इंस्टेंट लाइफ और थका हुआ मन, चुपचाप तनाव के दलदल में धँस रहा है?

इंस्टेंट लाइफ और थका हुआ मन, चुपचाप तनाव के दलदल में धँस रहा है?
हम एक ऐसा दौर में जी रहे हैं जहाँ सब कुछ “इंस्टेंट” हो गया है। खाना, प्यार, मनोरंजन, जानकारी, सब कुछ बस हमसे एक क्लिक दूर है। लेकिन इस तेज़ रफ्तार दुनिया में इंसानी मन कहाँ खड़ा है? क्या हमारी मानसिक गति भी उतनी ही तेज़ हो सकी है? या फिर हमारा मन इस दौड़ में पिछे रह गया है, थक गया है और चुपचाप तनाव के दलदल में धँस रहा है?
आज सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालते ही हमें लाइक्स और कमेंट्स का इंतज़ार होने लगता है। अगर जवाब न मिले तो बेचैनी। इंसान अब धीरे-धीरे इंतज़ार करना भूल चुका है। मनोवैज्ञानिक इसे Instant Gratification Syndrome कहते हैं। यह आदत हमारी सहनशीलता और आत्मनियंत्रण को कमज़ोर कर रही है।
साइलेंट स्ट्रेस और दिखावटी मुस्कान:
ऑनलाइन दुनिया में हर कोई खुश दिखता है। लेकिन “फिल्टर्ड लाइफ” के पीछे छिपा “रियल माइंड” अक्सर अकेला होता है। हाल ही में हमने कई सारी ऐसी खबरें सुनी जिसमे यू ट्यूब इंस्टाग्राम में कॉमेडी वीडियोज़ बनाने वाले लोगो ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली
आजकल तनाव मौन हो गया है लोग मुस्कुराते चेहरे के पीछे मानसिक संघर्ष छिपाए रखते हैं। इसे मनोविज्ञान में Smiling Depression कहा जाता है। ये वही लोग होते हैं जो बाहर से खुश, पर भीतर से खाली होते हैं।
डिजिटल इम्यूनिटी: नई ज़रूरत
जिस तरह शरीर को रोगों से बचाने के लिए इम्युनिटी चाहिए, उसी तरह मन को भी एक तरह की डिजिटल इम्यूनिटी चाहिए, एक मानसिक ढाल जो सोशल मीडिया के प्रभावों से हमारी सोच और भावनाओं की रक्षा करे।
कैसे बनाए डिजिटल इम्यूनिटी?
डिजिटल डिटॉक्स करें – हफ्ते में एक दिन मोबाइल से दूरी बनाएं।
इमोशनल फिजिकल एक्सरसाइज – योग, ध्यान, गहरी साँसें लें।
जर्नलिंग करें – हर दिन की भावनाओं को कागज़ पर उतारें।
वास्तविक संबंधों को समय दें – स्क्रीन के रिश्तों से ज़्यादा ज़रूरी है आमने-सामने की बातचीत।
आज ज़रूरत इस बात की है कि हम “तेज़ दुनिया में धीमे मन” को समझें और उसका सम्मान करें। मन को वक्त दें, उसे सुनें क्योंकि तकनीक तेज़ हो सकती है, पर मानसिक स्वास्थ्य को वक्त चाहिए। याद रखिए, मन की शांति स्क्रीन से नहीं, समझ से आती है।
डॉ. भाग्यश्री जोशी
असिस्टेंट प्रोफेसर मनोविज्ञान
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय

