ढूंढ रही अस्तित्व देश में, हिंदी आज पुकारती…

ढूंढ रही अस्तित्व देश में,
हिंदी आज पुकारती…
माँ भारती… कैसे उतारूँ तेरी आरती-2
ओ…माँ भारती… कैसे उतारूँ तेरी आरती-2
कोई कहे मैं सुता तुम्हारी,
माथे की तेरे बिंदी हूँ।
अंग्रेजी परदेश से आकर,
कहती सदा मैं चिंदी हूँ।
चीख-पुकार सुने ना कोई…2
अंग्रेजी ललकारती…
माँ भारती… कैसे उतारूँ तेरी आरती-2
ओ…माँ भारती… कैसे उतारूँ तेरी आरती-2
देवनागरी लिपि से निकली,
सभी विधा को तृप्त किया,
साहित्य जगत में हुई श्रेष्ठ मैं,
भारत माँ को दृप्त किया।
हिंदी दिवस पर मान के ख़ातिर,
हिंदी रही चिग्घाड़ती…
माँ भारती… कैसे उतारूँ आरती-2
ओ…माँ भारती… कैसे उतारूँ आरती-2
सभी लगे हैं मुझे बचाने,
तेरे सुत जो प्यारे हैं।
हिंदी के संवर्धन ख़ातिर,
तन-मन-धन सब वारे हैं।
वीरांगना बन आई शालिनी…2
सौम्य, स्वभाव जो धारती…
माँ भारती… कैसे उतारूँ तेरी आरती-2
ओ…माँ भारती… कैसे उतारूँ तेरी आरती-2
@स्वरचित व मौलिक
कवयित्री: शालिनी राय ‘डिम्पल’
आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश।

