कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य का महत्त्व” परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों, हम सभी को मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत समझनी होगी..

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कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य का महत्त्व” परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों, हम सभी को मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत समझनी होगी..

कार्यस्थल आज की जीवनशैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है, जहाँ हम अपना अधिकतर समय बिताते हैं। यह सिर्फ रोजी-रोटी का जरिया नहीं, बल्कि हमारी पहचान और आत्मसम्मान से भी जुड़ा हुआ है। लेकिन क्या यह कार्यक्षेत्र हमारे मानसिक स्वास्थ्य का समर्थन करता है या इसे कमजोर करता है? अक्सर हम इसके इस पहलू पर ध्यान नहीं देते। जब तक चीजें बिखरने न लगें, हम तनाव और दबाव के बोझ को सहने की आदत बना लेते हैं। परंतु मानसिक स्वास्थ्य का यह अनदेखा करना अंततः हमारी उत्पादकता, रचनात्मकता, और जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर गहरा असर डालता है।

एक अच्छे कार्यस्थल का अर्थ सिर्फ आर्थिक लाभ से नहीं है। कार्यस्थल वह जगह है जहाँ व्यक्ति अपनी क्षमता को पहचानता है, आगे बढ़ता है, और जीवन के उच्च लक्ष्यों को साधता है। लेकिन जब कार्य का बोझ मानसिक शांति को डगमगाने लगे, तो वह जगह प्रेरणा का स्रोत नहीं, बल्कि तनाव का कारण बन जाती है। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में लाखों कर्मचारी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कि बर्नआउट, चिंता और अवसाद से जूझ रहे हैं। लेकिन क्या केवल आंकड़े ही इस सच्चाई को बयां कर सकते हैं? इसका गहरा असर हमारे अंदर की आवाज़ पर होता है, जो धीरे-धीरे मौन हो जाती है।

कार्यस्थल पर तनाव के कई कारण होते हैं। अत्यधिक काम का दबाव, अनिश्चितता, और एक अंतहीन अपेक्षाओं की दौड़, जो कभी खत्म नहीं होती। कभी-कभी यह दबाव हमें अंदर से तोड़ने लगता है, और फिर भी हम मुस्कुराते हुए इस बात को छिपा लेते हैं, क्योंकि ‘प्रोफेशनलिज्म’ का यही मतलब समझा जाता है। पर यह छिपी हुई थकान धीरे-धीरे मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करती है, जिसे अक्सर अनदेखा किया जाता है।

मानसिक स्वास्थ्य की यह अनदेखी केवल कर्मचारियों की व्यक्तिगत समस्या नहीं है, यह संस्थागत समस्या भी है। जब मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होता, तो कर्मचारी का काम में मन नहीं लगता, उसका ध्यान भटकता है, और उसकी उत्पादकता कम हो जाती है। एक तनावग्रस्त कर्मचारी केवल अपना कार्य ही नहीं करता, बल्कि पूरे कार्यस्थल का माहौल नकारात्मकता से भर जाता है।

अब सवाल उठता है इसका समाधान क्या है? समाधान सीधा है, पर इसे अपनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सबसे पहले, कार्यस्थल को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील बनाना होगा। कार्यस्थल पर ऐसी संस्कृति होनी चाहिए जहाँ कर्मचारी अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बिना झिझक बात कर सकें। मानसिक स्वास्थ्य को एक सामान्य स्वास्थ्य की तरह देखा जाना चाहिए, जहाँ इसे कमजोरी के रूप में नहीं, बल्कि इंसानियत के रूप में समझा जाए।

मानसिक स्वास्थ्य का समर्थन केवल तनाव प्रबंधन के लिए कार्यशालाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह संगठन की बुनियादी नीतियों में समाहित होना चाहिए। कर्मचारियों को एक लचीले समय-सारिणी की पेशकश करना, नियमित ब्रेक की सुविधा देना, और छुट्टियों का समुचित उपयोग प्रोत्साहित करना मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही, एक सहायक नेतृत्व भी मानसिक स्वास्थ्य के सुधार में बड़ी भूमिका निभा सकता है। एक संवेदनशील और समझदार प्रबंधक न केवल काम में सहायता करता है, बल्कि कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर उनके जीवन को बेहतर बना सकता है।

परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों, हम सभी को मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत समझनी होगी। हमें अपने आप से जुड़ना होगा, अपनी सीमाओं को पहचानना होगा, और यह स्वीकार करना होगा कि हर किसी के जीवन में कठिन दौर आते हैं। काम महत्वपूर्ण है, पर मन उससे भी ज्यादा। जब हम अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखते हैं, तो हम न केवल एक बेहतर कर्मचारी बनते हैं, बल्कि एक बेहतर इंसान भी।

अंत में, मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का अर्थ केवल जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं है, बल्कि यह हमें उस व्यक्ति में बदलता है जिसे हम बनना चाहते हैं—एक शांत, संतुलित और सक्षम इंसान, जो हर दिन अपने पूरे आत्मविश्वास के साथ काम करता है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी असली सफलता कार्य में नहीं, बल्कि उस शांति में है जिसे हम अंदर से महसूस करते हैं। जब कार्यस्थल मानसिक स्वास्थ्य का सम्मान करता है, तो वह न केवल संस्था को ऊँचाइयों तक ले जाता है, बल्कि हमारे जीवन को भी नए अर्थ और ऊर्जा से भर देता है।

डॉ. भाग्यश्री जोशी
असिस्टेंट प्रोफेसर
मनोविज्ञान विभाग
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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