बेटी के पिता को मिले बंदूक का लाइसेंस, बेटी मेरी कहां सुरक्षित?….

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बेटी के पिता को मिले बंदूक का लाइसेंस

आज हमारे समाज में बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। वे पढ़ाई अथवा किसी अन्य कार्य के लिए घर से बाहर निकलती हैं तो शोहदे उनका पीछा करते हैं। कोचिंग अथवा स्कूल जाती हैं तो मनचले उन पर छींटाकशी कर उनका जीना हराम कर देते हैं। यह उस देश की बात है, जहां मां, बहन और बेटी को देवी का दर्जा दिया जाता है और कहा जाता है, यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमंते तत्र देवता। यह उसे देश की बात है, जहां महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए आरक्षण दिया जाता है।

लेकिन अफ़सोस का विषय कि बेटी ना तो घर में सुरक्षित है ना ही बाहर। घर में दूर के रिश्तेदारों की नज़र उसका पीछा करती है तो घर के बाहर शोहदे। वे ना तो स्कूल में सुरक्षित हैं, ना हीं कार्यस्थल पर। स्कूल में अभिभावक के रूप में कार्यरत प्रधानाचार्य एवं शिक्षक उनकी अस्मिता पर हाथ डालने में नहीं हिचकते तो कार्य स्थल पर उनके सहकर्मियों और मालिकों की नजर उनके इर्द-गिर्द घूमती रहती है। गत दिवस हल्द्वानी में शोहदा एक बेटी का बाइक से एक किलोमीटर तक पीछा करता रहा और जब बेटी ने एक चौराहे पर पहुंचकर पुलिसकर्मियों को अपनी व्यथा सुनाई तो वे मूक दर्शक बने रहे।

वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में आने पर शोहदे को सलाखों के पीछे भेजा जा सका। ऐसी घटनाएं रोज़ घटती हैं और न केवल महिलाओं की सुरक्षा के लिए तैनात पुलिसकर्मी, यहां तक कि सड़क पर चल रहे अन्य लोग मुंह फेर कर आगे बढ़ जाते हैं। यदि हर जगह पुलिसकर्मी व अन्य लोग महिलाओं की सुरक्षा में आगे आने लगें तो किसी की मजाल क्या, जो उनके साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार कर सके।

इन सब बातों से परेशान कोई पिता यदि केवल इस बिना पर बंदूक का लाइसेंस लेना चाहे कि वह दो बेटियों का पिता है तो हमारे कानून में इस प्रकार का कोई भी प्रावधान नहीं है। बेटियों की प्रताड़ना से परेशान पिता अकसर खुदकुशी को बाध्य होते हैं तो कई बार बेटियां भी आत्महत्या कर लेती हैं। कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब कन्याओं से छेड़छाड़ एवं दुष्कर्म की घटना ना होती हो, लेकिन इसका समाधान खोजने पर ध्यान ना देकर राजनीति की जाती है। देखा जाता है कि जिस राज्य में महिला उत्पीड़न की घटना हुई है, यदि वह एक पार्टी द्वारा शासित है तो दूसरी पार्टी वहां के शासन पर जबरदस्त तरीके से हमलावर हो जाती है।

वहीं भत्ते बढ़ाने की बात हो तो सभी दल एक हो जाते हैं, जबकि किसी भी प्रकार की महिला शोषण की घटना पर वह एक मत नहीं दिखाई देते। ना जाने कब से कहा जा रहा है कि इस प्रकार की घटनाओं के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनें और एक ऐसा कानून बने, जिसमें दुष्कर्मियों को फांसी पर चढ़ाया जा सके, ताकि यह दूसरे लोगों के लिए नजीर बन सके। पौराणिक चरित्र योग माया का प्रादुर्भाव बाल कृष्ण को कंस के हाथों से बचाने के लिए हुआ था।

भगवती योग माया ने कन्या के रूप में उस युग में जन्म लेकर मानव जाति को यह दिव्य संदेश दिया था कि कन्या का जन्म बलिदान के नहीं होता। जब कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर योग माया को उसके पैरों से पकड़ कर ज़मीन पर ज़ोर से पटक कर मारना चाहा तो योग माया ने अट्टहास कर कंस से कहा, मैं चाहूं तो तुम्हें इसी समय मार सकती हूं, किंतु तुमने मेरे पैर पकड़े हैं और तुम्हारा काल कोई दूसरा है, इस वजह से मैं तुम्हारी जान नहीं ले सकती। हमें समझना होगा कि हमारी बेटियां आज हर क्षेत्र में अग्रणी हैं। वे केवल शारीरिक रूप से कमजोर हैं, इसलिए उनका शोषण किया जा सकता है, यह सोचना सर्वथा अनुचित है।

बहुत पुराने काल से हमारे देश में महिलाओं को वेदों और शास्त्रों का ज्ञान रहा है तथा वे शास्त्रार्थ में भी बड़े-बड़े वेदज्ञों और पंडितों का सामना कर अपनी बुद्धि का लोहा मनवाती रही हैं। महिलाएं सरस्वती और लक्ष्मी का स्वरूप हैं तो दुर्गा और काली का भी अवतार हैं। पूरे समाज को यह समझना होगा कि आज किसी भी बेटी के पिता को यदि उनकी सुरक्षा के लिए किसी भी प्रकार के हथियार का लाइसेंस मांगना पड़े अथवा हथियार उठाना पड़े, तो ऐसे समाज को सभ्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं है।

रवि शंकर शर्मा

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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