सत्तादल सत्ता की चकाचौध में इतना मशगूल हो गया वो सदन की मर्यादा ही भूल गया: गणेश उपाध्याय
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सत्तादल सत्ता की चकाचौध में इतना मशगूल हो गया वो सदन की मर्यादा ही भूल गया: गणेश upadhyay
उत्तराखंड देवभूमि में निवास करने वाले हमारे देव तुल्य जनता, आपने डबल इंजन सरकार की हनक देख ली
उत्तराखंड विधानसभा की सदन में ये तो झलक है , उत्तराखंड प्रदेश के आम जनता जिनको राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। क्या क्या सहन करते आ रही है। क्या क्या नहीं थोपा जा रहा है, आम जनता पर समझने वाले समझ गये जो न समझे वो ——-।लेकिन मैं यह नहीं समझ पाया, हमारा उत्तराखंड प्रदेश बुद्धिजीवों में दूसरा प्रदेश है। उसका भी स्थान लोकतंत्र के मंदिर में उत्तराखंड देवभूमि की जनता के साथ-साथ देश की जनता ने भी देखा है क्या हमने उत्तराखंड राज्य की लड़ाई लड़कर, क्या यह दिन देखने के लिए बनाया था।
उत्तराखंड राज्य यह दसवें स्थान से पीछे पिछड़ न जाए। हमारे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी जी कहते हैं हमारा प्रदेश 25 साल होने पर अब्बल प्रदेश बनने जा रहा है। पर क्या ऐसे लोग प्रदेश के विकास के लिये नेतृत्व कर हमारा तथा इस देवभूमि का भला कर पायेगें ? यहाँ भगवान, गुरूनानक जी व मुहम्मद साहब भी अनेक रूप में बसते है। तब भी लोग मैदान पहाड की खाई खीचने में कोई कसर नहीं छोड रहे हैं ।ये लोग सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के लिये जी रहे है । मानवता तो लगता है, इनकी मर चुकी है । मैंने पहली बार विधानसभा अध्यक्ष को इस प्रकार की डाट, टिप्पणी की राजनीतिक भाषा का प्रयोग कर जैसे कि प्राइमरी स्कूल में हेड मास्टर किया करते थे । विधानसभा के अंदर उनका पूरा सिस्टम रहता है ,सिस्टम का प्रयोग न करते हुए खुद इस प्रकार की जो व्यवहार किया जो निंदनीय है ।
जब सदन में अध्यक्ष के रूप विराजमान ऐसी भाषा का आप राजनीति का अखाडा का ज्ञान दे रही है , कैसे अशोभनीय शब्दों का प्रयोग किया । बल्कि पूर्व मे संसदीय कार्य मंत्री को अगर समझ लिए होते, तो आज यह देखने को नहीं मिलता। उनके प्रति व्यवहार बल्कि उस विधानसभा का सदस्य जो पहाड से प्रेम रखता है , सदन का सदस्य है। उसको धमकाना समझ से परे है, मैं बुटोला जी को सम्मान देता हूँ। उन्होंने माननीय अध्यक्षा के डॉटने के बाद अपना स्वाभिमान जिन्दा रखते हुए कहा कि मैं सदन से ही चला जाता हूँ ।
गलत को गलत, सही को सही कहो। देव तुल्य जनता होने के साथ-साथ, उत्तराखंड राज्य की लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभाने के बाद तो कभी कभी यह महसूस करता हूँ कि कहीं बाबा केदार का तीसरा नेत्र व गोलज्यू का न्याय इन पापियों के लिये सजा देने के लिये उनको मजबूर न होना पडे। पैसा ,सोहरत व दौलत आती जाती रहती है। लेकिन जब ऊपर वाले की लाठी चलती है, तब आवाज नहीं होती। सब धरा का धरा रह जाता है ।इसलिये चकाचौध में इतना मशगूल मत हो, किसी की हाय पता नहीं किस किस को समाप्त कर देगी। यह बात उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी में अपनी अहम भूमिका निभाने की बात कहीं।