दैनिक पंचांग/ ऋषि चिंतन: अपना मूल्य समझें…

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दैनिक पंचांग

🙏सुप्रभातम🙏

*7 पैठ(गते) कात्तिक*
🌞 *बुधवार* 🌞
*23 अक्टूबर 2024*
🇮🇳 *भारत माता की जै*🇮🇳
🪷 *-इष्ट देवाय नमः* 🪷

🌈 *-विक्रम संवत-* – 2081।
🌈 *-शक संवत-* – 1946।
🌈 *कालयुक्त नाम संवत्सर*
🌈 *दक्षिणायन-शरद ऋतु*।
🌈 *कात्तिक कृष्ण पक्ष*
🌈 *तिथि* *सप्तमी* रात 1:19 तक तत्पश्चात अष्टमी ।
🪐 *नक्षत्र* पुनर्वसु ।
⚛️ *योग* शिव।
🌙 *-राहुकाल* दिन में 12:00 से 1:30 तक।
🔅 *-सूर्योदय-* 6 :22
🌤️ *-सूर्यास्त-* 5 :29
⚡ *दिशाशूल* उत्तर ।

*24 अक्टूबर* अहोई अष्टमी,

ऋषि चिंतन:  अपना मूल्य समझें

👉 *मनुष्य बड़ी बुद्धि विवेक और विचार वाला प्राणी है, पर खेद है कि वह अपनी इन शक्तियों का उपयोग लौकिक कामनाओं और इन्द्रिय भोगों तक ही सीमित रखता है।* इस अज्ञानान्धकार में ग्रसित मनुष्य को बड़ी शक्तियों का आभास भी नहीं होता इसीलिये वह कोल्हू के बैल की तरह एक सीमित दायरे का ही चक्कर काटता रहता है। *उसे इतना भी पता नहीं होता कि हमारे शीश पर बड़ी शक्तियों का हाथ है और उनसे जीवन को सफल बनाने का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।*
👉 *मनुष्य को असीम शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आत्मिक सम्पदाओं से सुसज्जित कर इस भूतल पर भेजा गया है।* पर अपने प्रयोग का ढङ्ग विपरीत हो जाने, उद्देश्य बदल जाने के कारण उन शक्तियों से लाभ तो कुछ मिलता नहीं अशान्ति, भय, घबराहट, चिड़चिड़ापन, अस्थिरता, राग, द्वेष, घृणा, स्वार्थ और ईर्ष्या का वातावरण और तैयार कर लेता है। *आत्म-विकास के लिए अपनी क्षमताओं को ईश्वरीय रूप में देखना था और उनका प्रयोग दिव्य तेज और स्फूर्ति की प्राप्ति के लिए किया जाना चाहिये था।* ऐसा करने वाले मनुष्य का अपना जीवन सार्थक होता और दूसरों को भी आत्म कल्याण की प्रेरणा मिलती।
👉 *आप अपनी मानसिक दुर्बलताओं का विश्लेषण किया कीजिये।* देखिये क्या यह कामनाएँ और वासनाएँ अन्त तक आपका साथ देंगी ? *आप इस पर जितना अधिक विचार करेंगे उतना ही वे तुच्छ प्रतीत होंगी और उनके प्रति आपके जी में घृणा उत्पन्न होगी।* मानसिक दुर्बलताएँ रुकेंगी तो आन्तरिक शक्तियों का प्रस्फुरण तीव्र होगा, *आपके अंदर का ईश्वरीय अंश बढ़ेगा।*
👉 *ईश्वर दिव्य है वह आपके अन्दर दिव्यता लाना चाहता है।* वह सत् है और वैसी ही प्रतिक्रिया आपके अन्दर चलाने की उसकी इच्छा होती है। *आपके मन का मैल दूर हो, तो आपका जीवन ईश्वरीय मन मोहकता, दिव्यता का, आकर्षण का केन्द्र बन जाए और उसकी सुवास से आपका सारा वातावरण महक जाए।* अपने भीतर समाविष्ट अमिट सत्य को पहचानिये, *यह सत्य आपको संकीर्णता से मुक्त कर देगा।* संसार की बदलती हुई गतिविधियों से शरीर के नाना प्रकार के रूपों से तब आप दुःखी और विक्षुब्ध न होंगे। *आपका जीवन हास्ययुक्त, चहकता और दमकता रहेगा।* मूल बात आत्म-चेतना को पहचानना है *जिससे आप मन को तमोगुण से बचा सकते हैं और मनुष्य जीवन को आनन्दमय बना सकते हैं।

*ईश्वर और उसकी अनुभूति पृष्ठ-६६*
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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