उत्तराखंड की सिल्वर जुबली, जनता को मिल रही गुगली, मालदारी में अफसर गोल्डन तो नेता बने डायमंड

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उत्तराखंड की सिल्वर जुबली, जनता को मिल रही गुगली, मालदारी में अफसर गोल्डन तो नेता बने डायमंड

तलवाचाट मिडिया भी बना रहा धनपानी

सदन में विधायक बोले विकास तो नेता अफसर ठेकेदारों का हुआ

लाल फीताशाही राज्य में पूरी तरह बेलगाम

उपनेता प्रतिपक्ष के बोल,विधायक निधि में 15फीसदी का झोल

तिवारी,खंडूरी, त्रिपाठी,ऐरी जैसे सोच वाले नेताओं की दरकार

रोजगार, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य की कब बनेगी ठोस नीति

अफसरों पर सत्ताधारी दलों के एजेंट की तोहमत

कतिपय आंदोलनकारी भी कर रहे चारणभाटगिरी

पच्चीस साल के उत्तराखंड की यह कैसी कहानी

दिनेश चंद्र पांडेय, पत्रकार चम्पावत (उत्तराखंड)

*25 साल* का पड़ाव, जो बताता है कि आंकड़ों के लिहाज से सबकुछ नहीं तो बहुतकुछ हर क्षेत्र में किया जा सकता है। यह कालखंड उत्तराखंड राज्य के बेहतर निर्माण में कितना कारगर साबित हुआ,इसको लेकर आमलोगों, बुद्धिजीवियों और हर तबके के जानकारों से पत्रकार दिनेश चंद्र पांडेय ने चर्चा -परिचर्चा की। लब्बोलुआब यह निकला कि राज्य में विकास के तमाम नये आयाम स्थापित हुए,लेकिन उसका फायदा नेताओं, अफसरों, ठेकेदारों, रसूखदारों और पहुंच रखने वालों तक ही सिमट कर रह गया।आम जनता और दूरदराज के इलाके मूलभूत जरूरतों के लिए आज भी जद्दोजहद कर रहे है। जिसके कारण पलायन बढा है।भष्ट्राचार ब्लडकैंसर की तरह फैल रहा है।रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, की कारगर नीति नहीं बन पाई है।

राज्य गठन का असली मकसद- *हर हाथ को काम,खेतीबाड़ी उद्यान को नया मुकाम*-का विचार आज भी सपना बना है।पच्चीस साल में दस मुख्यमंत्री मिले, प्रति व्यक्ति आय और जीडीपी में अच्छी खासी वृद्धि हुई लेकिन यह तरक्की दस से बीस फीसदी लोगों तक ही सिमटी दिखती है।अन्य लोग बेरोजगारी, भष्ट्राचार, सुविधाओं के टोटे और आर्थिक विपिन्नता की गिरफ्त में है।
9 नवंबर 2000 को भारतरत्न और देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री यथानाम तथागुण के अनुरूप अटल बिहारी वाजपेयी जी ने झारखंड, छत्तीसगढ़ के साथ उत्तरांचल नाम से उत्तर प्रदेश के 13 जनपदों की 85 लाख आबादी को नये राज्य का दर्जा दिया।

तो दशकों से अलग राज्य के लिए आंदोलित यूकेडी, पृथक राज्य की मांग कर रही भाजपा और राज्य आंदोलनकारियों की मुराद पूरी हो गयी। सभी को लगा कि नया पहाडी राज्य यहां के लोगों की आर्थिक तरक्की खुशहाली का जरिया बनेगा। हर हाथ को काम, खेतीबाड़ी उद्यान को नया आयाम मिलेगा।
लेकिन जब भाजपा ने हरियाणा मूल के नित्यानंद स्वामी को अंतिरम सरकार का पहला मुख्यमंत्री बनाया तो जनमानस में

बाहरी मुखिया का संदेश जाने से राज्य बनने का जश्न फीका सा रहा। यही वजह रही राज्य बनाने के बाद 2002 के चुनाव में भाजपा को इसका फायदा नही मिला और राज्य की जगह *हिल काउंसिल* का राग अलापने वाली कांग्रेस सत्ता में आई और “*मेरी लाश पर उत्तराखंड बनेगा*” कहने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित नारायण दत तिवारी जी पांच साल मुख्यमंत्री रहे।
तिवारी जी का कार्यकाल विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा और उनके सियासी कद को देखते हुए प्रधानमंत्री वाजपेयी जी ने प्रदेश को 2003 से 2013 तक विशेष औद्योगिक पैकज दिया। बाद में मनमोहन सिंह जी ने इसे 2017 तक बढा दिया। इस पैकेज से उत्तराखंड को 7800 करोड़ का लाभ मिला।

तिवारी जी ने ही राज्य की लडाई में शामिल आंदोलनकारियों को चिंहित कर उन्हें नौकरी व पेंशन देने का कदम भी उठाया। हांलाकि सियासती तिकड़मबाजी से इसका फायदा ऐसे लोग भी उठा ले गये जो आंदोलन का विरोध करते थे या उनका योगदान नही रहा। सत्ता में जिस दल की सरकार आई उनके तमाम कार्यकर्ताओं को राज्य आंदोलनकारी घोषित करने में प्रशासनिक अमले और विधायकों ने खूब मदद की।यहां तक की कई विधायक अपनी सरकार में आंदोलनकारी चिंहित हुए है। ये बात दीगर है कि आंदोलन में सक्रिय रहे हजारों आंदोलनकारी आज भी चिन्हीकरण को लेकर आवाज बुलंद कर रहे है।
भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में मेजर जनरल भूवन चंद्र खंडूरी जी का कार्यकाल सुशासन और ईमानदारी के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उस दौर में सरकारी व्यवस्थाऐं जहां पटरी पर आ गयी थी वहीं भष्ट्राचार पर जबरदस्त लगाम लगी।

तब और अब के तहत यदि पच्चीस सालों का तुलनात्मक खाका खींचा जाए तो उत्तरांचल का नाम अब उत्तराखंड है। आबादी डेढ़ गुनी यानी एक करोड़ बीस लाख हो गयी है। जीडीपी की दर में 26 गुना इजाफा हुआ है। राज्य का बजट तीन हजार करोड़ से एक लाख करोड़ पहुच गया है। सड़क, रेल और एयरपोर्ट का इंफ़्रास्ट्रक्चर बढा है।

आलवेदर,चारधाम जैसे हाईवे, ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन,जौलीग्रांट एयरपोर्ट बना है। धार्मिक पर्यटन में जबरदस्त उछाल आया है।साक्षरता की दर अब 88 फीसदी है। औद्योगिक विकास में फार्मा, आटो ऊची पायदान में है। बिजली प्रदेश के 98 फीसदी हिस्से को जगमगा रही है।
बाबजूद इसके चुनौतियां की लंबी फेहरिस्त है। गांवों से पलायन की रफ्तार लगातार बढ रही है। 2018 में ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग की रिपोर्ट में *1700* से ज्यादा गांव खाली होने का जिक्र है।अब यह संख्या *2000* पहुच गयी है।

खनन के लिए नदी नालों को मुर्गे के पंखों तरह नोचने से आपदा का ग्राफ हर साल ऊंचा हो रहा है। मैदान की तुलना में पहाड़ की शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था लचर हो गयी है। *1671* स्कूल बंद हो गए है और *3573* बंद होने के कगार पर है। जुलाई 2025 तक *608 विशेषज्ञ*, *300 मेडिकल अफसरों* के पद खाली थे। इस बीच *80 चिकित्सक* पीजी करने वाले और *29 स्पेशलिस्टों* की तैनाती हुई है। चिकित्सकों की कमी से कई अस्पताल रैपर सेंटर बने है। चौखुटिया का स्वास्थ्य आंदोलन बानगी भर है।
राज्य के *1490* गांव और तोकों में सड़क न होने से बिमार लोगों के लिए डोली ही विकल्प है।
जंगली जानवरों के खौफ और फ्री राशन के लॉलीपॉप ने कृषि का रकवा घटा दिया है। यह 31 फीसदी से घटकर 10 फीसदी पहुच गयी है।
नशा और अपराध का ग्राफ बढा है। आबकारी के तहत कई जगह खुली शराब की दुकानों का इसी कारण से विरोध भी हो रहा है।

राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते है कि वर्ष 2024 में 17278 अपराध दर्ज हुए।जिनमें महिलाओं के 3342, हत्या के 56, बलात्कार के 822, अपहरण के 530 मामले आए। साइबर क्राइम के 24 हजार मामलों में 150 करोड़ की ठगी हुई। इनमें अधिकांश मामलों का खुलासा हुआ है। वर्तमान में महिला और साइबर अपराध में कमी आई है। लेकिन हत्या, अपहरण,चोरी बढी है।

पच्चीस साला सरकारी जश्न के मौके पर आयोजित विधानसभा के विशेष सत्र में विधायकों ने इनमें से तमाम बातों का जिक्र ही नहीं किया बल्कि फिक्र करने की बात कही। प्रतिपक्ष के उपनेता भूवन कापड़ी ने विधायक निधि में पंद्रह फीसदी कमीशन की बात कह कर भष्ट्राचार के साथ बेलगाम लालफीताशाही के आरोप मढे।
पहाड़ मैदान के साथ ही राजधानी गैरसैंण,मूल निवास, जल,जंगल,जमीन और सरकारी मशीनरी के सत्ताधारी पार्टी के एजेंट की तरह कार्य करने के मामले भी छाए रहे।
यदि बात करें राज्य के कर्जे की तो उसे विरासत में *साढे चार हजार करोड़* मिला था और वर्तमान में यह *नब्बे हजार करोड़* हो गया है।
दूसरी तरफ कभी राज्य आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली मिडिया पर इस दौर में कुछ पत्तलकारो पर तलवाचाटी जैसी तोहमत मढी जा रही है और चारणभाटगिरी करने के एवज में वह भी धनपानी बना रहे है।
जबकि कतिपय आंदोलनकारी शासन प्रशासन का गुणगान कर अपनी उस साख पर बट्टा लगा रहे है जिसके लिए वह जाने जाते रहे।

आम लोगों का मानना है तिवारी, खंडूरी, उक्रांद नेता विपिन त्रिपाठी, काशी सिंह ऐरी जैसी सोच वाले नेताओं की दरकार है। जो उत्तराखंड को हिमालयी राज्यों में सिरमौर बना सके। लेकिन उत्तराखंड राज्य बनने से ऐसे हालात हो गए पहले जो नेता ग्राम प्रधान तक का चुनाव नही जीत पाते थे वह माननीय बने। यूपी में सरकारी अफसर सेवाकाल में दो-तीन पद्दोन्नति ले पाते थे आज उत्तराखंड में दनादन प्रमोशन हो रहे है।
बहरहाल उत्तराखंड राज्य के पच्चीस सालों में विकास तो हुआ इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन विसंगतियां इतनी पैदा हुई है कि, जिसे आम आदमी कहा जाता है वह उसका लाभ कम ही उठा पा रहा है। ऐसे में राज्य को बेहतर बनाने के लिए सभी को ईमानदारी से भागीरथ प्रयास करने होंगे।

लेखक- वंचित राज्य आंदोलनकारी संगठन चम्पावत के जिलाध्यक्ष भी है

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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