कुमाऊनी दैनिक पंचांग/ऋषि चिंतन

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कुमाऊनी दैनिक पंचांग/ऋषि चिंतन

*31 पैट (गते) चैत्र, रविवार
*13अप्रैल 2025

आप सभी को नमस्कार🙏
*विक्रम संवत- 2082
*शक संवत- 1947
*सिद्धार्थी नाम संवत्सर
*सूर्य उत्तरायन बसंत ऋतु
*चैत्र शुक्ल पक्ष
*तिथ – पूर्णमासी प्रातः 5:52 तक फिर प्रतिपदा
*नक्षत्र चित्रा
*योग हर्षण
*राहुकाल मध्याह्न 4:30 से सायं 6:00 बजे तक।
*सूर्योदय-5 :51
*सूर्यास्त- 6 :33
*दिशाशूल पश्चिम
*चैत्र-मासफल
*इस माह
ओलावृष्टि और अग्निकांड की संभावना। अकाल की स्थिति अनाज मूंगफली और तेल के दाम में अस्थिरता रहेगी।
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*चैत्र माह के मुख्य पर्व
*14 मार्च-मीन संक्रान्ति ( देली पूजन संक्रांति) चैत्र शुरु। पर्व की फाल्गुनी पूर्णमासी
*15 मार्च छलड़ी
*16 मार्च होली टीका
*17 मार्च मासिक संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत।
*22 मार्च शीतलाष्टमी
*25 मार्च पापमोचनी एकादशी व्रत स्मार्त ।
*26 मार्च पापमोचनी एकादशी व्रत वैष्णव।
*27 मार्च प्रदोष व्रत-शिवरात्रि व्रत
*29 मार्च श्राद्ध और स्नान, दान की पूर्णवत्सरी अमावस्या
*30 मार्च चैत्र नवरात्रि शुरु नवसंवत्सर
*1अप्रैल मासिक वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी व्रत।
*5 अप्रैल महाष्टमी ।
*6अप्रैल रामनवमी
*8 अप्रैल कामदा एकादशी व्रत सभी का।
*10 अप्रैल- प्रदोष व्रत।
*12 अप्रैल पर्व और व्रत महाचैत्री पूर्णमासी
*13 अप्रैल-मासान्त चैत्र माह का लास्ट पैट
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*चैत्र माह में विवाह मुहूर्त
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*जनेऊ(यज्ञोपवित),2,7,9 अप्रैल
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*गृहप्रवेश मुहूर्त
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*खड़सिल,नींवपूजन मुहूर्त
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*व्यापार मुहूर्त, 2,3,7,10 अप्रैल
*वाहन/मशीनरी खरीदारी मुहूर्त
*2 अप्रैल
~~~~~~~~~~~~~~~~*इस माह पंचक-26 मार्च की मध्याह्न 3:13 से 30 मार्च मध्याह्न 4:35 तक रहेंगे।
*संवत्सर फल *सिद्धार्थी नाम संवत्सर
*इस वर्ष धन-धान्य खूब होगा राजभय अग्निभय के साथ चोरी तस्करी बढ़ेगी, व्यापार में जमा खोरी बढ़ेगी गैरस व रस पदार्थों में कमी।
*अभिजित-मुहूर्त
*अपराह्न11:46 से 12:37
*पर्व पूर्णमासी,मासान्त चैत्र का लास्ट पैट
*चंद्रमा का राशि प्रवेश कन्या, प्रातः 7:39 से तुला में। ~~~~~~~~~~~~~~~~*संक्षिप्त पंचांग
*1 पैट (गते) वैशाख, सोमवार
*14 अप्रैल 2025
*वैशाख कृष्ण पक्ष प्रातः 8:25 तक प्रतिपदा तत्पश्चात द्वितीया
*नक्षत्र-स्वाति
*योग-वज्र
*संक्रांति,वैशाख का एक पैट(1 गते)
*विवाह,जनेऊ,गृहप्रवेश मुहूर्त

(पंचांग श्री रामदत्त जी पातड़ अनुसार है)

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       *ऋषि चिंतन*

         *जीवनी शक्ति का महत्त्व समझें

👉 *सरसरी दृष्टि से स्थूल शरीर काय-कलेवर की समर्थता दो आधारों पर आंकी जाती है कि वह सुघड़-सुडौल हो और चेहरे पर सुन्दरता झलके ।* बाहर से इतना ही जाना जा सकता है। इसी जानकारी के आधार पर किसी को स्वस्थ, सुन्दर, सुदृढ़ एवं आकर्षक माना जाता है, *पर यह उथली परख है।* गहराई में उतर कर वस्तुस्थिति परखने वालों को *यह भी निरखना-परखना पड़ता है कि “जीवनी शक्ति” का समुचित भण्डार विद्यमान है या नहीं।* भीतरी अवयव अपना ठीक काम करते हैं या नहीं । हृदय, मस्तिष्क, फेंफड़े, गुर्दे, जिगर, पाचनतंत्र, विसर्जन तंत्र के निमित्त काम करने वाले छोटे बड़े पुर्जे अपने-अपने काम को अंजाम दे सकने में समर्थ हैं या नहीं । *मशीन का हर कल-पुर्जा यदि सही काम करे तो ही मशीन ठीक काम कर पाती है अन्यथा एक के भी गड़बड़ा जाने से ढाँचा लड़खड़ाने लगता है ।*

👉 विकृतियाँ जब तक छोटे रूप में, आरंभिक स्तर पर होती हैं, तो उनकी पीड़ा प्रकट नहीं होती, किन्तु ईंधन में पड़ी चिनगारी धीरे-धीरे सुलगती रहती है और समयानुसार प्रचण्ड वेग धारण कर लेती है। घुन चुपके-चुपके शहतीर को खोखला करता रहता है और उसे धराशायी बना देने की स्थिति उत्पन्न कर देता है। *विषाणुओं का आक्रमण एकाकी नहीं होता। वे धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमाते रहते हैं। आरंभमें तो पता भी नहीं चलता, “पर जब विस्फोट होता है, तो अनेक छिद्रों से अनेक प्रकार की बीमारियाँ फूट पड़ती है ।* जीर्ण-शीर्ण कपड़े की एक जगह से मरम्मत करने पर वह तनिक-सा दबाव पड़ने पर दूसरी जगह से फटने लगता है ।

👉 *”जीवनी शक्ति” का भण्डार छिपी रुग्णता से लड़ते लड़ते समाप्त प्राय: हो लेता है। तब दवा दारु भी यतकिंचित ही काम ही कर पाती है।* मनुष्य घटता, टूटता, हारता चला जाता है। *गति धीमी भले ही रहे पर वह पूर्वायुष्य भोगे बिना ही अल्पावधि में जिस-तिस बहाने कालकवलित हो जाता है।*

👉 *चमड़ी को सजाने के लिये तो वस्त्राभूषण और श्रृंगार प्रसाधन भी किसी हद तक काम दे जाते हैं, पर भीतर घुसी दुर्बलता एवं रुग्णता धीमी गति से अपना काम करती रहती है, फलतः चेहरे से लेकर शरीर के अन्यान्य दृश्यमान अवयव कुम्हलाये, मुरझाये दीखने लगते हैं ।* काम करने में देर तक समर्थ नहीं रह पाते । थकान जल्दी ही आ घेरती है । मन भी उदास या उद्विग्न असंतुलित रहता है । *यह सब चिन्ह इस बात के द्योतक हैं कि काया का अन्त:पक्ष डगमगाने, गड़बड़ाने लगा। यह स्थिति बताती है कि भविष्य अच्छा नहीं है।* उठती जवानी के नये उभार में तो कुछ पता नहीं चलता, पर जैसे ही उभार रुकता है, वैसे ही तेजी से उन क्षीणताओं का दौर चल पड़ता है, जिन्हें बुढ़ापे के रूप में देखा जाता है। *जराजीर्ण स्थिति इसी को कहते हैं ।* क्रिया-शक्ति घटती और निराशा, उद्विग्नता बढ़ती जाती है ।
👉 *इस स्थिति का सिलसिला आरंभ होने से पहले ही सतर्क हो जाना चाहिये और गिरावट की रोकथाम करनी चाहिये ।* बाहर से कोई बड़ा रोग न दीख पड़ने पर भी भीतरी पर्यवेक्षणा से पता लगाना चाहिये कि जीवनी शक्ति का समुचित भण्डारी विद्यमान है या नहीं। त्वचा के भीतर ढँकी हुई अवयवों की श्रृंखला समग्र रूप से क्रियाशील है या नहीं। *विकृ‌तियों का छोटा बड़ा रूप दीख पड़ने से पूर्व ही उसकी मरम्मत कर लेनी चाहिये ।* क्रिया-कलाप सदा ऐसा रखना चाहिये कि निरन्तर हर आदेश का पालन करने में तत्पर काय-संस्थान को किसी प्रकार की अप्रकट मुसीबत का अब या भविष्य में सामना न करना पड़े।

*अन्त:शक्ति के उभार एवं चमत्कार पृष्ठ-०२
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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