प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में हैं इन्हें असीमित समझना ही आपदा और विपदा का बड़ा कारण

लक्ष्मी आश्रम कौसानी में सरला स्मृति व्याख्यान व गांधी कथा विमर्श का तीन दिनी आयोजन

गांधी के रामराज्य का मतलब है अन्याय विहीन समाजव्यवस्था
प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में हैं इन्हें असीमित समझना ही आपदा और विपदा का बड़ा कारण
हरीश चंद्र जोशी, वरिष्ठ पत्रकार
कौसानी(बागेश्वर)। यहां लक्ष्मी आश्रम में ‘गांधी कथा’ पर तीन दिवसीय विमर्श कार्यक्रम और गांधी जी की अनन्य शिष्या कैथरीन मेरी हाइलामन (सरला बहिन) स्मृति चतुर्थ व्याख्यान आयोजित किया गया। इसमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के अध्यापकों और छात्रों सहित लगभग 60 नागरिकों के समक्ष गांधी विचार पर कई उदाहरणों, आंकड़ों और कहानियों के साथ गांधी विचार और उसकी वर्तमान प्रासंगिकता पर गहन विमर्श किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य व्याख्याता दिल्ली विश्व विद्यालय के पूर्व प्रोफेसर सलिल मिश्रा ने अपने व्याख्यान में तथ्य और आंकड़ों के साथ गांधी दर्शन पर विहंगम दृष्टिपात किया और कहा कि प्राकृतिक संसाधनों को असीमित समझने की भूल ही मानव जाति के लिए सबसे बड़ी विपदा और आपदा का कारण है जबकि गांधी के रामराज्य का मतलब अन्याय विहीन सामाजिक व्यवस्था है जिसे ठीक से समझ कर व्यवहार में लाना ही दीर्घकालिक टिकाऊ विकास का आधार हो सकता है।
कार्यक्रम विमर्श के महत्वपूर्ण निष्कर्षों में निकल कर आया कि महात्मा गांधी मानव जाति के इतिहास में पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने सत्य और अहिंसा को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का साधन बनाने के लिए प्रयोग किए। करुणा, सत्य और अहिंसा व्यक्तिगत आचरण के मूल्य थे; गांधी ने उन्हें परिवर्तन के मूल्य बना दिया।
गांधी ने रामराज्य की कल्पना की। राम ऐतिहासिक पुरुष थे या नहीं, इसकी वे चिंता नहीं करते। गांधी का रामराज्य यानी अन्याय की अनुपस्थिति वाली राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था। गांधी का रामराज्य ‘हिंदू राष्ट्र’ नहीं है। गांधी ने यह कहने के बजाय कि ‘ईश्वर सत्य है’, यह कहा कि ‘सत्य ही ईश्वर है’ और इस तरह ईश्वर के नाम पर होने वाले झगड़ों का समाधान कर दिया। उन्होंने सत्य और अहिंसा को एक ही सिक्के के दो पहलू बताकर, अहिंसा को ईश्वर के समकक्ष स्थापित कर दिया।
गांधी मानते थे कि सत्य और अहिंसा स्वाभाविक हैं, सहज हैं। असत्य और हिंसा अस्वाभाविक हैं और इसलिए त्याज्य हैं। अहिंसा और प्रेम के बिना मनुष्य जीवन संभव ही नहीं है। आज जब 1100 से अधिक परमाणु बम जैसे खतरनाक और घातक हथियारों से वर्तमान 800 करोड़ की आबादी को चार बार मारा जा सकता है, तब अहिंसा ही मनुष्य को बचा सकती है।
गांधी टेक्नोलॉजी के विरोधी नहीं थे, बल्कि उसके पीछे के पागलपन के विरोधी थे। गांधी ने अपनी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ में रेलवे की आलोचना की है, पर वे ट्रेन में यात्रा करते ही थे।
जब देश की 33 करोड़ की आबादी में केवल 82,000 फ़ोन थे, तब उनके पास फ़ोन का काला डिब्बा था। जो टेक्नोलॉजी अन्याय और शोषण करती है, उसके विरुद्ध उनका विरोध था। गांधी का स्वदेशी आज के आत्मनिर्भरता के नारे से अलग था। यथासंभव अधिक मात्रा में स्थानीय संसाधनों द्वारा स्थानीय स्तर पर उत्पादन और स्थानीय स्तर पर उपभोग, यह गांधी का स्वदेशी था। आज के नारे में ऐसा कुछ नहीं है। यदि आज के भारत में 5400 से अधिक विदेशी कंपनियाँ हैं तो यह अदृश्य गुलामी है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
गांधी यानि स्वदेशी, सत्याग्रह और सर्वोदय। बाज़ार के शोषण और राज्य की सत्ता के दबाव के विरुद्ध वे व्यक्ति की आज़ादी इन तीन साधनों द्वारा चाहते थे। उनके लिए देश की आज़ादी से ज़्यादा व्यक्ति की आज़ादी महत्त्वपूर्ण थी। इसीलिए उन्होंने 1909 में लिखी अपनी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ में मूल मुद्दा “हर किसी को स्वराज्य भोगने का” है – ऐसा लिखा था।
यदि गांधी, अंबेडकर, नेहरू और सरदार जैसे नेता नहीं होते तो शायद इस देश में आज़ादी मिलते ही ऐसा संविधान नहीं बन पाता और लोकतंत्र नहीं आता। भारत के बाद 120 देश आज़ाद हुए, लेकिन किसी भी देश में आज़ादी के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था खड़ी नहीं हुई थी। स्वतंत्रता, समानता, न्याय, बंधुता तथा लोकतंत्र के मूल्यों की समझ उन चारों में भरपूर थी। इस लोकतंत्र को बचाए रखना और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अन्याय तथा तानाशाही के विरुद्ध लड़ना ही गांधी विचार का आधार है।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से पद्मश्री राधा बहिन, नीमा वैष्णव, कान्ति बहिन, प्रोफेसर हेमन्त शाह, सुनील भट्ट, वरुण मित्रा
प्रोफेसर सलिल मिश्रा ने विचार प्रस्तुत किए।
ज्ञातव्य है कि उत्तराखंड के कौसानी में स्थित लक्ष्मी आश्रम विगत कई दशकों से स्वावलंबन,स्त्री शिक्षा और पर्यावरण के विषयों पर उल्लेखनीय कार्य करते हुए सामाजिक उत्थान के नित नए अध्याय प्रस्तुत कर रहा है।


