पत्रकारों के हित की चिंता किसी को नहीं…..

खबर शेयर करें -

पत्रकारों के हित की चिंता किसी को नहीं

रवि शंकर शर्मा

गत दिवस सुप्रीम कोर्ट ने जिला न्यायाधीशों को दी जा रही पेंशन के मुद्दों पर केंद्र सरकार से विचार करने को कहा है। शीर्ष अदालत ने इस बात पर चिंता जताई कि भारत में जिला न्यायाधीशों की पेंशन बहुत कम है। साथ ही यह भी नोट किया कि यदि जिला जजों को बाद में हाईकोर्ट में पदोन्नत भी कर दिया जाता है तो भी ऐसी कठिनाइयां हल नहीं होती हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय पीठ ने अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ की ओर से 2015 में दायर एक याचिका पर विचार करते हुए इस पहलू पर ध्यान दिया। जिस पर केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आश्वासन दिया कि सरकार इस मसले की जांच करेगी।

जिला न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद कम पेंशन मिल रही है, यह बात मुख्य न्यायाधीश को परेशान करती है, लेकिन तमाम निजी संस्थाओं और श्रमजीवी पत्रकारों को 25 से 30 वर्ष की सेवा के बाद भी महज़ एक से दो हज़ार रुपये पेंशन मिलती है, इस पर उनका ध्यान नहीं जाता। जबकि इससे संबंधित मामले न जाने कितनी बार देश की संसद और न्यायपालिकाओं में रखे जा चुके हैं। कुछ प्रदेशों के हाईकोर्ट एवं स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में कुछ वर्ष पहले संज्ञान भी लिया था और केंद्र सरकार को निर्देशित भी किया था, लेकिन स्थिति वही ढाक के तीन पात। कारण ना तो सरकार को इन कर्मचारियों की कोई चिंता है, ना ही ईपीएफ विभाग को।

कहने को तो तमाम राज्यों में पत्रकार कल्याण कोष बनाए गए हैं, जिनके माध्यम से पत्रकारों की मदद की जाती है, लेकिन जहां तक पेंशन का सवाल है तो उन्हें इतनी भी पेंशन प्राप्त नहीं होती कि वे सम्मानपूर्वक अपना जीवन निर्वाह कर सकें। पत्रकारों के लिए पहले वेतन आयोग बिठाए जाते थे। वे पत्रकारों के हित में अपनी संस्तुतियां भी देते थे, लेकिन उन पर कभी विचार नहीं किया गया।

पत्रकारों को हमेशा उतना ही वेतन मिलता रहा जितना उनके संस्थान तय करते थे और उसी के आधार पर सेवानिवृत्ति के बाद उनकी पेंशन भी निर्धारित होती है, जो की ऊंट के मुंह में जीरा के समान होती है। कहने को तो सभी राजनीतिक दल एवं नेतागण अपने आप को पत्रकारों के हित में खड़ा दिखाते हैं, लेकिन जब उनके वेतन एवं पेंशन की बात आती है तो कोई भी इस बात को पुरजोर तरीके से संसद अथवा विधानसभाओं में नहीं उठाते कि आखिर जो पत्रकार अपने जीवन तक को दांव पर लगाते हुए रिपोर्टिंग करते हैं और पूरा जीवन जनता के हितों की बात उठाते हुए गुजार देते हैं, उन्हें भी सेवानिवृत्ति के बाद सम्मानपूर्वक जीने का हक है।उम्मीद करते हैं कि जिस प्रकार देश के मुख्य न्यायाधीश ने न्यायाधीशों की पेंशन को लेकर चिंता जताई है, उसी प्रकार वे पत्रकारों के हितों की भी चिंता करेंगे।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

Ad
Ad

दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

Related Articles