान् विद्वानों की पौध को तैया करेगा।
यह संस्कृत शिक्षा जगत की महान नर्सरी बनेगा। रामायण के बालकांड में ताड़का वध,विश्वामित्र यज्ञ की रक्षा,शिव धनुष यज्ञ,सीता-राम विवाह जैसी महत्त्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं,इसलिए बालकांड महत्त्वपूर्ण है। अतः यह बालगुरुकुलम भी इसी प्रकार महानता का सा्रेत बनेगा। उन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्र की इस तपोभूमि में प्राच्य विद्या का यह केंद्र उत्तराखंड के संस्कृत प्रेमी लोेगों और उनके शिशुओं के लिए वरदान सिद्ध होगा। इसके परिणाम देर से सामने आयेंगे,लेकिन वे परिणाम श्रेष्ठतायुक्त होंगे। भागीरथी-अलकनंदा के संगम,श्री रघुनाथ मंदिर के निकट और देवप्रयाग जैसे महातीर्थ में इस केंद्र का खुलना स्वयं में महत्त्वपूर्ण है,क्योंकि भागीरथी आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है,अलकनंदा निरंतर सकारात्मक चिंतन को प्रेरित करती है और श्री रघुनाथ अन्याय का नाश तथा मर्यादा की रक्षा करते हैं।
श्री श्री श्री विद्याधीश महास्वामी के शिष्य श्री विद्या राजेश्वर तीर्थ ने कहा कि देवप्रयाग जैसे आध्यात्मिक क्षेत्र और पवित्र भूमि में इस प्रकार का विद्या केंद्र खुलना संस्कृत के प्रचार-प्रसार और संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। इस पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.श्रीनिवास वरखेड़ी के संदेश में कहा गया कि यह हमारा परम सौभाग्य है कि भागीरथी-अलकनंदा के तट पर स्थित पवित्रभूमि पर दो महान संतों श्री श्री श्री विद्याधीश महास्वामी और उनके शिष्य श्री विद्या राजेश्वर तीर्थ के करकमलों से इस बालगुरुकुलम् का उद्घाटन किया गया है।
दोनों संतों के चरण हमारे परिसर में पड़ना भी हमारे लिए सौभाग्य की बात है। यह ऐतिहासिक कार्यक्रम हमारे लिए फलदायी होगा,ऐसा हमें विश्वास है। अतिथियों का अभिनंदन करते हुए निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा कि देवप्रयाग जैसे विकट भौगोलिक क्षेत्र में शिक्षण संस्थान का संचालन चुनौतीभरा तो है,परंतु दृढ़़ इच्छाशक्ति के सामने सभी समस्याएं बौनी हो जाती हैं। विश्वविद्यालय के इस अंकुर को वृक्ष बनने में समय लगेगा,लेकिन उस पर बहुत अच्छे फल निकलेंगे,ऐसा मुझे विश्वास है।
कार्यक्रम का संचालन व्याकरण प्राध्यापक डाॅ.गणेश्वरनाथ झा तथा धन्यवाद ज्ञापन डाॅ.ब्रह्मानंद मिश्र ने किया। इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक डाॅ.शैलेंद्रनारायण कोटियाल,सहनिदेशिका प्रो.चंद्रकला आर.कोंडी,डाॅ.अनिल कुमार,डाॅ.सुशील प्रसाद बडोनी,डाॅ.सच्चिदानंद स्नेही,डाॅ.श्रीओम शर्मा,डाॅ.धनेश,डाॅ.अमंद मिश्र,डाॅ.सुधांशु वर्मा,डाॅ.रश्मिता,डाॅ.सुरेश शर्मा,डाॅ.रवींद्र उनियाल,रजत गौतम छेत्री,अंकुर वत्स,डाॅ.सुमिति सैनी,पायल पाठक,डाॅ.सोमेश बहुगुणा,पंकज कोटियाल,डॉ.दिनेशचंद्र पांडेय,डाॅ.सूर्यमणि भंडारी,डाॅ.मनीषा आर्या,डाॅ.अरविंद सिंह गौर,डॉ.अवधेश बिजल्वाण,डाॅ.जनार्दन सुवेदी आदि उपस्थित थे।
महास्वामी के साथ तीन सौ अनुयायियों का जत्था देवप्रयाग के आध्यात्मिक और धार्मिक वातावरण को देख कर्नाटक के संत अभिभूत हो गये। लगभ तीन सौ अनुयायियों के साथ आये पलिमरु उडुपि मठ,कर्नाटक के मठाधीश अनंत श्री श्री श्री विद्याधीश महास्वामी ने देवप्रयाग को उत्तराखंड का महान तीर्थ बताया और बार-बार यहां आने की इच्छा प्रकट की। उन्होंने कहा कि वे यहां से अब बद्रीधाम की यात्रा पर जाएंगे।
श्री श्री श्री विद्याधीश महास्वामी की कर्नाटक क्षेत्र में बड़ी प्रसिद्धि और महत्त्व है। उनके वहां लाखों अनुयायी हैं। उनके साथ 11 बसों, एक टेंपों ट्रैवलर और चार छोटी गाड़ियों का काफिला है। इसमें लगभग तीन सौ लोग शामिल हैं। ये अपने लिए भोजन की व्यवस्था स्वयं करते हैं। देवप्रयाग आते ही श्री श्री श्री विद्याधीश महास्वामी ने सर्वप्रथम केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के निदेशक से परिसर की शैक्षणिक गतिविधियों,विभिन्न पाठ्यक्रमों और ढांचागत व्यवस्थाओं की जानकारी हासिल की।
उन्होंने इसके बाद देर शाम रामकुंड स्थित गंगा घाट पर गंगा आरती की। सुबह वे गंगा स्नान को गये और इसके बाद भगवान श्री रघुनाथ के मंदिर और शिवमंदिर के दर्शन किये। उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर यह परिसर स्थापित है, वह बड़ी पुण्य भूमि है। ऐसे स्थानों पर विद्या का फल श्रेष्ठ रूप में प्राप्त होता है। विभिन्न विषयों के अध्यापकों से बातचीत कर उन्होंने उनके विषयों के विषय में भी विभिन्न जानकारियां प्राप्त कीं।

