औद्योगिकीकरण आधुनिकता के बाद की घटना है: प्रो.पुरुषोत्तम अग्रवाल

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औद्योगिकीकरण आधुनिकता के बाद की घटना है. प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल

यूओयू ने आधुनिकता पर आयोजित किया व्याख्यान

हल्द्वानी। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाएँ विभाग द्वारा आधुनिकता की अवधारणा विषयक एकल व्याख्यान आयोजित किया गया. इस व्याख्यान को साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने दिया. आधुनिकता की अवधारणा स्पष्ट करते हुए कहा कि मनुष्य की सोच और चेतना पर धर्म के आधिपत्य टूटने की प्रक्रिया आधुनिकता है. आधुनिकता के पहचान के प्रमुख लक्षणों में मोहभंग महत्वपूर्ण है. पारम्परिक समझ के प्रति मोहभंग एवं संदेह आधुनिकता की महत्वपूर्ण उपलब्धि है. भारतीय परिदृश्य में मोहभंग और विकेंद्रीकरण कबीर के यहाँ सबसे ध्यान देने वाली बात है।

कबीर की स्वीकार्यता को लेकर उन्होंने कहा कि अकबर ने दादू को अपने समय का कबीर कहा. आधुनिकता अगर सुख-सुविधाओं से, एशो आराम के सामान से, अत्याधुनिक तकनीकि से ही आंकी जाती तो आज सउदी अरब, दुबई जैसे देश आधुनिक कहलाते ये कहना है आलोचक व लेखक प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल का। उन्होंने यूरोपीय व भारतीय संदर्भों में आधुनिकता पर विस्तार से बात रखी। व्याख्यान के शुरुआत में विषय प्रवेश करते हुए हिदीं में असिस्टेंट प्रोफेसर डा. राजेन्द्र कैड़ा ने कहा कि हमें तय करना होगा कि आधुनिकता है क्या. क्या औद्योगिक क्रांति का होना, रेल लाइन का बिछना, बिजली का आना आधुनिकता है या चेतना के स्तर पर आधुनिक होना ज्यादा जरूरी है। व्याख्यान की अध्यक्षता कर रही मानविकी विद्याशाखा की निदेशक प्रोफसर रेनू प्रकाश ने कहा कि हमें दिमागी रूप से चेतनशील बनना होगा तभी सही मायने में आधुनिक कहलाएंगे। अपनी पुरानी रुढ़ हो चुकी परंपराओं को त्यागना भी होगा।

व्याख्यान के अंत में हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डा. शशांक शुक्ला ने कहा कि पुरुषोत्तम अग्रवाल की किताब अकथ कहानी प्रेम की आधुनिकता की अनिवार्य पाठ्य पुस्तक है. व्याख्यान का संचालन हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर कुमार मंगलम ने की। अपने सञ्चालन ने उन्होंने कहा कि भारत में आधुनिकता का आगमन व्यापारिक पूँजीवाद के साथ आया और आज जब हम आधुनिकता पर बात कर रहे हैं तब पूँजीवाद के इस भयावह समय को देखना होगा. आज की आधुनिकता क्या पूरागामी आधुनिकता की ओर तो नहीं जा रही है. इस अवसर पर उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के समस्त कार्मिकm समेत शहर के बुद्धजीवी और शोध-छात्र मौजूद रहे.

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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