भूपाल ने अपनी हाड़ तोड़ मेहनत के पसीने से लिखी है अपनी सफलता की दास्तान

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भूपाल ने अपनी हाड़ तोड़ पसीने से लिखी है अपनी सफलता की दास्तान

पांच एकड़ में सब्जी और फल लदे देखकर, पलायन करने का मूड बनाए लोगों का बदल रहा है आइडिया

लोहाघाट। यदि कुछ करने की तमन्ना और इच्छा शक्ति हो तो सफलता पांव चुमने के लिए स्वत आ जाती है। लोहाघाट ब्लॉक के मानाढुंगा ग्राम पंचायत अंतर्गत ढींगडा गांव के भूपाल सिंह रावत ने अपने पुरुषार्थ के बल पर अपने खून पसीने से सफलता की गजब की कहानी लिखी है। पांच एकड़ भूमि में उनके द्वारा सेब, आडू, खुमानी, पूलम के अलावा फूलगोभी, ब्रोकली, शिमला मिर्च, टमाटर से लदे उनके खेतों को देखकर तो पहाड़ से पलायन करने का मूड बना रहे लोगों के कदम रुक कर उनमें ऐसा आत्मविश्वास पैदा हो रहा है।

यह जमीन से सोना पैदा कर सकते हैं तो, मैं क्यों नहीं कर सकता ? यहां आलू की भी बहुतायत में खेती होती है। खेतों की सिंचाई के लिए भूपाल ने अपने दम पर गधेरे से सात सौ मीटर की ऊंचाई में दो स्टेज में पानी पहुंचाया है, इसके अलावा इन्होंने बरसाती पानी को बाध कर टैंक बनाए हैं तथा टपक सिंचाई कर यह पानी की बर्बादी भी नहीं करते हैं। मौसमी मार के बावजूद भी यह सालाना पांच लाख रुपए मूल्य के उत्पाद बेच लेते हैं।

भूपाल को खेती करते इतना व्यवहारिक ज्ञान हो गया है कि नौसिखिए वैज्ञानिक तो इसके सामने टिकते तक नहीं है। जैविक खेती कर रहे इनके उत्पादनों की गुणवत्ता व अलग ही स्वाद है। लेकिन जब फूल गोभी एवं ब्रोकली की एक ही किमत देने की बात लोग करते हैं तो इनका उत्साह कम हो जाता है। इन्होंने सेब की लगभग सभी प्रजातिया लगाई हुई है। जिनका मेहनताना इन्हें मिलना चाहिए, उतना नहीं मिल पाता है, उद्यान विभाग के एडीओ आशीष खर्कवाल इन्हें प्रोत्साहित करते आ रहे हैं। भूपाल कहते हैं कि उनके सामने मार्केटिंग की बड़ी समस्या है।

किसानों की मेहनत का फल तो मंडी में ही मिलेगा।

लोहाघाट। भूपाल कि तरह क्षेत्र के सभी फल व सब्जी उत्पादकों को क्षेत्र में मंडी न होने का खामियाजा भुगतना पड़ा रहा है। अभी तक चम्पावत व लोहाघाट में कहीं भी सब्जी मंडी नहीं है। यदि मंडी का उप केंद्र भी होता तो उत्पादों को अच्छा बाजार भाव मिलता। अलबत्ता जिलाधिकारी नवनीत पांडे से किसानों को बड़ी उम्मीदें है कि वे उनकी इस समस्या का स्थाई समाधान करेंगे। फिलहाल यदि दोनों नगरों के मध्य मानेश्वर में उप मंडी बनाई जा सकती है। ऊंचाई में होने के कारण यहां चलने वाली बर्फीली हवाओं से सब्जियां बर्बाद भी नहीं होगी।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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