उत्तराखंड के अधिकांश जिले पर्यावरण प्रदूषण से प्रभावित

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उत्तराखंड के अधिकांश जिले पर्यावरण प्रदूषण से प्रभावित

रवि शंकर शर्मा

कुछ वर्ष पूर्व शिकागो विश्वविद्यालय की शोध संस्था एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एट द यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो ने दावा किया था कि बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण उत्तराखंड में लोगों की उम्र कम हो रही है।

संस्था ने दावा किया था कि लाइफ इंडेक्स के अनुसार लोगों की उम्र देहरादून में 4.2, हरिद्वार में 6.6 और ऊधम सिंह नगर में 6.1 साल घट गई है। रिपोर्ट में आगे कहा गया था की वायु प्रदूषण का असर नैनीताल, चंपावत, पौड़ी और अल्मोड़ा जैसे पहाड़ी और अपेक्षाकृत साफ़ आबोहवा वाले इलाकों पर भी पड़ा है, जिसके चलते नैनीताल में औसत उम्र 4.2, पौड़ी में 3.2, चंपावत में 2.3 और अल्मोड़ा में 2.1 साल कम हो रही है। इस प्रकार की ख़बरें काफी लोग पढ़ते हैं और उन्हें नजरंदाज़ कर देते हैं, क्योंकि अधिकांश लोग सोचते हैं कि वे स्वच्छ पर्यावरण में रहते हैं, इसलिए उन्हें इस प्रकार की किसी भी रिपोर्ट पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन यह जो शोध अध्ययन होते हैं, उनमें सच्चाई अवश्य होती है, क्योंकि वे वैज्ञानिक तरीके से बड़े सैंपल पर अध्ययन कर तैयार किए जाते हैं। यह भी आज की सच्चाई है कि जिस रफ्तार से पेड़ों को काटा जा रहा है, उससे पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

सरकारी दावों के अनुसार, हर वर्ष करोड़ों नए पेड़ लगाए जा रहे हैं, लेकिन यह नहीं बताया जाता कि वर्ष भर में जितने अग्निकांड होते हैं, उसमें कितने हेक्टेयर वन जलकर राख हो जाते हैं। गत वर्ष लगभग इसी समय दिल्ली समेत पूरा एनसीआर गैस चैंबर बन गया था और पूरे एनसीआर में घनी स्माॅग की चादर छाई हुई थी। उत्तर प्रदेश के मेरठ से लेकर हरियाणा के भिवाड़ी तक हवा की गुणवत्ता गंभीर स्तर पर बनी हुई थी और गाजियाबाद देश का सबसे प्रदूषित शहर दर्ज किया गया था। ऐसा पराली के धुएं और सतह पर चलने वाली हवा की शून्य चाल के कारण हुआ।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली एनसीआर में स्मॉग के दमघोंटू माहौल से पिछले कुछ वर्षों में सांस की बीमारी से मरने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। बढ़ता औद्योगीकरण, वनों की अंधाधुंध कटाई और वातावरण में बढ़ते कार्बन उत्सर्जन ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ कर रख दिया है। इसका खामियाज़ा सभी भुगत रहे हैं। दरअसल जलवायु परिवर्तन से उपजने वाली समस्याओं को हमेशा भविष्य की समस्या मानकर टालने की प्रवृत्ति रही है, क्योंकि यह तत्काल प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित नहीं होती, लेकिन आज इस पर गहन मंथन की ज़रूरत है। साथ ही हर व्यक्ति को इस पर ध्यान देना होगा, तभी पर्यावरण की रक्षा होगी और मानव जाति सुरक्षित हो सकेगी।

( लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं )

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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