envorment पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक

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प्रसून अग्रवाल
हरी-भरी धरती, महकती हवा और मीठा-निर्मल जल, मनुष्य को प्रकृति से मिले ये अनुपम वरदान हैं। ये वरदान पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन बनाए रखने की अनिवार्य शर्त भी है। विडंबना यह है कि जैसे-जैसे मनुष्य ने प्रगति की और विकास की सीढ़ियां चढ़ी, वैसे-वैसे वह प्रकृति से दूर होता गया। आज आवश्यकता है, प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की। शहरी वायु-प्रदूषण का मुख्य कारण मानव द्वारा संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जैसे वाहनों का कार्बन उत्सर्जन व औद्योगिक गतिविधियां हैं। लॉकडाउन में मानवीय गतिविधियों के काफी हद तक सीमित रहने के कारण दुनिया भर के शहरों की वायु गुणवत्ता में काफी सुधार आया।

जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण में भी पर्याप्त गिरावट देखी गई है। यह परिस्थिति हमारे सामने एक उदाहरण है कि अगर हम संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग तक सीमित रहें, तो हमारे लिए पारिस्थितिकी-तंत्र की बहाली का लक्ष्य संभव है। देश के सभी शिक्षण संस्थानों की महती जिम्मेदारी है कि पर्यावरण और सतत जीवन से संबंधित मुद्दों के बारे में वे जागरूकता फैलाएं। सभी जीव-जंतुओं का अस्तित्व बनाए रखने के लिए; भावी पीढ़ियों को समृद्ध एवं खुशहाल जीवन प्रदान करने के लिए; प्राकृतिक आपदाओं व बीमारियों से बचने और विकास का सही व दूरगामी लाभ जन-जन तक पहुंचाने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा बहुत जरूरी है।

पर्यावरण को संजोकर रखने का संकल्प लेने का समय आ चुका है। एक वैसा ही दृढ़ संकल्प हमें फिर से लेना होगा, जैसा हमारे पूर्वजों ने कभी लिया था। ऐसे संकल्प से हमारे स्वस्थ जीवन का मार्ग प्रशस्त होगा और हमारी आने वाली पीढ़ी अमन-चैन से रह सकेगी। हमें यह हमेशा याद रखना होगा कि हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, तभी हमारा अस्तित्व भी सुरक्षित रहेगा। पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन किसी एक व्यक्ति या संस्था की जिम्मेदारी नहीं है, अपितु समाज के हरेक वर्ग को पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभावों से सबक लेते हुए अपनी आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ पर्यावरण प्रदान करने की नैतिक जिम्मेदारी को समझना होगा। पर्यावरण की शिक्षा केवल स्कूल, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसे एक व्यापक जन-जागरण अभियान के रूप में बदलने की जरूरत है।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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