श्री जागेश्वर धाम में भगवान शिव जागृत रूप में हैं विद्यमान…
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श्री जागेश्वर धाम में भगवान शिव जागृत रूप में हैं विद्यमान
(उत्तराखण्ड)अल्मोड़ा: देवभूमि उत्तराखंड में विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम अपार आस्था का केंद्र है। स्कन्द पुराण मानस खंड व शिव पुराण के अनुसार सबसे पहले शिवलिंग का पूजन जागेश्वर धाम से ही शुरू हुआ था। यहां भगवान शिव जागृत रूप में विद्यमान हैं। जागेश्वर मंदिर 12 ज्योर्तिलिंगों में स्लोक के अनुसार आठवें स्थान पर है। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने यहां आकर इस धाम में तप पूजन कर शिवलिंग को किलित किया तथा इसकी मान्यता को पुन: स्थापित किया।
अल्मोड़ा से 35 किमी दूर देवदार के घने वनों के बीच जागेश्वर धाम स्थित है। जागेश्वर मंदिर समूह में 125 छोटे-बड़े मंदिर हैं। इनका निर्माण सातवीं से 14 वीं शताब्दी के मध्य माना जाता है। मंदिर भगवान शिव और अन्य देवी देवताओं को समर्पित हैं जिनमें योगेश्वर ज्योतिलिंग (जागेश्वर), महामृत्युंजय, केदारेश्वर, नव दुर्गा, सूर्य, नवग्रह, लकुलीश, बालेश्वर, पुष्टिदेवी, कुवेर और कालिका देवी आदि प्रमुख हैं।
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कत्यूरी शासकों ने सातवीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी के बीच इन मंदिरों का निर्माण और पुुनरोद्धार किया। मंदिर समूह को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण देहरादून मंडल ने राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया है। मुख्य पुरोहित पंडित हेमन्त भट्ट ने बताया कि यहां स्थापित शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में आठवां हैं। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने यहां आकर मंदिर की मान्यता को पुनर्स्थापित किया।
जागेश्वर मंदिर प्राचीन कैलाश मानसरोवर मार्ग पर स्थित है। मानसरोवर यात्री यहां पूजा-अर्चना करने के बाद ही आगे बढ़ते थे। कुछ मंदिर नागर शैली के बने है। यहां स्थापित मंदिरों की विशेषता यह है कि इनके शिखर में लकड़ी का बिजौरा (छत्र) बना है जो बारिश और हिमपात के वक्त मंदिर की सुरक्षा करता है। ज्योतिलिंग जागनाथ मंदिर के द्वार पर द्वारपाल के रूप में नंदी को अंकित किया गया है। जागेश्वर लकुलीश संप्रदाय का भी प्रमुख केंद्र रहा।
लकुलीश संप्रदाय को शिव के 28 वें अवतार के रूप में माना जाता है। इस धाम में कुमाऊंनी राजा चंद शासकों ने पूजा-अर्चना की सुचारु व्यवस्था की तथा अपनी जागीर से 103 गूठ गांव जागेश्वर धाम की सेवा में अर्पित किए । मंदिर में लगने वाले भोग आदि की सामग्री इन्हीं गांवों से आया करती थी। जागेश्वर मंदिर में राजा दीप चंद और पवन चंद की धातु निर्मित मूर्ति भी स्थापित है। जो अपनी प्रतिज्ञा स्वरुप खड़े हैं कि जब तक सुर्य, चन्द्रमा, तारें विधमान रहेंगे, तब तक भगवान जागेश्वर की पूजा निरंतर होती रहेगी, जागेश्वर धाम से कई अनूठी परंपराएं जुड़ी हैं।
महाशिवरात्रि पर्व पर निसंतान महिलाएं पूरी रात हाथ में दीपक लेकर तपस्या करती हैं। महिलाएं एक ही मुद्रा में खड़े रहकर पूरी रात तपस्या करती हैं। अनुष्ठान कर रहीं महिलाओं के परिजन उनकी देखरेख करते हैं। अगले दिन प्रात:काल मंदिर पूजा के समय पुजारी महिलाओं के अनुष्ठान का पारायण कराते हैं। इनके साथ ही कई तरह के अनुष्ठान के लिए लोग यहां आते हैं। महाशिवरात्रि पर्व पर जागेश्वर धाम में चार पहर की पूजा होती है जिसमें भगवान शिव को रात्रि 12 बजे के बाद महाभोज लगाया जाता है तथा भोलेनाथ के 1008 नामों से रुद्राभिषेक व पूजन किया जाता है।