बुजुर्गावस्था को बनाएं वरदान

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बुजुर्गावस्था को बनाएं वरदान

रवि शंकर शर्मा

पुणे की एक सोसायटी में मैंने एक बेहद बुजुर्ग दंपती को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझते हुए भी अपने घर-बाहर के सभी कार्य स्वयं करते देखा तो मेरे मन में उनके परिवार के अन्य सदस्यों के बारे में जानकारी करने का विचार आया। पता चला कि उनका बेटा सोसायटी से काफी दूर अपने परिवार के साथ रहता है, जो कि बहुत ही कम माता-पिता के पास आता है। वहीं इलाहाबाद में रहते समय भी मैं जब अपने एक मित्र के पास जाता था तो उसके वृद्ध पिता भी हम लोगों के साथ बैठकर खूब ठहाके लगाते थे, जबकि माताजी अपने कमरे तक ही सीमित रहती थीं।

पुणे के बुजुर्ग के संदर्भ में अलग रहने की मजबूरी उनके स्वयं की वजह से है या बेटे के व्यवहार की वजह से, यह तो नहीं कह सकता, लेकिन यह तय है कि दोनों के मध्य कुछ ना कुछ तनाव का कारण है जरूर। इसी प्रकार इलाहाबाद के संदर्भ में भी यह स्पष्ट दिखता है कि मित्र के वृद्ध पिता बहिर्मुखी और मिलनसार थे, जबकि मां पूरी तरह अंतर्मुखी और एकांतवासी। संभवतः यही कारण था कि पिताश्री का ना केवल समय आसानी से कट जाता था, बल्कि वह स्वस्थ भी थे। क्योंकि दूसरों के साथ अधिक से अधिक समय बिताने, सकारात्मक रहने और हंसने को एक बेहतर थेरेपी माना गया है।

आज अधिकांश परिवार एकल हो गए हैं, कुछ तो बच्चों की पेशेगत विवशताओं की वजह से तो कुछ आपसी विवादों के कारण। ऐसे में जहां माता-पिता बुढ़ापे का दंश झेलते हुए किसी शहर के कोने में अपने अंतिम सफर का इंतजार कर रहे होते हैं तो उनके विवाहित बच्चे भी उनसे दूर रहकर न केवल उनकी चिंता करते रहते हैं, वहीं उनके नाती-पोते भी दादा-दादी और नाना-नानी के सानिध्य सुख से वंचित रह जाते हैं।

अमेरिकी लेखिका निक्की मार्टिन का भी मानना है कि जहां पिता बच्चों से सक्रिय जुड़ाव रखते हैं तो वे परिवार अधिक मजबूत और बच्चे अधिक आत्मविश्वासी होते हैं। इन वाक्यों की सच्चाई इस रूप में सामने आती है कि माता-पिता के जुड़ाव से बच्चे अपने आपको असुरक्षित महसूस नहीं करते तथा उनमें यह भाव हमेशा जागृत रहता है कि कोई भी समस्या आए, माता-पिता तो उनके साथ खड़े ही हैं। यही भाव बच्चों को अधिक आत्मविश्वासी बनाता है।
वृद्धावस्था को एक अभिशाप मानने के बजाय यदि बुजुर्ग इसे सकारात्मक रूप से लें कि यह अवस्था तो जीवन में सभी के साथ आती है तो जीवन जीना अधिक आसान हो जाएगा। क्योंकि एक निश्चित आयु के बाद शारीरिक शक्ति का क्षीण होना और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें आना सामान्य बात है।

इससे निराश न होकर स्वस्थ रहने के लिए प्राणायाम और योग का सहारा ही बेहतर विकल्प है। स्वस्थ रहेंगे तो किसी परिवारीजन के लिए समस्या नहीं बनेंगे और किसी पर भी आश्रित नहीं रहना पड़ेगा। बुजुर्गावस्था में सबसे बड़ी समस्या होती है समय काटने की। लेकिन यदि अपने बच्चों और नाती-पोतों के साथ रहने का अवसर प्राप्त हो तो उसे प्रथम प्राथमिकता दें। इससे न केवल बच्चों के बीच रहकर आप खुश रहेंगे, बल्कि नाती-पोते भी आपसे बहुत कुछ सीख पाएंगे, विशेष रूप से संस्कार। यह आपके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

अधिकांश माता-पिता संघर्षों के बाद ही जीवन में आगे बढ़े होते हैं, ऐसे में बच्चों को भी जाने-माने कवि गोपाल दास नीरज की वह कविता याद रखनी होगी, जिसमें वह कहते हैं- मैं तूफानों में चलने का आदी हूं..तो यदि माता-पिता रिटायरमेंट के बाद भी कुछ करना चाहते हैं तो बच्चे उसमें बाधक न बनकर उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित ही करें। इसके तहत माता-पिता योग अथवा ट्यूशन क्लासेस चला सकते हैं, पुरानी यादों को संजोते हुए कुछ लिख-पढ़ सकते हैं..और नहीं तो नाती-पोतों को पढ़ाने के साथ ही उन्हें घुमाने भी ले जा सकते हैं। जितना वे व्यस्त रहेंगे, उतने ही स्वस्थ रहेंगे।

( लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं )

संपर्क : पीली कोठी, बड़ी मुखानी हल्द्वानी ( नैनीताल)
मोबाइल – 90124 32000

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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