हल्द्वानी: खरपतवार नियंत्रण में भी पूसा डीकंपोजर है प्रभावी: नरेंद्र मेहरा

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खरपतवार नियंत्रण में भी पूसा डीकंपोजर है प्रभावी: नरेंद्र मेहरा

हल्द्वानी। जैविक खेती में कृषि अपशिष्ट प्रबंधन एक मुख्य विधा होती है। आमतौर पर जैविक खेती करने वाले किसान अपने खेतों से निकलने वाले कृषि अपशिष्ट, गौशाला से निकलने वाले पशु चारा अपशिष्ट एवं गोबर शीघ्र विघटित कर खाद बनाने के लिए पूसा डीकंपोजर का प्रयोग करते हैं। मुख्यतः इन अपशिष्टों को विघटित करने में 55 से 60 दिन का समय लगता है, और यह भुरभुरी खाद के रूप में तैयार हो जाती है जिसे किसान अपने खेतों में जैविक खाद के रूप में प्रयोग करते हैं। इसके साथ ही जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए खरपतवार नियंत्रण एक बहुत चुनौती पूर्ण प्रबन्धन है। इस कार्य के निष्पादन में किसानों को बहुत बड़े मानव श्रम का उपयोग करना होता है।

किसान नरेंद्र मेहरा ने खोजा पूसा डी कंपोजर से खरपतवार नियंत्रण का फॉर्मूला

इसके समाधान के लिए प्रयोगधर्मी किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने पूसा डीकम्पोजर का प्रयोग खरपतवार नियंत्रण के लिए किया जिसमें उन्हें 80% तक सफलता मिली है। उन्होंने एक एकड़ भूमि में खरपतवार नियंत्रण के लिए पूसा डीकम्पोजर का प्रयोग कर पाया कि यदि फसल काटने के बाद फसल अवशेषों के ऊपर जुताई करने के पश्चात 200 लीटर तैयार पूसा डी कंपोजर से सिंचाई कर दी जाए तो अगली फसल में 80% तक खरपतवार नियंत्रण पाया गया उनका कहना है कि खरपतवारों के बीजों को भी पूसा डीकंपोजर अपने प्रभाव से गला देता है जिससे कि अगली फसल में खरपतवार की समस्या काफी हद तक कम हो जाती है। यह प्रयोग उन्होंने गेहूं की कटाई के बाद अपने खेत में किया और पाया कि उस खेत में अगली फसल में सोयाबीन बोई गई जिसमें खरपतवार की संख्या काफी हद तक कम पाई गई। उन्होंने अपने इस प्रयोग को कार्यक्रमों के माध्यम से अन्य किसानों को भी साझा करते हुए अपील की कि वह इस प्रयोग को करें तथा इसकी वास्तविकता से अन्य किसानों को अवगत कराएं।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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