सुप्रीम कोर्ट की गरिमा बनाए रखना ज़रूरी

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सुप्रीम कोर्ट की गरिमा बनाए रखना ज़रूरी

रवि शंकर शर्मा

आरक्षण को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ कई संगठनों एवं राजनीतिक दलों ने भारत बंद का आह्वान किया तो कोलकाता में डॉक्टर से दरिंदगी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा टास्क फ़ोर्स के गठन के बाद डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील को डॉक्टरों ने ठुकरा दिया। आज देश की यह स्थिति है कि जिस सुप्रीम कोर्ट पर पूरा देश भरोसा करता है, आज उसी की बात को मानने के लिए देशवासी तैयार नहीं। यह एक सभ्य समाज के लिए बहुत ही विध्वंसक स्थित है, क्योंकि जब हमें शीर्ष न्यायालय पर ही विश्वास नहीं रह जाएगा तो फिर उसके ऊपर कहां अपील की जा सकेगी ?

दरअसल यहां शीर्ष कोर्ट के निर्णय पर विश्वास की बात नहीं, बल्कि लोगों को बरगलाने की स्थिति ज्यादा है। शीर्ष कोर्ट ने आरक्षण पर चाहे कितना ही निष्पक्ष फैसला क्यों न दिया हो, लेकिन उसे संविधान की गरिमा पर चोट पहुंचने वाला बता कर लोगों को गुमराह कौन कर रहा है ? देशवासियों को यह बात समझनी होगी कि यदि शीर्ष कोर्ट की बात ही नहीं मानी गई तो फिर अपने देश में भी पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी स्थिति हो जाएगी, जहां के सुप्रीम कोर्ट पर भी लोग विश्वास नहीं करते।

आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को लेकर दलित व आदिवासी संगठनों ने विरोध स्वरूप भारत बंद का आह्वान किया, जिसे कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और वामपंथी दलों ने समर्थन प्रदान किया। यह समर्थन दर्शाता है कि ये दल सुप्रीम कोर्ट से लोगों का भरोसा हटाकर महज अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना चाहते हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने प्रदर्शनकारी डॉक्टरों से स्पष्ट रूप से कहा कि हम डॉक्टरों व मरीज की सुरक्षा के लिए यहां हैं, आप हम पर भरोसा करें। उन्होंने डॉक्टरों से अपील की कि वे काम पर लौटें और मानवता की सेवा में जुट जाएं, लेकिन डॉक्टरों ने यह अपील ठुकरा दी।

फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन ने कहा कि हम मामले का स्वत: संज्ञान लेने और मामले को सुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आभारी हैं, लेकिन हमारी हड़ताल जारी रहेगी। हमारे लिए ‘ अभी नहीं तो कभी नहीं ‘ वाली स्थिति है।

पिछले कुछ समय से देखने में आ रहा है की विभिन्न न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ खुलेआम टिप्पणियां की जा रही हैं और उन पर किसी भी प्रकार की अवमानना की कार्रवाई भी नहीं हो रही है। सच्चाई यह है कि आरक्षण वर्गीकरण के विरोध में कई तरह के भ्रामक तर्कों से वर्गीकरण की बहस को भड़काया जा रहा है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने जाति पदानुक्रम के सबसे निचले पायदान पर स्थित सबसे कम सुविधा प्राप्त समुदायों की चिंताओं को सामने लाकर न्याय की खोज को और गहरा कर दिया है। विरोधी रुख उनके ही वर्ग के अति वंचित वर्गों में उनके लिए अविश्वसनीयता पैदा कर रहा है, जबकि विरोधी रुख अपनाने वालों को सोचना चाहिए कि इससे उनकी असांविधानिक व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई को और मजबूती मिलेगी। क्योंकि उनके साथ वे लोग भी खड़े मिलेंगे, जो अब तक उनकी मुहिम के साथ खड़े नहीं दिखाई देते थे। इसका प्रमुख कारण था कि वह मुख्य व्यवस्था का हिस्सा ही नहीं बन पाए थे।

महात्मा बुद्ध ने भी कहा कि किसी भी बात पर सिर्फ इसलिए विश्वास ना करें कि आपने उसे सुना है या वह कई लोगों द्वारा कही गई और फैलाई गई है। बल्कि अवलोकन और विश्लेषण के बाद जब आपको लगे कि कोई बात तर्क से मेल खाती है और सभी के भले और लाभ के अनुकूल है तो उसे स्वीकार करें और उसके अनुसार जीवन जिएं। महात्मा बुद्ध ने कहा कि उस बात पर भरोसा करें, जो तर्क पर खरी उतरे। आज स्थिति यह है कि लोग केवल बहकावे में आकर सड़कों पर उतर जाते हैं, जिससे अराजकता की स्थिति बनती है। यह देश और पूरे समाज के लिए घातक है।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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